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सड़क निर्माण की सुस्त हो गई चाल, रफ्तार बढ़ाने को लेकर मंत्रालय ने मांगे डेढ़ लाख करोड़

आर्थिक सुस्ती के परिणामस्वरूप चालू वित्तीय वर्ष के दौरान सड़क निर्माण की रफ्तार पिछले वर्ष के 30 किलोमीटर रोजाना से घटकर 25 किलोमीटर प्रति दिन से भी कम रह गई है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 09:25 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 09:37 PM (IST)
सड़क निर्माण की सुस्त हो गई चाल, रफ्तार बढ़ाने को लेकर मंत्रालय ने मांगे डेढ़ लाख करोड़
सड़क निर्माण की सुस्त हो गई चाल, रफ्तार बढ़ाने को लेकर मंत्रालय ने मांगे डेढ़ लाख करोड़

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चालू वर्ष में सड़क निर्माण की सुस्त हो गई चाल को रफ्तार देने के लिए सड़क मंत्रालय ने सरकार से बजट में 1.5 लाख करोड़ रुपये के आबंटन की मांग की है। मंत्रालय का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण निजी निवेश के बीओटी और हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल विफल हो गए हैं और कंपनियों को आकर्षित करने के लिए सरकारी निवेश पर आधारित ईपीसी मॉडल अपनाए जाने की जरूरत है। इसके अलावा एनएचएआइ पर कर्ज के बोझ को कम करने के लिए भी सरकारी निवेश में बढ़ोतरी आवश्यक हो गया है।

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आर्थिक सुस्ती के परिणामस्वरूप चालू वित्तीय वर्ष के दौरान सड़क निर्माण की रफ्तार पिछले वर्ष के 30 किलोमीटर रोजाना से घटकर 25 किलोमीटर प्रति दिन से भी कम रह गई है। इसमें एनएचएआइ ने जहां 2017-18 में 3320 किमी सड़कों का निर्माण किया था, वहीं चालू वित्तीय वर्ष में 4500 किमी के लक्ष्य के विपरीत दिसंबर तक लगभग 2्र900 किमी सड़कें बनी थीं। सुस्ती के कारण बीओटी और हाइब्रिड-एन्यूटी परियोजनाओं से जुड़ी सड़क निर्माता कंपनियों को कर्ज देने में बैंक आनाकानी करने लगे हैं। जिससे परियोजनाओं में विलंब हो रहा है।

हाईब्रिड-एन्यूटी मॉडल

इसे देखते हुए सड़क मंत्रालय ने अब बीओटी और हाइब्रिड-एन्यूटी के बजाय ईपीसी मॉडल को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। पिछले चार-पांच महीनों के दौरान एनएचएआइ द्वारा अवार्ड की गई लगभग सभी परियोजनाएं ईपीसी आधारित हैं। सड़क निर्माण के बीओटी मॉडल में पूरा पैसा निजी कंपनी लगाती है और बाद में टोल के जरिए मुनाफे समेत उसकी भरपाई करती है। हाईब्रिड-एन्यूटी मॉडल में 40 फीसद राशि सरकार अग्रिम तौर पर निर्माता कंपनी को देती है, जबकि शेष 60 फीसद राशि कंपनी को खुद जुटानी होती है। सरकार का पैसा बाद में कंपनी टोल वसूल कर वापस कर देती है। जबकि ईपीसी में कांट्रैक्ट लेने वाली कंपनी को सरकार से पूरा पैसा मिलता है। सड़क बनने के बाद सरकार अपने पैसे की भरपाई टोल के ठेके उठाकर करती है।

पिछले तीन सालों से सड़क मंत्रालय के बजट में बढ़ोत्तरी

सड़क निर्माण के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए सरकार पिछले तीन सालों से सड़क मंत्रालय के बजट में बढ़ोतरी करती आ रही है। वर्ष 2017-18 में मंत्रालय को लगभग 61 हजार करोड़ तो 2018-19 में लगभग 79 हजार करोड़ रुपये का बजटीय आबंटन प्राप्त हुआ था। जबकि भारतमाला प्रोजेक्ट के मद्देनजर जुलाई में पेश 2019-20 के बजट में 83 हजार करोड़ रुपये की बढ़ी राशि आबंटित की गई थी। इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सेस में एक रुपये की बढ़ोतरी की गई थी।

सड़क निर्माण में वृद्धि की चुनौती के अलावा एनएचएआइ पर बढ़ रहे कर्ज को काबू में करने के लिए भी सड़क मंत्रालय की ओर से ज्यादा बजट की मांग की गई है। पिछली सड़क परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एनएचएआइ अब तक 1.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज ले चुका है। इससे उस पर इनके मूलधन के अलावा ब्याज अदायगी का बोझ दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। सड़क मंत्रालय नहीं चाहता है कि कर्ज और बढ़े। इसके लिए मंत्रालय ने पिछले दिनो एनएचएआइ को पूरी हो गई सड़क परियोजनाओं से धन जुटाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट बनाने का अधिकार कैबिनेट से दिलवाया है।


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