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निष्प्राण हो रहीं पश्चिमी उप्र की नदियां

विकास की अंधी दौड़ ने उत्तर प्रदेश में समूचे नदी तंत्र का चाल-चलन और चरित्र बदल दिया है। बाहुपाश में बांधने की मानवीय प्रवृति ने नदियों की उन्मुक्त प्रवाह को रोक दिया है और अपनी नैसर्गिकता भंग होने से तमाम छोटी-बड़ी नदियां अब खुद मोक्ष मांग रही हैं। बरसात को छोड़ साल के बाकी महीने नदियों के

By Edited By: Published: Sun, 06 Jul 2014 09:48 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jul 2014 09:26 AM (IST)
निष्प्राण हो रहीं पश्चिमी उप्र की नदियां

मेरठ [देवेश त्यागी] विकास की अंधी दौड़ ने उत्तर प्रदेश में समूचे नदी तंत्र का चाल-चलन और चरित्र बदल दिया है। बाहुपाश में बांधने की मानवीय प्रवृति ने नदियों की उन्मुक्त प्रवाह को रोक दिया है और अपनी नैसर्गिकता भंग होने से तमाम छोटी-बड़ी नदियां अब खुद मोक्ष मांग रही हैं। बरसात को छोड़ साल के बाकी महीने नदियों के निर्जला रहने का दिन होता है। ये सिलसिला कुछ दिन और चला तो गंगा-यमुना के दोआब का बहुत बड़ा हिस्सा रेगिस्तान में बदल जाएगा।

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प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन का सर्वाधिक खामियाजा नदियां भुगत रही हैं। जिस गंगा में घुलित आक्सीजन को बरकरार रखने की विलक्षण क्षमता है, आज वही निष्प्राण होती जा रही है। मानवीय हस्तक्षेप से नदियां रेंग रही हैं और इस वजह से इनका तल लगातार ऊपर उठ रहा है। गहराई कम होते जाने से जलीय जीवों और जल संपदा का हृास तेजी से होने लगा है। बिजनौर बैराज पर गंगा में समाहित होने वाली मालन नदी कब की मर चुकी है, बरसात जरूर इसे कुछ दिन के लिए आक्सीजन देती है। बिजनौर से लेकर मुरादाबाद तक गांगन भी मृतप्राय: हो चुकी तो गंगा को बांध देने की वजह से जेपीनगर के धनौरा और गजरौला क्षेत्र से शुरू होने वाली यगद और बगद नदियां कोमा में चली गई हैं। तटबंध बनाने से गंगा के प्रवाह को भूगर्भीय जलधाराओं से गतिमान बनाने वाली इसी जिले की सुजमना, लालापुर, सिमतला, तरारा और रानीवाला की झीलें खत्म सी हो गई हैं।

अथाह जल संग्रह करने वाली गंगा पर अनगिनत बांध बनाए जाने से इस पर निर्भर उप्र और बिहार की 40 प्रतिशत खेती चौपट होने जा रही है। सच तो यही है कि शिव की जटाओं में उलझी गंगा को अविरल प्रवाह मिल गया था लेकिन टिहरी से लेकर बुलंदशहर के नरौरा तक पांच बड़े बांधों में उलझी गंगा मुक्ति के लिए दशकों से छटपटा रही है। बीएचयू के वैज्ञानिक प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी की रिपोर्ट खुलासा करती है कि किस तरह गंगा बालू के रेत में तब्दील हो रही है और घटते प्रवाह से पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है। पर्यावरण संतुलन के लिए नदी का गहरा होना बेहद जरूरी है ताकि जल में आक्सीजन बनाए रखने की क्षमता बनी रहे। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. भरत झुनझुनवाला ने ऋषिकेश, हरिद्वार और देवप्रयाग में 2011 में हुए सर्वे की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि टिहरी बांध से गंगा जल की गुणवत्ता घटने से हर साल जनता को 7980 और तीर्थ यात्रियों को 4666 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इससे बदतर हाल तो यमुना का है। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान विभाग इलाहाबाद की टीम की सर्वे रिपोर्ट पर वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएन सेठ यमुना को मरने की संज्ञा दे चुके हैं। इसमें कहा गया था कि पानीपत से आगे यमुना का अस्तित्व खत्म हो चुका है, इससे आगे केवल दिल्ली का गंदा पानी बहता है। यही हाल इसकी सहायक नदियों ¨हडन, काली, कृष्णी, ढमोला, पांवधोई और नाग देवी का है।


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