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रेलवे में खत्म होंगे सैलून, बंद होंगे प्रिंटिंग प्रेस

भारतीय रेल में सैकड़ों सैलून हैं जिनके रखरखाव पर हर साल करोड़ों रुपया खर्च होता है। एक-एक जोन में दर्जनों सैलून हैं जिनका उपयोग महाप्रबंधक से लेकर डीआरएम तक करते हैं।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Wed, 04 Oct 2017 07:39 PM (IST)Updated: Wed, 04 Oct 2017 07:39 PM (IST)
रेलवे में खत्म होंगे सैलून, बंद होंगे प्रिंटिंग प्रेस
रेलवे में खत्म होंगे सैलून, बंद होंगे प्रिंटिंग प्रेस

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रेलवे के आला अफसरों की मौजमस्ती के दिन लदने वाले हैं। उन्हें अब सैलून के बजाय सामान्य एसी दर्जो में यात्रा करनी होगी। सैलून का उपयोग सिर्फ निरीक्षणों के लिए होगा, जिसके लिए हर जोन में दो सैलून रखे जाएंगे। बाकी को या तो ट्रेनों में लगाया जाएगा या फिर नष्ट कर दिया जाएगा। रेलवे की प्रिंटिंग प्रेसों को भी बंद करने का प्रस्ताव है।

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भारतीय रेल में सैकड़ों सैलून हैं जिनके रखरखाव पर हर साल करोड़ों रुपया खर्च होता है। एक-एक जोन में दर्जनों सैलून हैं जिनका उपयोग महाप्रबंधक से लेकर डीआरएम तक करते हैं। सैलूनों की व्यवस्था की तो निरीक्षणों के लिए गई थी, लेकिन वास्तव में इनका प्रयोग सामान्य यात्राओं में ज्यादा होता है, जिसके लिए निरीक्षण का बहाना बनाया जाता है। बाकी समय में ये सैलून स्टेशन यार्डो में खड़े रहते हैं।

सैलून संस्कृति पर अंकुश लगाने का यह निर्णय महाप्रबंधकों के सम्मेलन में लिया गया। उत्तर रेलवे के मुख्यालय बड़ौदा हाउस में हुए इस सम्मेलन में रेलमंत्री पीयूष गोयल ने महाप्रबंधकों को आरामतलबी छोड़ फील्ड में जाने तथा संरक्षा, आधुनिकीकरण व विस्तार तथा यात्री सुविधाओं संबंधी कार्यो की स्वयं निगरानी करने के निर्देश दिए। अधिकारियों से कहा गया है कि महीने में एक-दो बार उन्हें सामान्य ट्रेनों में यात्रा करके यात्रियों की तकलीफें जानने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उन्हें फ‌र्स्ट एसी के बजाय सेकंड व थर्ड एसी तथा कभी-कभार स्लीपर तक में यात्रा करने से गुरेज नहीं करना चाहिए।

मुंबई में फुट ओवरब्रिज हादसे के बाद समीक्षा में पाया गया था कि अनेक वरिष्ठ अधिकारी अरसे से मुख्यालयों में जमे हुए हैं। जिस कारण युवा अधिकारियों को उच्च स्तर पर हुनर दिखाने का मौका नहीं मिलता। इसमें बदलाव के लिए हर जोन के 100-200 अधिकारियों को डिवीजनों में भेजा जाएगा। रेलवे स्टेशनों की हालत सुधारने के लिए युवा स्टेशन डायरेक्टरों की तैनाती का निर्णय भी लिया गया है।

सूत्रों के अनुसार सम्मेलन में महाप्रबंधको ंने ट्रेनों व यात्रियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर बड़े मंडलों में अधिकारियों की कमी का मुद्दा उठाया। मुंबई हादसे में भी यह कमी उजागर हो चुकी है। लिहाजा इस बात का निर्णय लिया गया है कि दिल्ली, मुंबई, हावड़ा, चेन्नई जैसे महानगरीय डिवीजनों में डीआरएम के अलावा आवश्यकतानुसार चार एडीआरएम नियुक्त किए जाएंगे। जबकि लखनऊ, आगरा, भोपाल जैसे मझोले शहरों में तीन और मुरादाबाद, अंबाला, फिरोजपुर जैसे छोटे शहरों में दो एडीआरएम तैनात होंगे।

रेलवे बजट समाप्त होने के बाद रेलवे की प्रिंटिंग प्रेसों की जरूरत नहीं रही है। लिहाजा स्टेशनरी और दस्तावेज छापने वाली तमाम पिं्रटिंग प्रेसों को धीरे-धीरे बंद किया जाएगा। महाप्रबंधकों से इस संबंध में कार्ययोजना तैयार करने को कहा गया है।

बैठक में रेलवे स्कूलों का मुद्दा भी उठा। सवाल उठा कि क्या रेलवे को स्कूल चलाने चाहिए? क्या बाहरी स्कूलों से काम नहीं चल सकता? संवेदनशील होने के कारण इस विषय की गहन समीक्षा का निर्णय लिया गया है।


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