नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

हादसा 1 : टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की रविवार को महाराष्ट्र के पालघर में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, दोपहर करीब तीन बजे हुई दुर्घटना से ठीक पहले उनकी एसयूवी ने 20 किलोमीटर का सफर सिर्फ 9 मिनट में पूरा किया था। पिछली सीट पर बैठे मिस्त्री ने सीट बेल्ट भी नहीं पहनी थी।

हादसा 2 : दो महीने पहले मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से चार धाम यात्रा पर निकले तीर्थयात्रियों की बस उत्तरकाशी में खाई में गिर गई। शाम करीब 7.30 बजे हुए हादसे ने 26 लोगों की जान ले ली। बस में सवार एक चश्मदीद ने बताया कि झपकी आने से ड्राइवर ने नियंत्रण खो दिया था। बस की स्पीड भी ज्यादा थी।

हादसा 3 : पांच महीने पहले उदयपुर में एक बड़ा हादसा हुआ था। पिकअप वैन ने पहले एक बाइक को टक्कर मारी। पकड़े जाने से बचने के लिए नशे में धुत ड्राइवर वैन को तेज भगाने लगा। नतीजा यह हुआ कि वैन अनियंत्रित होकर 30 फीट गहरी खाई में जा गिरी। शाम करीब 7 बजे हुए इस हादसे में 3 मासूमों समेत 7 लोगों की जान चली गई थी।

दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं में 11% मौतें भारत में होती हैं और ये तीनों हादसे इसकी वजहों को जाहिर करते हैं। तेज रफ्तार तथा लापरवाही, नींद और नशे में गाड़ी चलाना सड़क दुर्घटना में मौत के प्रमुख कारण हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट से भी यह बात साबित होती है। पिछले साल ओवरस्पीडिंग के कारण 87,050 और केयरलेस ड्राइविंग के कारण 42,853 लोगों की जान चली गई। रिपोर्ट से और कई चौंकाने वाली बातों का खुलासा होता है। मसलन, सबसे अधिक 38% सड़क हादसे दोपहर तीन से रात नौ बजे के बीच होते हैं।

सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के चीफ साइंटिस्ट वेलमुर्गन सेनाथिपति इन वजहों की बारीकी बताते हैं। वे कहते हैं, “भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है। यहां दोपहर में खाने के बाद लोगों को सुस्ती और नींद आती है। हाइवे पर हल्की झपकी भी बड़े हादसे का रूप ले सकती है। शाम को शराब पीकर गाड़ी चलाना भी एक समस्या है।” सेनाथिपति के अनुसार दिन ढलने और पूरी तरह रात होने के बीच हाइवे पर रौशनी कम होती है, यह भी हादसे की एक वजह है।”

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में शाम छह से नौ बजे के बीच 19.9% हादसे हुए। वहीं 17.6% दुर्घटनाएं दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक और 15.5% दुर्घटनाएं दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक हुईं। कुल 4,03,116 हादसों में 59.7% हादसे (2,40,828) तेज रफ्तार और लापरवाही के कारण हुए। इनकी वजह से 87,050 लोगों की जान चली गई और 2,28,274 घायल हुए। खतरनाक तरीके से वाहन चलाने और ओवरटेकिंग के कारण 1,03,629 हादसे हुए, जिनमें 42,853 लोगों की जान गई और 91,893 को चोट आई।

हर चार मिनट में सड़क हादसे में एक की मौत

पिछले साल पूरे देश में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख लोगों की जान चली गई। यानी रोजाना औसतन 426 लोगों को या हर घंटे 18 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह किसी कैलेंडर वर्ष में अब तक का रिकॉर्ड है। भारत में हर 4 मिनट में सड़क हादसे में एक मौत हो जाती है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि प्रति हजार वाहनों पर मृत्यु की दर बढ़ रही है। यह 2019 में 0.52 और 2020 (कोविड वर्ष) में 0.45 थी, लेकिन 2021 में बढ़कर 0.53 हो गई। इससे पहले 2018 में यह दर 0.56 तथा 2017 में 0.59 थी।

मोबाइल का इस्तेमाल बन रहा जानलेवा

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच सालों में ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से करीब 40 हजार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। यह संख्या हर साल बढ़ रही है। वर्ष 2016 में 4976, 2017 में 8526, 2018 में 9039 और 2019 में 10522 दुर्घटनाएं मोबाइल के कारण हुईं। साल 2020 अपवाद है जब 6753 दुर्घटनाएं हुई थीं, हालांकि उस साल कोरोना का लॉकडाउन भी था। विशेषज्ञों के अनुसार मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना हल्के नशे में गाड़ी चलाने से ज्यादा घातक हो सकता है। मोबाइल पर बात करने के दौरान व्यक्ति का रिएक्शन टाइम बढ़ जाता है और वह नियंत्रण खो बैठता है।

राष्ट्रीय राजमार्गों पर ज्यादा दुर्घटनाएं

राज्य स्तरीय राजमार्गों की तुलना में राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 2019 में 30.5% सड़क हादसे राष्ट्रीय राजमार्गों पर और 24.3% राज्यीय राजमार्गों पर हुए। 2021 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,22,204 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 53,615 लोगों की मौत हो गई। प्रति 100 किलोमीटर पर 92 दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें 40 लोगों की जान चली जाती है।

पिछले वर्षों के आंकड़ों से भी इसी ट्रेंड का पता चलता है। 2017 में कुल 4,64,910 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, इनमें राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,41,466 और राज्यीय राजमार्गों पर 1,16,158 दुर्घटनाएं हुईं। 2018 में कुल 4,67,044 सड़क दुर्घटनाओं में से 1,40,843 राष्ट्रीय राजमार्गों पर और 1,17,570 राज्यीय राजमार्गों पर हुईं। 2019 में कुल 4,49,002 सड़क दुर्घटनाओं में 1,37,191 राष्ट्रीय राजमार्गों पर जबकि 1,08,976 राज्यीय राजमार्गों पर हुईं।

इन राज्यों में घायल कम, मौतें ज्यादा

आमतौर पर सड़क हादसों में मौत से ज्यादा लोग घायल होते हैं, लेकिन मिजोरम, पंजाब, झारखंड और उत्तर प्रदेश में घायलों की तुलना में मौतें ज्यादा होती हैं। मिजोरम में 64 सड़क हादसों में 64 लोगों की मौत हुई और 28 लोग घायल हुए; पंजाब में 6,097 सड़क दुर्घटनाओं में 4,516 की मौत हुई और 3,034 घायल हुए; झारखंड में 4,728 सड़क दुर्घटनाओं में 3,513 की मौत हुई और 3,227 घायल हुए; और उत्तर प्रदेश में, 33,711 सड़क दुर्घटनाओं में 21,792 लोगों की मौत हुई और 19,813 लोग घायल हुए।

दोपहिया वाहन चलाने वाले सबसे अधिक शिकार

सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक शिकार दोपहिया वाहन चालक हो रहे हैं। 2019 में 47,936 दोपहिया वाहन दुर्घटना के शिकार हुए थे, जिनमें 17,883 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। 2020 में दोपहिया वाहनों की 44,784 दुर्घटनाओं में 18,200 लोगों की मौत हुई थी। 2019 में सड़क हादसों में 7749 पैदल यात्री मारे गए थे जबकि 2020 में इनकी संख्या 7753 थी।

सीआरआरआई के डॉ. रवींद्र कुमार कहते हैं कि बाइक में सबसे बड़ी समस्या बैलेंस की होती है। छोटा सा गड्ढा आने पर भी बाइक डिसबैलेंस हो जाती है। बाइक में लोड फैक्टर भी काम करता है। हल्की बाइक हो या सिर्फ एक आदमी बाइक पर हो तो गड्ढा पड़ने पर वह जल्दी डिसबैलेंस हो जाएगी। बाइक सवार ज्यादातर आगे चल रही बड़ी गाड़ी से दूरी भी कम रखते हैं। इसलिए भी वे हादसों का शिकार ज्यादा होते हैं। आईआईटी बीएचयू के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. अंकित गुप्ता कहते हैं कि टू व्हीलर चालक को हेलमेट अनिवार्य तौर पर पहनना चाहिए। ज्यादातर मामलों में दोपहिया चालकों की मौत हेलमेट नहीं पहनने के कारण ही होती है।

रोड सेफ्टी एक्सपर्ट मनीष पिल्लीवार कहते हैं कि हाइवे या अर्बन एरिया में सड़कों की चौड़ाई बढ़ने से बाइक्स की स्पीड बढ़ी है। रोड सेफ़्टी की अनदेखी करना भी एक कारण है। लोग हाइवे में किसी भी लेन में टूव्हीलर चलाते हैं, जो नियमों के खिलाफ है। मनीष के अनुसार ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी या सर्विस की काफी डिमांड है। तय समय में डिलीवरी पहुंचाने के चक्कर में भी दोपहिया वाहनों के हादसे हो रहे हैं।

एक दशक में सड़क हादसे में 13 लाख मौत

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सड़क दुर्घटनाओं में हताहत होने वालों में सबसे ज्यादा भारत के होते हैं। भारत में दुनिया के सिर्फ एक फीसदी वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा 11 प्रतिशत है। देश में हर घंटे 53 सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं और हर चार मिनट में एक मौत होती है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में भारतीय सड़कों पर 13 लाख लोगों की मौत हुई है और 50 लाख लोग घायल हुए हैं।

सड़क दुर्घटनाओं से जीडीपी को नुकसान

विश्व बैंक के अनुसार भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते 5.96 लाख करोड़ रुपये यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.14 प्रतिशत के बराबर नुकसान होता है। हालांकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का अनुमान है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं से हर साल लगभग 1.47 लाख करोड़ रुपये की सामाजिक व आर्थिक क्षति होती है, जो जीडीपी के 0.77 प्रतिशत के बराबर है। मंत्रालय के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों में 76.2 प्रतिशत ऐसे थे जिनकी उम्र 18 से 45 साल के बीच थी, यानी वे लोग कामकाजी आयु वर्ग के थे।

सड़क हादसे कम करने के उपाय

स्पीड गवर्नेंस- रायपुर के रोड सेफ्टी एक्सपर्ट मनीष पिल्लीवार कहते हैं, अब समय आ गया है कि ऐसे रोड एक्सीडेंट रोकने के लिए टूव्हीलर डिलीवरी सर्विस के वाहनों में गति की सीमा तय हो, स्पीड गवर्नेंस लगाया जाए।

सर्विस लेन में चले दोपहिया वाहन- मनीष के अनुसार शहरों में सर्विस रोड में दोपहिया वाहन के लिए लेन अनिवार्य किया जाए। हाइवे में कहीं भी किसी भी दिशा से ये वाहन घुस जाते हैं, उससे ही ज्यादातर हादसे होते हैं।

सेफ्टी रूल्स- पिल्लीवार बताते हैं कि आज भी सड़क हादसे में सबसे ज्यादा मौत बिना हेलमेट वालों की होती है। इसे लेकर गंभीरता से पालन किया जाए। स्कूल-कॉलेज में सड़क हादसे की रिपोर्ट को कोर्स में शामिल कर युवाओं को ट्रैफिक रूल्स का पालन करने के लिए जागरूक करना चाहिए। आईआईटी बीएचयू के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. अंकित गुप्ता कहते हैं कि टू व्हीलर चालकों को हेलमेट जरूर पहनना चाहिए। इससे हादसों में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है।

सड़क पर खड़े वाहनों के कारण भी दुर्घटना : एनएच व फोरलेन पर रात के समय चालक सड़क किनारे वाहनों को खड़ा कर आराम करने लगते हैं। सर्दी के मौसम में धुंध के कारण तेज रफ्तार से गुजरने वाले वाहन चालकों को खड़ी गाड़ी दिखती नहीं, जिसके कारण भी दुर्घटनाएं होती हैं।

पर्याप्त आराम : सेव लाइफ फाउंडेशन के विशेषज्ञों के अनुसार सुरक्षित गाड़ी चलाने के लिए जरूरी है कि ड्राइवर ने पर्याप्त नींद ली हो। नियमित व्यायाम के साथ ही चालक को लंबी यात्रा के दौरान हल्का-फुल्का खाने के साथ पानी भी पीते रहना चाहिए।

असुरक्षित वाहन : सड़कों हादसों की एक और वजह वाहन का असुरिक्षत होना है। इसके लिए टायर में हवा का दबाव, ब्रेक पैड, तेल और कूलेंट, टायर की दशा आदि का ध्यान रखना जरूरी है।

सड़कें व खराब मौसम : सीआरआरआई के डा. रवींद्र कुमार कहते हैं धुंध, कोहरा, तेज बारिश, आंधी वाले मौसम में धीमी गति से गाड़ी चलानी चाहिए। इस दौरान दृश्यता कम होती है और अचानक ब्रेक लगाने पर गाड़ी आम मौसम की अपेक्षा कुछ ज्यादा दूर जाकर रुकती है। इसी तरह अंधे मोड़ पर बेहद सावधानी बरतनी चाहिये। ऐसी जगहों पर मुड़ते वक्त हार्न और डिपर (पास) का प्रयोग जरूर करना चाहिए।