डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की थाह लेने में जुटा भारत
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अमेरिका की आर्थिक और कूटनीतिक नीति के बारे में डोनाल्ड ट्रंप ने जो भी संकेत दिए हैं उसे भारत बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है
नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भावी नीतियों की थाह लेने में भारत भी जुट गया है। एक तरफ जहां विदेश सचिव एस जयशंकर ने खुद ही ट्रंप प्रशासन में अहम पद पाने के संभावित उम्मीदवारों से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात कर उनका मन टटोलने की कोशिश की है तो दूसरी तरफ से भारतीय कूटनीति से जुड़े अन्य लोग भी सीनेट के नवनिर्वाचित सदस्यों से लगातार मुलाकात कर रहे हैं।
इन मुलाकातों के बारे में जानकारी रखने वाले अधिकारियों का कहना है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने करीबी लोगों को बताया है कि भारत उनकी भावी विदेश नीति में अहम होगा। ट्रंप की अगुवाई में बन रही टीम में कई ऐसे चेहरों के शामिल होने से भी भारत उत्साहित हैं जिन्हें लंबे समय से भारत के मित्र के तौर पर जाना जाता है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अमेरिका की आर्थिक और कूटनीतिक नीति के बारे में डोनाल्ड ट्रंप ने जो भी संकेत दिए हैं उसे भारत बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है। ट्रंप ने गैर कानूनी तौर पर अमेरिका रह रहे विदेशियों के खिलाफ सख्ती करने और आव्रजन नीति को कठोर बनाने के संकेत दिए हैं। लेकिन कई वजहों से भारत पर इन दोनों का बहुत बड़ा असर नहीं होने जा रहा है।
कूटनीतिक नीति को लेकर ट्रंप ने अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले हैं लेकिन यह जरुर संकेत दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ उनका रवैया बेहद कठोर होगा। लेकिन भारत को यह देखना होगा कि आतंकवाद से जुड़े जो मुद्दे हमें सबसे ज्यादा परेशान कर रहे हैं उन पर ट्रंप प्रशासन का रवैया किस तरह का होता है। वैसे भारत इस बात से खुश है कि ट्रंप ने माइकल फ्लिन को अपना नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया है। फ्लिन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ काफी कड़े रुख रखने वाले शख्स के तौर पर जाना जाता है।
ट्रप ने अमेरिका के विभिन्न सेक्टर में विदेशियों को नौकरी देने के मुद्दे पर कड़ा रवैया अख्तियार करने का संकेत दिया है। यह मुद्दा सीधे तौर पर भारतीय हितों को प्रभावित कर सकता है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस बारे में कहते हैं कि राष्ट्रपति ओबामा ने भी अपने दूसरे कार्यकाल में आउटसोर्सिग की नीति के खिलाफ कई बार कठोर प्रस्ताव लाने की चेष्टा की लेकिन अमेरिकी कंपनियों के विरोध की वजह से इसे परवान नहीं चढ़ाया जा सका। भारत को ज्यादा चिंतित इसलिए भी नहीं होने की जरुरत है कि भारत की अधिकांश सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों ने पिछले एक दशक के दौरान अमेरिका पर अपनी निर्भरता काफी कम कर ली है। साथ ही अमेरिका में ठेका हासिल करने वाली भारतीय आइटी कंपनियों ने वहां के स्थानीय नागरिकों को भी बड़े पैमाने पर नौकरी देनी शुरु कर दी है।
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