अखंड भारत का सपना बल से नहीं धर्म से होगा संभव, मानवता और पूरी दुनिया का धर्म है सनातन
मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया के कल्याण के लिए गौरवशाली अखंड भारत की आवश्यकता है। इसके लिए लोगों में देशभक्ति जगाने की जरूरत है। आकार में छोटे किए गए भारत को (फिर से) संगठित किए जाने की आवश्यकता है।
हैदराबाद, एजेंसियां। एक संगोष्ठी में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जब हम अखंड भारत की बात करते हैं, तो हमारा इरादा ताकत के बल पर यह (हासिल) करना नहीं है, बल्कि सनातन धर्म के जरिए उन्हें जोड़ना है। सनातन धर्म मानवता और पूरी दुनिया का धर्म है और इसे आज हिंदू धर्म कहा जाता है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के कल्याण के लिए गौरवशाली अखंड भारत की आवश्यकता है। इसके लिए लोगों में देशभक्ति जगाने की जरूरत है। आकार में छोटे किए गए भारत को (फिर से) संगठित किए जाने की आवश्यकता है। भारत से अलग हुए सभी हिस्सों, जो स्वयं को अब भारत का हिस्सा नहीं बताते है, उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने देश के विभाजन से पहले इस बात को लेकर गंभीर संदेह जताया था कि इसे बांटा भी जा सकता है या नहीं, लेकिन ऐसा हो गया। संघ प्रमुख ने कहा, यदि आप इस देश के बंटवारे से छह महीने पहले किसी से पूछते, तो कोई भी इसका अंदाजा नहीं लगा सकता था।
भारत को भगवान ने बनाया और इसे कौन कर सकता है विभाजित
उन्होंने कहा कि लॉर्ड वावेल (ब्रितानी शासन काल में) ने भी ब्रिटेन की संसद में कहा था कि भारत को भगवान ने बनाया है और इसे कौन विभाजित कर सकता है। लेकिन अंतत: ऐसा (बंटवारा) हो गया। जो असंभव प्रतीत होता था, वह हुआ, इसलिए अभी असंभव लगने वाले अखंड भारत की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी आवश्यकता है।
भागवत ने कहा कि स्वयं को अब भारत का हिस्सा नहीं कहने वाले इससे अलग हुए क्षेत्रों के लिए भारत के साथ फिर से जुड़ना अधिक जरूरी है।
उन्होंने कहा कि इन देशों ने वह सब कुछ किया, जो वह कर सकते थे, लेकिन उन्हें कोई समाधान नहीं मिला। इसका एक मात्र समाधान (भारत के साथ) फिर से जुड़ना है और इससे उनकी सभी समस्याएं सुलझ जाएंगी।