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बढ़ते तापमान से पैदा हो सकता है जल संकट, आज ही से करना होगा जल प्रबंधन

भविष्‍य में पेयजल संकट हमारे सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी न करे इसके लिए हमें आज ही इस पर काम शुरू करना होगा। अगर हमने इस संकट को रोकने में देर की तो हमारा जीवन बेहद परेशानी से भरा होगा।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 22 Mar 2022 08:19 PM (IST)Updated: Tue, 22 Mar 2022 08:19 PM (IST)
बढ़ते तापमान से पैदा हो सकता है जल संकट, आज ही से करना होगा जल प्रबंधन
भूजल प्रणालियों के प्रबंधन में छूट नहीं देनी चाहिए

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ विवेक तिवारी। इस साल मार्च से ही देश के ज्यादातर हिस्से में गर्म हवाएं दर्ज की जा रही हैं। समय से पहले गर्मी का तेजी से बढ़ना साफ तौर पर जलवायु परिवर्तन की ओर संकेत करता है। ये साफ है कि आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन के कारण हमें कई चुनौतियों से जूझना होगा। इन चुनौतियों में एक बड़ा संकट 'पेय जल संकट' होगा। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (CSE) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने विश्व जल दिवस (World Water Day ) के मौके पर कहा कि हम जलवायु परिवर्तन के युग में रह रहे हैं। ऐसे में हमें आज ही तय करना होगा कि हम आने वाले दिनों में पेय जल संकट से कैसे निपटेंगे। ये ही तय करेगा कि आने वाले समय में चरम जलवायु परिवर्तन के हालात में हम बचेंगे या नहीं।

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सीएसई महानिदेशक ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते धरती का तापमान बढ़ रहा है। बढ़ी हुई और चिलचिलाती गर्मी और अत्यधिक बारिश दोनों का जल चक्र से सीधा संबंध है। इसलिए, जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए हमें आज से ही जल स्रोतों और उसके प्रबंधन पर काम शुरू करना होगा।

भारत में इस साल गर्मी को लेकर 2021 जैस हालात बन रहे हैं। 2021 में फरवरी की शुरुआत में ही देश के कई हिस्सों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। CSE की डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर क्लाइमेट चेंज अवंतिका गोस्वामी के मुताबिक, 2021 ला नीना का साल था। प्रशांत सागर की जल धाराएं भी गर्म होने लगी हैं जो विश्व में ठंड बढ़ाने के लिए जानी जाती हैं। भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग ने ला नीना के इन जल धाराओं के शीतल प्रभाव को कम कर दिया है।

सीएसई के शोधकर्ताओं के मुताबिक, बढ़ती गर्मी का जल सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। तेज गर्मी से वॉटरबॉडीज से पानी तेजी से भाप बन कर उड़ेगा। सुनीता नारायण के मुताबिक, हमें तत्काल बड़े पैमाने पर पानी के भंडारण पर काम करने के साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि पानी का वाष्‍पीकरण कम से कम हो इसके लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। बढ़ते तापमान के साथ वाष्पीकरण की दर अब बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि पानी के भंडारण के लिए सबसे बेहतर विकल्प भूमिगत जल भंडारण, या कुओं पर काम करना है। सीएसई के शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत के सिंचाई योजनाकार और नौकरशाही काफी हद तक नहरों और अन्य सतही जल प्रणालियों पर निर्भर हैं - उन्हें भूजल प्रणालियों के प्रबंधन में छूट नहीं देनी चाहिए।

गर्मी बढ़ने से मिट्टी में भी नमी की कमी हो सकती है। यह भूमि को धूल-धूसरित कर देगा और सिंचाई की आवश्यकता को बढ़ा देगा। भारत जैसे देश में जहां अभी भी अधिकांश अनाज वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाया जाता है, यह भूमि क्षरण और धूल उड़ने की समस्या को बढ़ा देगा। ऐसे में इस बात पर काम करने की जरूरत है कि मिट्टी की पानी धारण करने की क्षमता को और बेहतर बनाया जा सके ताकि तीव्र गर्मी में भी जमीन उपजाऊ बनी रहे।

गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी की मांग काफी तेजी से बढ़ेगी। वहीं इसी मौसम में जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ती हैं। हमें इसके नियंत्रण के लिए खास तौर पर काम करने की जरूरत है। क्लाइमेट चेंज से सिर्फ गर्मी बढ़ने की ही मुश्किल नहीं है। अत्यधिक बारिश की घटनाओं की बढ़ती संख्या के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है। इसका मतलब है कि हम बारिश के बाढ़ के रूप में आने की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे बाढ़ के बाद सूखे का चक्र और भी तीव्र हो जाएगा। भारत में साल में पहले से ही कम बारिश के दिन होते हैं - ऐसा कहा जाता है कि साल में औसतन सिर्फ 100 घंटे बारिश होती है। अब बरसात के दिनों की संख्या और कम होगी, लेकिन अत्यधिक बारिश के दिनों में वृद्धि होगी।


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