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नशे का कहर : कई परिवारों में अब एक भी पुरुष नहीं बचा

मध्यप्रदेश में सहरिया समाज की दुर्दशा का दौर जारी है। कुपोषण और भुखमरी के बाद अब नशे का कहर इस आदिम जनजाति पर ऐसा टूटा कि कई परिवारों में एक भी पुरुष नहीं बचा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 01 May 2018 09:38 AM (IST)Updated: Tue, 01 May 2018 01:35 PM (IST)
नशे का कहर : कई परिवारों में अब एक भी पुरुष नहीं बचा
नशे का कहर : कई परिवारों में अब एक भी पुरुष नहीं बचा

हरिओम गौड़, श्योपुर। मध्यप्रदेश में सहरिया समाज की दुर्दशा का दौर जारी है। कुपोषण और भुखमरी के बाद अब नशे का कहर इस आदिम जनजाति पर ऐसा टूटा कि कई परिवारों में एक भी पुरुष नहीं बचा है। अनेक गांवों में यही हाल है। वहां हर घर में विधवाएं और अनाथ बच्चे ही दिखाई पड़ते हैं। नशे के कारण पुरुषों की औसत उम्र 35-40 पर आ सिमटी है।

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कुपोषण, बेरोजगारी, भुखमरी और नशा...

भारत की 75 संकटग्रस्त जनजातियों में शुमार सहरिया जनजाति का बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश के श्योपुर व शिवपुरी जिलों में बसता है। कुपोषण के शिकार 150 से अधिक बच्चों की मौत के बाद ये दोनों जिले पिछले साल चर्चा में आए थे। यहां करीब 50 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार पाए गए थे। मध्यप्रदेश की कुल आबादी में जनजातियों का हिस्सा 14.7 फीसद है। यह अनुपात देश में सबसे अधिक है। राज्य सरकार की तमाम पहल नाकाफी साबित हो रही हैं। जंगलों के घटते दायरे के चलते सहरिया समाज मुख्य रूप से कृषि मजदूरी पर निर्भर हो गया है। उसके पास न तो खुद के कृषि संसाधन हैं और न ही जल संसाधन।

ऐसे में 28.7 फीसद शिक्षा दर वाले सहरिया समाज के लिए बेरोजगारी अभिशाप बन चुकी है। हर युवा, यहां तक कि बच्चे और किशोर नशे की जद में आ चुके हैं। तरह-तरह के नशे करते हैं। यह इनकी असमय मौत का कारण बन रहा है। टीबी भी वजह बन रही है क्योंकि इन इलाकों में आज भी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है।

विधवाओं की बढ़ रही है संख्या...

कराहल तहसील के कांदरखेड़ा गांव में रेशमबाई (22) की शादी चार साल पहले हुकुम आदिवासी से हुई। शादी के तीन साल बाद ही बीमारी से हुकुम की मौत हो गई। सात जन्म तक साथ निभाने का वादा करने वाला पति महज तीन साल में ही अकेला छोड़ गया। यह केवल उदाहरण है।

श्योपुर जिले में ऐसे हजारों आदिवासी युवा भरी जवानी में दम तोड़ चुके हैं। सहरिया समाज में जवानी में ही विधवा होने वाली महिलाओं की संख्या ते जी से बढ़ रही है। पुरुषों की मौत प्रायः 30 और अधिकतम 45 वर्ष की उम्र में हो जा रही है। जिला प्रशासन के एक सर्वे में भी यह बात सामने आ चुकी है।

कराहल के भेला, पातालगढ़, भीमलत व विजयपुर ब्लॉक, अगरा, ऊमरी के अलावा कई गांव व सहरिया बस्ती ऐसी हैं जहां विधवा महिलाओं की संख्या ज्यादा है। इससे भी चिंताजनक हालत यह है कि कई परिवारों में अब एक भी पुरुष नहीं बचा। जिले के 84 सहरिया गांवों में ऐसे कई परिवार हैं। जिले में सहरिया आदिवासियों की जनसंख्या करीब 1.70 लाख है। सहरिया समाज में बिना मां-बाप के बच्चों की संख्या भी विचलित करने वाली है।

इनका कहना है

मैंने अपने जीवन में ऐसे हालात कहीं नहीं देखे। श्योपुर में सहरिया समाज की महिलाएं जवानी में विधवा हो रही हैं। इसे लेकर जिला स्तर एक सर्वे कराया था उसमें अनाथ बच्चे व विधवा महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा सहरिया समाज में मिली। युवाओं की मौत का कारण नशा व बीमारियां हैं।

-पन्नालाल सोलंकी, सेवानिवृत्त कलेक्टर, श्योपुर

सहरिया मतबल शेर के साथ रहने वाला...

मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग की आधिकारिक बेवसाइट एमपीइन्फो.ओआरजी के मुताबिक, सहरिया का मतलब है शेर के साथ रहने वाला। यह जनजाति मध्यप्रदेश के उत्तर पश्चिमी जिलों में प्रमुखता से फैली हुई है। पुराने समय में यह समस्त क्षेत्र वनाच्छादित था और यह जनजाति शिकार और संचयन से अपना जीवन-यापन करती थी किंतु अब अधिकांश सहरिया या तो छोटे किसान हैं या मजदूर।

इनका रहन-सहन और धार्मिक मान्यताएं क्षेत्र के अन्य हिंदू समाज जैसी ही हैं किंतु गोदाना गुदाने की परंपरा अभी भी प्रचलित है। ये मोटे अन्ना पर निर्भर हैं। शराब और बीड़ी के विशेष शौकीन हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सर्वे के मुताबिक इनमें क्षय रोग साधारण जनता की तुलना में कई गुना अधिक विद्यमान है। 


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