जीएसटी के दायरे में बाहर रहेगी जमीन की बिक्री
माना जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों ने रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने की हिमायत की। इस वजह से यह फैसला किया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । आजादी के बाद अब तक के सबसे बड़े कर सुधार करार दिए जा रहे वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने पर जमीन की बिक्री और रीएल एस्टेट इसके दायरे में नहीं आएंगे। जीएसटी के मॉडल विधेयक में इस संबंध में प्रावधान किया गया है। ऐसा होने पर रीएल एस्टेट और जमीन की खरीद-फरोख्त को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने से कालेधन के खिलाफ मुहिम कमजोर पड़ सकती है। माना जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों ने रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने की हिमायत की। इस वजह से यह फैसला किया गया है।
सूत्रों ने कहा कि जीएसटी काउंसिल ने सीजीएसटी और एसजीएसटी विधेयकों के जिन मसौदों को अंतिम रूप दिया है, उसमें जमीन की बिक्री को जीएसटी से बाहर रखने के संबंध में स्पष्ट प्रावधान किया गया है। सीजीएसटी मॉडल विधेयक की अनुसूची तीन में साफ-साफ कहा गया है कि जमीन की बिक्री जीएसटी के दायरे में नहीं आएगी। गौरतलब है कि इससे पूर्व के जीएसटी मॉडल विधेयकों में इस संबंध में स्पष्ट प्रावधान नहीं था।
यानी जमीन की खरीद-फरोख्त पर स्टांप शुल्क देने की मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी। फिलहाल जमीन की बिक्री पर राज्य सरकारें स्टांप शुल्क लगाती हैं। ऐसे में कई बड़े राज्यों का अपना राजस्व जाने का डर था। इसलिए रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने के संबंध में अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। हालांकि वर्क्स कान्ट्रेक्ट जीएसटी के दायरे में आएगा।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी काउंसिल ने 16 मार्च को दिल्ली में हुई 12वीं बैठक में जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी विधेयकों को अंतिम रूप दिया है। जमीन की बिक्री और रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और जीएसटी काउंसिल के कुछ सदस्यों ने रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग उठायी थी। सुब्रमण्यम की दलील थी कि अगर जमीन और रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया तो कालेधन का सृजन नहीं रुकेगा।
फिलहाल वर्क्स कान्ट्रेक्ट पर सेवा कर लगता है। इसका मतलब है कि जब भी कोई नया फ्लैट खरीदता है तो उस पर सेवा कर देना पड़ता है लेकिन पुराने फ्लैट या मकान पर सेवा कर नहीं लगता। विगत सरकार की कई रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि रीएल एस्टेट क्षेत्र में कालेधन का सृजन होता है। ऐसे में जमीन और रीएल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने से कालेधन के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ सकती है।