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अस्तित्व के लिए संघर्ष करता संस्कृत भाषा का दैनिक समाचार पत्र 'सुधर्म', जानिए- कब हुआ था शुरू

संस्कृत भाषा को लेकर दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि संस्कृत दुनिया की सबसे वैज्ञानिक और विकसित भाषा है जो कंप्यूटर में कामकाज के लिए सबसे मुफीद है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 16 Aug 2019 10:53 PM (IST)Updated: Fri, 16 Aug 2019 11:38 PM (IST)
अस्तित्व के लिए संघर्ष करता संस्कृत भाषा का दैनिक समाचार पत्र 'सुधर्म', जानिए- कब हुआ था शुरू
अस्तित्व के लिए संघर्ष करता संस्कृत भाषा का दैनिक समाचार पत्र 'सुधर्म', जानिए- कब हुआ था शुरू

मैसूर, नेशनल डेस्क। देश में देववाणी यानी संस्कृत भाषा की लोकप्रियता की तमाम कोशिशें हो रही है। भाषा मनीषियों और सरकार की ओर से विश्व संस्कृत सप्ताह के तहत कार्यक्रमों और संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। इन सब के बीच दिल कचोटने वाली बात यह है कि दक्षिण भारतीय शहर मैसूर से प्रकाशित संस्कृत भाषा का एकमात्र दैनिक समाचार पत्र सुधर्म अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

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ए-थ्री साइज और पांच कालम शीट वाले दो पेज के इस समाचार पत्र में वेद, योग, धार्मिक विषयों वाले आलेख प्रकाशित होते हैं। राजनीतिक और सांस्कृतिक समाचारों के साथ ही अन्य जानकारियां भी छपती हैं। प्रबंधक व उसके सुधी पाठकों ने गत दिनों समाचार पत्र की 50वीं वर्षगांठ मनाई। साथ ही यह उम्मीद भी जाहिर की कि समाचार पत्र के संचालन में आने वाली आर्थिक दिक्कतों से निजात के लिए केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियां उसकी मदद के लिए आगे आएंगी।

1970 में हुई थी अखबार की शुरुआत
संस्कृत भाषा के विद्वान पंडित वरदराजा आयंगर ने 15 जुलाई 1970 में दैनिक समाचार पत्र सुधर्म की शुरुआत की थी। इसके माध्यम से वह देववाणी को घर-घर तक पहुंचाना चाहते थे। इस काम में उनके सहभागी बने पुत्र केवी संपत कुमार और पत्नी जयालक्ष्मी, जो आज भी इस काम में जुटे हुए हैं। इस समाचार पत्र के तकरीबन तीन हजार नियमित ग्राहक हैं, जिनमें ज्यादातर संस्थान और पुस्तकालय हैं।

संपादक केवी संपत को किया गया सम्मानित
इन सभी को समाचार पत्र डाक के माध्यम से मिलता है। संस्कृत भाषा के इस समाचार पत्र का ई-पेपर भी है, जिसके पाठकों की संख्या तकरीबन एक लाख तक है। विश्व संस्कृत संस्थान द्वारा शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में समाचार पत्र के संपादक केवी संपत कुमार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सम्मानित किया।

केवी संपत कुमार के मुताबिक, संस्कृत भाषा के इस दैनिक समाचार पत्र के निर्बाध संचालन में बड़ी मुश्किलें आ रही हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की कोई भी संस्था किसी भी प्रकार से हमारी मदद के लिए आगे नहीं आ रही है। निजी क्षेत्र के विभिन्न संस्थान भी हमारी मदद करने में रुचि प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं।

देश को जोड़ने वाली भाषा है संस्कृत
हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ रखने वाली पंडित वरदराजा आयंगर की पत्नी जयालक्ष्मी के मुताबिक, संस्कृत महान भाषा है, यह पूरे देश को एक सूत्र में पिरोती है। देश के किसी भी हिस्से में मानव जाति के जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले वैदिक संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों में संस्कृत भाषा का ही प्रयोग होता है। दरअसल, यह सभी भाषाओं की जननी है। उनका कहना है कि तमाम दिक्कतों के बाद संस्कृत भाषा का विस्तार हो रहा है, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी इस भाषा का प्रयोग लाभकारी है, आइटी प्रोफेशनल्स ने भी इसे फायदेमंद बताया है।

संस्कृत भाषा में रेडियो बुलेटिन की शुरुआत
संपत कुमार अपने पिता की परिकल्पना और लक्ष्य को लेकर आज भी चल रहे हैं, आकाशवाणी के माध्यम से संस्कृत रेडियो बुलेटिन की शुरुआत का श्रेय उन्हें ही जाता है। उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए तत्कालीन केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री आइ.के गुजराल ने संस्कृत भाषा में रोजाना रेडियो बुलेटिन की शुरू कराई थी।

तमाम मंत्रियों, राज्यपालों, संस्कृत आचार्यो और अन्य गणमान्य नागरिकों ने रामचंद्र अग्रहारा स्थित सुधर्म के कार्यालय में जाकर नियमित कामकाज को देखा और उसकी जानकारी हासिल की है। सुधर्म के प्रकाशकों का कहना है कि यह बात सही है कि संस्कृत भाषा के समाचार पत्र का प्रकाशन फायदे का सौदा नहीं है, लेकिन यह एक मिशन है, भाषा के प्रति अपने प्रेम को जाहिर करने का एक जरिया है, जिससे दुनिया में संस्कृत भाषा को मान हासिल हो।

संस्कृत और योग की राजधानी बन रही है मैसूर
मैसूर में संस्कृत भाषा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। यहां देववाणी सीखने और उसका अध्ययन करने वाले छात्रों और विद्वानों की संख्या काफी है। आयुर्वेद का पठन-पाठन करने वालों के साथ-साथ अन्य सहायक औषधियों के विकास के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है, इसलिए संस्कृत भाषा के अध्ययन केंद्रों की मांग बढ़ती जा रही है।

छात्रो का कहना है कि संस्कृत को देश में देववाणी माना जाता है, भारतीय दर्शन और अध्ययन परंपरा इसी के इर्दगिर्द रही है, लेकिन निहित स्वार्थो के चलते इस भाषा के मृत होने की बात को प्रचारित किया गया, अनदेखी के चलते यह हमारे दैनिक जीवन और बोलचाल से दूर होती चली गई। 


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