जानिए...कहां से शुरू हुआ था भारत के रॉकेट सपनों का अरमान
बुधवार को पीएसएलवी ने जिन 104 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया उनमें से 96 अमेरिकन सैटेलाइट थे।
अहमदाबाद, जेएनएन। इसरो ने जब 15 फरवरी को पीएसएलवी सी-37 के जरिए सात देशों के कुल 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित किया दो देशभर के वैज्ञानिकों का सिर फख्र से ऊंचा हो गया। पूरी दुनिया इसरो की इस बड़ी उपलब्धि की तारीफ कर रही है। लेकिन, क्या आप जानते है कि भारत के इस रॉकेट सपने की पहली बार शुरूआत कब हुई थी? इस बात को जानने के लिए आपको साल 1962 की ओर मुड़ना होगा।
पहली बार अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) में विक्रम साराभाई के नेतृत्व में हुई नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (एनसीएसआर) की बैठक में इस सपने की बुनियाद रखी गई थी। उस वक्त, अमेरिकन नाइक अपाचे साउंडिंग रॉकेट को अंतरिक्ष के बारे में जानने के लिए भेजे जाने का प्रस्ताव था। लेकिन, बुधवार को पीएसएलवी ने जिन 104 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया उनमें से 96 अमेरिकन सैटेलाइट थे।
यह भी पढ़ें: इसरो ने अंतरिक्ष में बनाया विश्व रिकॉर्ड, वैश्विक मीडिया हुआ भारत का कायल
उस समय एनसीएसआर की बैठक में तीन अहमदाबाद के वैज्ञानिक थे- डॉक्टर प्रफुल्ल कुमार भवसार, डॉ. सत्य प्रकाश और प्रोफेसर यूडी देसाई। साराभाई ने संयुक्त राष्ट्र और नासा से त्रिवेन्द्रम में थुम्बा रॉकेट लाउंचिंग स्टेशन बनाने में मदद मांगी थी। साल 1963 में जब पहली बार रॉकेट छोड़ा गया तो उस वक्त प्रोफेसर भवसार और डॉक्टर जी.एस. मूर्ति ही उसके इंचार्ज थे। उस समय 725 किलोग्राम भार का नाइक-अपाचे साउंडिंग रॉकेट 21 नवंबर 1963 को छोड़ा गया था। उस रॉकेट की रफ्तार 3,800 किलोमीटर प्रति घंटे की थी।
एक अंग्रेजी अखबार के दिए इंटव्यूर में भवसार ने बताया कि विक्रम साराभाई तकनीक का इस्तेमाल और विज्ञान का विकास कर देश को गरीबी मुक्त बनाने चाहते थे। डॉ. साराभाई ने डॉ. भवसार को फिजिकल रिसर्च लाइब्रेरी के लिए साल 1948 में चुना था ताकि वो अंतरिक्षीय किरणों का अध्ययन कर सके।
डॉक्टर भवसार ने दावा किया कि साल 1950 में पीआरएल के अंदर मुख्य चर्चा का विषय रॉकेट और सैटेलाइट पर ही था। इसलिए, 20 नवंबर 1967 को पहली बार भारत ने स्वदेशी रॉकेट रोहिणी आरएच-75 को थुम्बा से लांच किया था। भवसार ने बताया कि पहली बार जब भारत ने स्वदेशी रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा था तब उसका मकसद यह देखना था कि भारत में इतनी क्षमता है कि नहीं कि वो अपना रॉकेट लांच कर सके। लेकिन, पहली बार में ही बड़ी जबरदस्त सफलता मिली थी।
यह भी पढ़ें: ISRO Satellite Launch: इतिहास रचने के बाद अब होगी चीन से टक्कर क्योंकि...