मुर्गे में भी आदमी वाले जीन : रिपोर्ट
डर, चिंता वगैरह वाले तीन जीन ऐसे हैं जो मुर्गे और आदमी में समान हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन में यह पाया गया है।
नई दिल्ली, जागरण डेस्क । डर, चिंता वगैरह वाले तीन जीन ऐसे हैं जो मुर्गे और आदमी में समान हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन में यह पाया गया है। अभी यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि दोनों के जीन का प्रभाव कितने हद तक समान है।
वैसे, आदमी के दिमाग को लेकर कई अध्ययन हो रहे हैं लेकिन स्वीडन के लिंकोपिंग विश्वविद्यालय में जीन वैज्ञानिक डॉ. डॉमिनिक राइट का यह शोध कुछ दूसरे किस्म की बातें भी बताता है। इसमें पाया गया है कि मुर्गे में दस जीन ऐसे हैं जो उसके दिमाग को संचालित करते हैं। इनमें से तीन ऐसे जीन लोगों में भी पाए जाते हैं जो सिजोफ्रेनिया और बायपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोगों के कारण बनते हैं। इन पर आगे अध्ययन कर यह जानने की कोशिश की जा रही है कि इन रोगों के इलाज में किस तरह मदद मिल सकती है।
और क्या जानने की कोशिश
डॉ. राइट का कहना है कि जीन को लेकर अब तक हो रहे अध्ययन में अधिकतर यह जानने की कोशिश की जा रही है कि मानसिक रोग क्यों होते हैं और उनसे बचाव के क्या उपाय हैं। लेकिन वे इस प्रयास में हैं कि आदमी के व्यवहार को भी इसके जरिये विस्तार से समझा जा सके। यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्यों किसी आदमी को डर अधिक लगता है जबकि दूसरा आदमी बिल्कुल निडर होता है।
डर एक से दूसरी पीढ़ी में
दरअसल, अटलांटा में एमोरी यूनिवसिर्टी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों के मुताबिक, खौफ कुछ लोगों के डीएनए में होता है और इसके पीछे उसके किसी पूर्वज का उन्हीं स्थितियों से गुजरना हो सकता है। यह डीएनए में एक से दूसरी पीढ़ी में गया रासायनिक बदलाव है। दरअसल, कुछ लोगों में किसी चीज को लेकर डर का कोई तार्किक कारण नहीं होता। वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसा उनके डीएनए में होने की वजह से भी हो सकता है।
ज्ञान भी अगली पीढ़ी में?
अभी इस बारे में वैज्ञानिक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि क्या ज्ञान और अनुभव भी एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकता है? लेकिन उनका कहना है कि आरंभिक तौर पर वे इसका समर्थन करने की स्थिति में हैं। उनका कहना है कि ज्ञान का एक से दूसरी पीढ़ी में जाना भी उसी तरह मुमकिन है जिस तरह खौफ।