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मिट्टी होकर वतन आया सरबजीत, बादल ने शहीद घोषित किया

बीते शुक्रवार को लाहौर की कोट लखपत जेल में नफरत से भरे खूंखार कैदियों के सुनियोजित हमले में मरणासन्न हुए सरबजीत ने जिन्ना अस्पताल में बुधवार आधी रात के बाद भारतीय समयानुसार डेढ़ बजे इस बेरहम दुनिया से विदा ले ली। तरनतारन के भिखीविंड गांव के सिख दलित परिवार के किसान सरबजीत को पाकिस्तान ने जीते जी तो रहम की भीख देने से इन्कार किया, लेकिन उनके शव की सुरक्षा में तमाम तामझाम दिखाया। पाकिस्तान ने उन्हें सुरक्षा तब दी जब उनके प्राण पखेरू हो चुके थे। एक विडंबना यह भी कि उनका इलाज चार डॉक्टरों की टीम ने किया और पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का बोर्ड छह सदस्यीय था।

By Edited By: Published: Thu, 02 May 2013 08:13 AM (IST)Updated: Thu, 02 May 2013 10:26 PM (IST)
मिट्टी होकर वतन आया सरबजीत, बादल ने शहीद घोषित किया

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। जिस शहर के बाशिंदे आज भी इस जुमले पर गुमान करते हैं कि जिसने लाहौर नहीं देखा वह जन्मा ही नहीं, उसने भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह को तिल-तिल करते मरते हुए देखा भी और दुनिया को दिखाया भी। 49 साल के सरबजीत को कभी साझा रही सरहद को लांघने की गलती की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। बीते शुक्रवार को लाहौर की कोट लखपत जेल में नफरत से भरे खूंखार कैदियों के सुनियोजित हमले में मरणासन्न हुए सरबजीत ने जिन्ना अस्पताल में बुधवार आधी रात के बाद भारतीय समयानुसार डेढ़ बजे इस बेरहम दुनिया से विदा ले ली। तरनतारन के भिखीविंड गांव के सिख दलित परिवार के किसान सरबजीत को पाकिस्तान ने जीते जी तो रहम की भीख देने से इन्कार किया, लेकिन उनके शव की सुरक्षा में तमाम तामझाम दिखाया। पाकिस्तान ने उन्हें सुरक्षा तब दी जब उनके प्राण पखेरू हो चुके थे। एक विडंबना यह भी कि उनका इलाज चार डॉक्टरों की टीम ने किया और पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का बोर्ड छह सदस्यीय था।

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पूरे देश में गम और गुस्से की लहर के बीच सरबजीत का पार्थिव शरीर भारत सरकार की ओर से भेजे गए विशेष विमान से अमृतसर लाया गया, जहां से उसे दोबार पोस्टमार्टम के लिए अमृतसर मेडिकल कॉलेज लाया गया। शुक्रवार सुबह सरबजीत के शव को अंतिम संस्कार के लिए उनके पैतृक गांव भिखीविंड ले जाया जाएगा। अगस्त, 1990 की एक रात वह भटकर मुल्क की सीमा लांघकर पाकिस्तान पहुंच गए। इसके बाद 1991 में उन्हें जासूसी और लाहौर व फैसलाबाद में हुए बम धमाकों का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुना दी गई। तमाम अपील, अनुरोध और इस पुख्ता दलील के बाद भी उन्हें माफी नहीं दी गई कि वह गलत पहचान का शिकार हुए हैं। मई, 2008 में पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत को फांसी दिए जाने पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी थी। लगता है भारत के दुश्मनों ने तभी सरबजीत को मौत की सजा देने का वैकल्पिक रास्ता खोज लिया था। उसी के तहत पिछले शुक्रवार को कोट लखपत जेल में छह कैदियों ने उन पर जानलेवा हमला किया, जिसकी परिणति आज पूरे देश के सामने है। शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पाकिस्तानी जेल में अमानवीय व्यवहार का शिकार हुए सरबजीत सिंह की नृशंस हत्या की कड़ी निंदा की है। सरबजीत को शहीद घोषित करते हुए बादल ने उनके परिवार को एक करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने की बात कही। प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक रहेगा। इसके अलावा सरकार सरबजीत की दोनों बेटियों को सरकारी नौकरी भी देगी।

भिखीविंड गांव में सरबजीत का राजकीय सम्मान के साथ होने वाले अंतिम संस्कार की तैयारियां प्रशासन ने पूरी कर ली हैं। इस मौके पर हजारों लोगों की आमद को लेकर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस जवान तैनात किए गए हैं। पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया है।

इससे पहले, बुधवार की रात सरबजीत की मौत की खबर उस समय आई जब उनकी असहाय-निरुपाय, लेकिन गजब की जीवट वाली बहन दलबीर कौर परिवार समेत लाहौर से लौटकर दिल्ली आ गई थीं। उनके साथ सरबजीत की पत्नी और उनकी दोनों बेटियां भी थीं। हालात की मारी और नाराज-नाउम्मीद दलबीर इस आस में दिल्ली आई थीं कि शायद सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, गृहमंत्री वगैरह अंतिम सांसें गिनते उनके भाई को बचाने के लिए कुछ करें। वह इन सबसे गुहार लगा पातीं कि उसके पहले ही सरबजीत की मौत की खबर आ गई। परिवार ने पूरी रात रो-रोकर काटी।

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गुरुवार सुबह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सरबजीत के रोते-बिलखते परिजनों को ढांढस बंधाने की कोशिश करने के लिए उनके साथ करीब 40 मिनट बिताए। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी उन्हें ढांढस बंधाया। पाकिस्तान के रवैये पर भारत ने सख्ती दिखाते हुए इसे भारतीय नागरिक की हत्या करार दिया है। आम लोगों के साथ ही सरकार और संसद में भी घटना पर गुस्सा फूटा। भारत ने इस बात पर भी नाखुशी जताई है कि सरबजीत को इलाज के लिए बाहर भेजने पर पाकिस्तान सरकार की सुस्ती के कारण उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।

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पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि सरबजीत ने गरिमा के साथ जेल में दमन और अत्याचार का सामना किया। इस दुख की घड़ी में सरकार उसके परिवार के साथ खड़ी है और परिवार की हरसंभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार सरबजीत सिंह की मौत पर शोक व्यक्त करने और दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक प्रस्ताव पेश करेगी। इस मामले से निपटने में नाकामी के लिए केंद्र सरकार पर बरसते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह केंद्र की कूटनीतिक विफलता और कमजोरी की निशानी है। देश इच्छा और ताकत के साथ चलाए जाते हैं, मगर सरकार में उसकी कमी दिखी है। भारत सरकार सरबजीत के मामले में राष्ट्रीय भावना समझने में विफल रही और जहां जरूरी कूटनीतिक पहल करनी चाहिए थी, वहां भी कोई कदम नहीं उठाया गया।

1964 : जन्म, भिखीविंड, तरनतारन, पंजाब

28 अगस्त, 1990 : सीमापार पाकिस्तान में गिरफ्तार।

1991 : जासूसी और लाहौर व फैसलाबाद बम धमाकों के आरोप में लाहौर की एक अदालत में मुकदमा। पाकिस्तान सैन्य कानून के तहत मौत की सजा। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी सजा।

2006 : मार्च में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी समीक्षा याचिका खारिज की। खारिज करने का कारण सुनवाई के दौरान सरबजीत के वकील की गैरमौजूदगी बताई।

2008 : तीन मार्च को तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने सरबजीत की दया याचिका वापस कर दी।

2008 : मई में पाक सरकार ने सरबजीत की फांसी पर अनिश्चितकालीन रोक लगाई।

26 जून, 2012 : पाकिस्तान सहित अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें आईं कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला। कुछ घंटे में ही पाक ने इसका खंडन किया।

26 अप्रैल, 2013 : जेल में छह कैदियों के हमले में बेहद गंभीर रूप से घायल।

2 मई, 2013 : लाहौर के जिन्ना अस्पताल में मृत्यु।

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