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जम्मू में हिरासत में मौजूद रोहिंग्याओं को तय प्रक्रिया के अनुसार ही भेजा जा सकेगा म्यांमार: सुप्रीम कोर्ट

जम्मू के जेल में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों के म्यांमार प्रत्यर्पण किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज अपना फैसला सुनाया और कहा कि निर्धारित कानून की प्रक्रिया का पालन किए बगैर उनकी म्यांमार वापसी संभव नहीं।

By Monika MinalEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 04:33 PM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 04:33 PM (IST)
जम्मू में हिरासत में मौजूद रोहिंग्याओं को तय प्रक्रिया के अनुसार ही भेजा जा सकेगा म्यांमार: सुप्रीम कोर्ट
जम्मू में हिरासत में मौजूद रोहिंग्याओं भेजा जाएगा म्यांमार लेकिन कानून के अनुसार: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा है कि जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्याओं को केवल  सिर्फ तय प्रक्रिया का पालन करते हुए ही म्यांमार भेजा जा सकता है। कोर्ट ने यह कहते हुए जम्मू-कश्मीर हिरासत में लिए गए रोहिंग्या को छोड़ने और म्यांमार न भेजे जाने की याचिका निपटा दी। रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने कोर्ट में एडवोकेट प्रशांत भूषण के जरिए याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि कोर्ट सरकार को निर्देश दे कि जम्मू के जेल में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार न भेजा जाए। साथ ही याचिका में उनकी रिहाई की मांग भी की गई। मामले की सुनवाई करने वाली बेंच की अगुवाई चीफ जस्टिस एसए बोबडे कर रहे थे। बेंच ने अपने आदेश में कहा कि कानून में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन किए बगैर रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस नहीं भेजा जा सकता है। 

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26 मार्च को कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि उन्होंने यह याचिका जनहित में दायर की गई है, ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया जा सके। संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह अर्जी दायर की गई।

पिछली सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा था कि वे केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश देने की मांग कर रहे हैं कि जो रोहिंग्या हिरासत में रखे गए हैं, उन्हें रिहा किया जाए और वापस म्यांमार ना भेजा जाए। एडवोकेट ने कहा था कि रोहिंग्या बच्चों की हत्याएं कर दी जाती है और उनका शोषण होता है तथा म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रही है।


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