जानिए रोबोटिक असिस्टेड पार्शियल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के बारे में, पढ़े एक्सपर्ट की राय
डॉ. ईश्वर बोहरा ने बताया कि घुटने की समस्या से संबंधित अनेक ऐसे मामले होते हैं जहां पर आंशिक घुटना प्रत्यारोपण से मरीज को राहत मिल जाती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। घुटनों में दर्द, कड़ापन और मूवमेंट प्रभावित होने के कारण जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिसे ठीक करने के लिए डॉक्टर टोटल नी रिप्लेसमेंट (टीकेआर) की सलाह देते हैं। घुटनों की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए टोटल नी रिप्लेसमेंट सबसे प्रभावी और स्थायी इलाज माना जाता है, लेकिन अनेक ऐसे मरीज होते हैं, जिन्हें आंशिक घुटना प्रत्यारोपण (पार्शियल नी रिप्लेसमेंट संक्षेप में पीकेआर) सर्जरी से राहत मिल जाती है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि अधिकतर मरीजों को पूरे घुटने के प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं होती है, उनके लिए पार्शियल नी रिप्लेसमेंट आसान और बेहतर रहता है। इसमें मरीज की रिकवरी भी जल्दी होती है और सर्जरी के बाद उसी दिन या अगले दिन पीड़ित व्यक्ति घर जा सकता है। जानें क्या कहते है नई दिल्ली के बीएलके हॉस्पिटल के ऑर्थो एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. ईश्वर बोहरा।
आधुनिक सर्जरी के बारे में
रोबोटिक असिस्टेड पार्शियल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी आंशिक घुटना प्रत्यारोपण के लिए आधुनिक और बेहतर विकल्प है। घुटनों में ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण इसके एक या दो भागों में खराबी आ जाती है। इस खराबी को ठीक करने के लिए रोबोटिक आर्म असिस्टेड पार्शियल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की जाती है। अर्थराइटिस की शुरुआती स्थिति में केवल घुटनों का मिडियल कम्पार्टमेंट ही प्रभावित होता है। कभी-कभी साइड के भागों या पटेला फीमर में भी खराबी आ जाती है। एक्स-रे और एमआरआई के द्वारा डायग्नोसिस करने के बाद ही सर्जन पार्शियल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी का निर्णय लेता है। रोबोटिक टेक्नोलॉजी सर्जन को प्रत्येक मरीज के लिए विशेष 3 डी मॉडल उपलब्ध कराती है ताकि पहले से योजना बनाई जा सके।
पीकेआर के लाभ
- बेहतर मूवमेंट
- दर्द कम होता है
- खून कम निकलता है
- छोटा चीरा लगाया जाता है
- बेहतर फीडबैक प्राप्त करना
- जोड़ों की गति को सामान्य बनाए रखना
- टिश्यूज को कम से कम नुकसान पहुंचता है
ऑस्टियोअर्थराइस के कारण घुटनों का जो भाग क्षतिग्रस्त हुआ है, उसे बदल दिया जाता है जबकि इसके आसपास की स्वस्थ हड्डी, मुलायम टिश्यूज और लिगामेंट्स को छोड़ दिया जाता है। सर्जरी के दौरान सर्जन रोबोटिक आर्म को मरीज के लिए तैयार विशेष प्लान के अनुसार गाइड करता है और घुटनों की बनावट के अनुसार कृत्रिम इंप्लांट को स्थित कर दिया जाता है।
इस तकनीक से इंप्लांट लगाने में कोई गड़बड़ी नहीं होती है और अलाइनमेंट तथा बैलेंसिंग भी बिल्कुल सटीक होता है। सर्जरी के दो सप्ताह बाद मरीज अपने काम फिर से शुरू कर सकता है और बिना किसी परेशानी के सभी गतिविधियां कर सकता है अर्थात जमीन पर बैठ सकता है व अपने घुटने मोड़ सकता है।
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