चीन के साथ लड़ाई की स्थिति में मोर्चे पर जाने को तैयार स्वयंसेवक, 1962 में भी की थी सेना की मदद
चीन के साथ लड़ाई की स्थिति में मोर्चे पर जाने को स्वयंसेवक तैयार हैं। आरएसएस का कहना है कि स्वयंसेवकों के लिए तीन दिन की ट्रेनिंग पर्याप्त होगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीन से जंग होने की स्थिति में आरएसएस के स्वयंसेवक भारतीय सेना के साथ मिलकर लड़ाई के लिए तैयार हैं। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, स्वयंसेवक पहले से ही अनुशासन और शारीरिक प्रशिक्षण का पाठ पढ़ चुके होते हैं, इसीलिए उन्हें लड़ाई के लायक तैयार करने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा। ध्यान देने की बात है कि आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत पहले ही कह चुके हैं कि लड़ाई के मैदान में जाने के लिए स्वयंसेवकों को केवल तीन दिन की ट्रेनिंग पर्याप्त है।
आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, सेना के लिए अनुशासन और शारीरिक प्रशिक्षण बहुत जरूरी है। संघ की शाखाओं में स्वयंसेवकों को हर दिन यही सिखाया जाता है। जाहिर है वे सेना के अनुशासन का पालन आसानी से कर लेंगे। सामान्य शारीरिक प्रशिक्षण होने के कारण उन्हें केवल हथियार चलाने या किसी विशेष काम की ट्रेनिंग देने की जरूरत पड़ेगी।
खुद सेना का मानना है कि लड़ाई के समय में जब आम आदमी को मोर्चे पर भेजना जरूरी हो जाता है, तो उसे एक महीने की ट्रेनिंग देने की जरूरत पड़ती है। स्वयंसेवक को केवल तीन दिन ट्रेनिंग में इसके लिए तैयार किया जा सकता है। इसके पहले आरएसएस 1962 में चीन के साथ युद्ध के मैदान में भी भारतीय सेना की मदद के लिए साथ मोर्चे पर उतर चुकी है। इसे देखते हुए ही उसके अगले साल 26 जनवरी को राजपथ पर आरएसएस के स्वयंसेवकों की टुकड़ी को भी पैरेड करने की अनुमति दी गई थी।