नक्सल प्रभावित इलाकों में कम हुई धान की बिक्री, ये है वजह
छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित जिलों से किसान धान बेचने बाहर नहीं निकल पाए। इसकी वजह नक्सलियों का दबाव बताया जा रहा है।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित जिलों से किसान धान बेचने बाहर नहीं निकल पाए। इसकी वजह नक्सलियों का दबाव बताया जा रहा है। धान खरीदी समाप्त होने के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे पता चलता है कि नक्सल प्रभावित जिलों में पचास फीसद किसान ही धान बेच पाए हैं। बस्तर संभाग के अंदरूनी इलाकों के अधिकांश किसानों का सहकारी समितियों में पंजीयन नहीं है।
नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लॉक के किसानों में इक्का दुक्का ही ऐसे हैं जिनका पंजीयन किया जा सका है। इसकी वजह यह है कि अबूझमाड़ का राजस्व सर्वे किया ही नहीं जा सका है। यहां जिसकी लाठी उसकी जमीन वाली हालत है। आदिवासी सामूहिक खेती करते हैं और किसी के पास भूमि का पट्टा नहीं है। ऐसे में धान बेचने के लिए पंजीयन का तो सवाल ही नहीं है। यही हाल बैलाडीला पहाड़ के पीछे बसे करका, एलमगुंडा, पीडिया जैसे गांवों का भी है।
नक्सल खौफ के कारण नहीं बना आधारकार्ड इधर बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा आदि जिलों में शहरी बस्तियों के आसपास के गांवों के किसान ही ऐसे हैं जो आसानी से धान बेचने निकल पाए। अंदरूनी गांवों में नक्सली सरकारी सुविधाओं से दूर रहने की हिदायत देते रहे हैं। नक्सलियों ने तो पीडीएस का राशन लेने से भी मना कर रखा है। बीजापुर जिले के गंगालूर में पुलिस थाना है। इसके आगे 40-50 किमी दूर तक दर्जनों गांव ऐसे हैं जिन्होंने आधार कार्ड नहीं बनाया है। इन गावों के ग्रामीणों ने राशन कार्ड बनाया भी है तो उसे गंगालूर में रखते हैं, गांव लेकर नहीं जाते। अगर नक्सलियों ने देख लिया तो मार देंगे। यही खौफ धान बेचने के आड़े भी आया है।
प्रदेश की तुलना में धान की खेती कम- बस्तर के आदिवासी इलाकों में किसान धान की बजाय कोदो, कुटकी आदि की खेती करते हैं। इनका मुख्य अन्न यही है। आदिवासी वनोपजों पर ज्यादा निर्भर हैं। यहां महुआ, चिरौंजी, साल बीज, तेंदूपत्ता आदि इनकी आजाविका का बड़ा साधन है।