Move to Jagran APP

फिर घने होने लगे सतपुड़ा के ‘ऊंघते अनमने जंगल’, वृक्ष बन रहे 4 हजार पौधे

‘सतपुड़ा के घने जंगल..’ की रचना राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र ने इसी सोनाघाटी पर की थी। पांच साल से विद्या भारती सहित कई संगठन फिर इस जंगल को हरा-भरा करने में जुटे हैं। रोपे गए चार हजार पौधे अब वृक्ष बन रहे हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 31 Mar 2021 11:16 AM (IST)Updated: Wed, 31 Mar 2021 12:37 PM (IST)
फिर घने होने लगे सतपुड़ा के ‘ऊंघते अनमने जंगल’, वृक्ष बन रहे 4 हजार पौधे
1893-94 में सोनाघाटी की पहाड़ी को पहली बार काटकर इटारसी-नागपुर रेलवे लाइन बिछाई गई थी।

सतपुड़ा के घने जंगल।

loksabha election banner

नींद में डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊंचे और नीचे,

चुप खड़े हैं आंख मीचे,

घास चुप है, कास चुप है

मूक शाल, पलाश चुप है।

बन सके तो धंसो इनमें,

धंस न पाती हवा जिनमें,

सतपुड़ा के घने जंगल

ऊंघते अनमने जंगल।

बैतूल (विनय वर्मा) राष्ट्रकवि पंडित भवानी प्रसाद मिश्र ने मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की जिस सोनाघाटी के जंगलों को देखकर यह कालजयी रचना रची थी, वह कालांतर में उजाड़-सी हो गई। कभी रेल की पटरी निकालने तो कभी चौड़ी सड़क बनाने के नाम पर यहां के जंगल नष्ट हो गए। अब इस पहाड़ी पर एक बार फिर से घना जंगल खड़ा करने के लिए विद्या भारती समेत कई संगठन पिछले पांच साल से मेहनत कर रहे हैं। इस मेहनत का फल भी अब मिलने लगा है और वीरान हो चुकी यह पहाड़ी अब फिर हरी-भरी नजर आने लगी है। पिछले पांच साल में इस पहाड़ी पर लगभग चार हजार पौधे रोपे गए हैं। इन पौधों को पानी देने की प्राकृतिक व्यवस्था के लिए लगभग 3500 खंतियां (छोट गड्ढे) भी खोदी जा चुकी हैं। पहले साल रोपे गए पौधे अब वृक्ष बनने जा रहे हैं।

दरअसल, 32 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली सोनाघाटी की पहाड़ी कुछ दशक पहले तक तो घने जंगल से भरी हुई थी। वन्यजीवों की मौजूदगी भी यहां होती थी, लेकिन धीरे-धीरे पेड़ कटने लगे और पहाड़ी बदहाल होने लगी। सोनाघाटी की पहाड़ी को पहली बार 1893-94 में काटकर इटारसी-नागपुर रेलवे लाइन बिछाई गई थी। उसी समय पहाड़ी दो भागों में बंट गई थी, इसके बाद वर्ष 2013-14 में नागपुर-भोपाल फोरलेन निर्माण के लिए इस पहाड़ी को फिर से बीच से काट दिया गया। इस बीच घाटी के जंगल से अंधाधुंध पेड़ों की कटाई भी चलती रही।

गंगावतरण अभियान का पांचवां चरण प्रारंभ

सोनाघाटी की पहाड़ी को हरा भरा करने के लिए पांच वर्ष से चल रहा गंगा अवतरण अभियान विश्व जल दिवस से पांचवें चरण में शुरू हो गया है। श्रमदानी यहां पहुंचकर खंतियां खोद रहे हैं, ताकि बारिश की हर बूंद को धरती के भीतर उतारा जा सके। 83 ग्रामों की जल शक्ति टोली जल संरचनाओं को स्वच्छ करने के साथ क्यारियां बना रहे हैं।

हर सप्ताह करते हैं निगरानी

बैतूल के विभिन्न संगठन गर्मियों में यहां गड्ढे खोदते हैं और बारिश में इन गड्ढों के नीचे तरफ पौधे रोपते हैं। इन पौधों की सुरक्षा के लिए संगठन हर सप्ताह यहां आकर निगरानी करते हैं। मोहन नागर ने बताया कि पहाड़ी पर खोदे गए गड्ढों से सालभर इन पौधों और पेड़ों को नमी मिलती रहती है। यहां आम, अमरूद, सागौन सहित पलाश, शाल के भी पौधे लगाए गए हैं।

कई संगठन जुटे हैं अभियान में

लगभग वन रहित हो चुकी इस पहाड़ी को फिर हरियाली से आच्छादित करने के लिए वर्ष 2017 में विद्या भारती जनजाति शिक्षा और भारत भारती शिक्षा समिति ने गंगा अवरतरण अभियान की शुरुआत की। धीरे-धीरे इस अभियान से दर्जनों संगठनों के लोग, शहरवासी जुड़ते चले गए। जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही भारत भारती शिक्षा समिति के सचिव और विद्या भारती एकल विद्यालय के संयोजक मोहन नागर कहते हैं कि आने वाले कुछ सालों में पूरी घाटी घने जंगल से आच्छादित होगी। प्रकृति के चितेरे दादा भवानी प्रसाद मिश्र को यही सच्ची श्रद्घांजलि होगी। उन्होंने बताया कि पंडित मिश्र के बेटे और प्रसिद्घ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र भारत भारती भी इस घाटी के जंगल को लेकर चिंतित रहते थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.