Move to Jagran APP

भारतीय जांबाजों को रिटायरमेंट के बाद मिल रही पांच गुना सैलरी, पूरी दुनिया में है मांग

Indian Navy के रिटायर जांबाजों की समुद्री सुरक्षा के लिए पूरी दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। समुद्री लुटेरों के लिए ये जांबाज खौंफ का पर्याय बन चुके हैं।

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 27 Jul 2019 12:07 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jul 2019 05:58 PM (IST)
भारतीय जांबाजों को रिटायरमेंट के बाद मिल रही पांच गुना सैलरी, पूरी दुनिया में है मांग
भारतीय जांबाजों को रिटायरमेंट के बाद मिल रही पांच गुना सैलरी, पूरी दुनिया में है मांग

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सोमालिया दुनिया के नक्शे पर एक छोटा सा पूर्वी अफ्रीकी देश, जिसकी आबादी मात्र डेढ़ करोड़ के करीब है। बावजूद यहां दुनिया के सबसे खूंखार समुद्री लुटेरे बसते हैं। सोमालियन समुद्री लुटेरों (Somalian Pirates) का खौंफ पूरी दुनिया में है। समुद्र में इनके आतंक से नजदीकी देशों की नौसेना के लड़ाकू पोत भी सुरक्षित नहीं रहते। कई बार इन समुद्री डाकुओं ने नौसेना के युद्धपोतों का भी अपहरण करने का प्रयास किया है। एक तरह जहां सोमालियन लुटेरे पूरी दुनिया के लिए खौंफ का सबब बने हुए हैं, वहीं ये खतरनाक समुद्री लुटेरे भारतीय जांबाजों से खौंफ खाते हैं। यही वजह है कि समुद्री सुरक्षा के लिए भारतीय जांबाजों की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है।

loksabha election banner

मालूम हो कि सोमालिया के नजदीकी समुद्र से तमाम देशों के तेल के टैंकर निकलते हैं। इसके अलावा सोमालिया का समुद्री क्षेत्र कई देशों के बीच प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग भी है। इसलिए यहां से गुजरने वाले समुद्री जहाजों की संख्या बहुत ज्यादा है। AK-47 और रॉकेट लॉचर जैसे खतरनाक ऑटोमेटिक हथियारों से लैस सोमालियन समुद्री लुटेरे इन जहाजों का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलते हैं। इनके पास तेज रफ्तार नावें होती हैं और ये बड़े से बड़े जहाज पर लंगर फेंक चढ़ने में माहिर होते हैं।

अपने मंसूबों में कामयाब न होने पर सोमालियन समुद्री लुटेरे जहाज पर हमला कर उसे डुबोने से भी पीछे नहीं हटते। यही वजह है कि पर्याप्त सुरक्षा के साथ न चलने वाले बहुत से जहाज इन समुद्री लुटेरों का आसान शिकार बन जाते हैं। इन सोमालियन समुद्री लुटेरों ने इतिहास में कई बड़ी लूट और नरसंहार जैसी घटनाओं को अंजाम दिया है। माना जाता है कि इस बेहद गरीब देश सोमालिया की अर्थ व्यवस्था काफी हद तक इन्हीं खतरनाक समुद्री लुटेरों और उनके गिरोहों पर निर्भर करती है।

रिटारयरमेंट के बाद मिल रही मोटी सैलरी
वहीं भारतीय नौसेना के जांबाज इन समुद्री लुटेरों को मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं। यही वजह है कि भारत के इन प्रशिक्षित समुद्री योद्धाओं की रिटायरमेंट के बाद पूरी दुनिया में तेजी से मांग बढ़ रही है। आलम ये है कि भारतीय नौसेना में नौकरी के दौरान इन्हें जितनी तनख्वाह मिलती है, उसकी पांच गुना तक सैलरी इन्हें रिटायरमेंट के बाद शिपिंग कंपनियां दे रही हैं। समुद्री सुरक्षा के लिए दुनिया भर में काम करने वाली सिक्योरिटी एजेंसियों में भारतीय नौसेना के ट्रेंड रिटायर कर्मचारियों को मोटी तनख्वाह पर नौकरी दी जा रही है। इनकी जिम्मेदारी होती है समुद्री सफर के दौरान अपने जहाज की सोमालियन डाकुओं से सुरक्षा करना। इस काम में भारतीय नौसेना के ये रिटायर जांबाज माहिर हैं।

वैश्विक कंपनियों के लिए फायदे का सौदा
समुद्री सुरक्षा के लिए काम करने वाली वैश्विक कंपनियां सोमालिया के आसपास समुद्री डाकुओं से निपटने के लिए कम वेतन पर ट्रेंड सुरक्षाकर्मी रखना चाहती हैं। ऐसे में एशिया उनके लिए बड़ी संभावना का केंद्र बन चुका है। भले ही भारतीय नौसेना के रिटायर जांबाजों को समुद्री सुरक्षा की नौकरी में पांच गुना तनख्वाह मिल रही हो, लेकिन वैश्विक स्तर पर ये काफी सस्ती सेवा है। ऐसे में जहां एक तरफ भारतीय सशस्तर बलों के जवानों को पैसे कमाने का एक नया रास्ता मिल गया है, वहीं वैश्विक कंपनियों के लिए भी ये फायदे का सौदा साबित हो रहा है।

पता नहीं होता था घर वापस लौटेंगे या नहीं
एक ऑयल कंपनी में काम करने वाले मर्चेंट नेवी के अधिकारी बीरेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि समुद्र की दुनिया बहुत अनोखी होती है। वहां आपको किसी तरह की मदद मिलना बहुत मुश्किल होता है। खास तौर पर जब आप समुद्री लुटेरों से घिरे हुए हों। हम जब भी सोमालिया या उसके आसपास से निकलते थे तो मन में एक अजीब सा डर रहता था। पता नहीं होता था कि कब कहां से लुटेरे आ जाएं। वो अपनी जान दांव पर लगाकर आते हैं और मानसिक रूप से खराब से खराब स्थिति के लिए तैयार रहते हैं। इसके विपरीत जहाज पर सवार कर्मचारी उस तरह से तैयार नहीं होते हैं। ऐसे में जब ऑटोमेटिक हथियारों से अचानक आपके जहाज पर हमला शुरू हो जाए तो आपको संभलने का वक्त भी नहीं मिलता। कुछ साल पहले तक समुद्री जहाज पर जाने पर पता नहीं होता था कि घर वापस लौटेंगे या नहीं। अब स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। निजी कंपनियां जहाज और कर्मचारियों की सुरक्षा पर पहले से ज्यादा ध्यान दे रही हैं।

ऐसे शुरू हुआ भारतीय जांबाजों का सफर
वर्ष 2000 के करीब सोमालिया आसपास समुद्री डकैतों का आतंक चरम पर था। उसी वक्त निजी समुद्री सुरक्षा कंपनियों की शुरूआत हुई। शुरूआत में इन सुरक्षा कंपनियों ने ब्रिटेन, अमेरिका और ग्रीस आदि देशों के रिटायर सशस्त्र बल के सुरक्षाकर्मियों की भर्ती शुरू की। इनमें ज्यादातर पूर्वी सैनिक ही हुआ करते थे। समुद्री सुरक्षा के इस उद्योग ने तेजी से पांव पसारे, नतीजत इस तरह की सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। इसके साथ ही भारत समेत अन्य एशियाई देशों में भी इन सुरक्षा कंपनियों की पहुंच बढ़ी। सुरक्षा कंपनियों को एशिया में ब्रिटेन, अमेरिका और ग्रीस जैसे देशों के मुकाबले भारत व श्रीलंका में कम वेतन पर और ज्यादा अनुभवी सुरक्षाकर्मी मिलने लगे। यहीं से भारतीय नौसेना के रिटायर जांबाजों ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर लिया। अब इनकी मांग पूरी दुनिया में है।

पश्चिम देशों के मुकाबले आधे से कम वेतन
आज समुद्री सुरक्षा में जुटे जांबाजों में तकरीबन दो-तिहाई संख्या भारत, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा और फिलीपींस जैसे एशियाई देशों के सुरक्षाकर्मियों की है। इन एशियाई सुरक्षाकर्मियों को पश्चिमी देशों के गार्डों के मुकाबले में आधे से भी कम वेतन का भुगतान किया जाता है। पश्चिमी देश के अनुभवी सुरक्षाकर्मी या टीम लीडर को तकरीबन 4500 डॉलर की सैलरी मिलती है। उसी पोस्ट पर तैनात एक अनुभवी भारतीय सुरक्षाकर्मी को तकरीबन 2000 डॉलर का ही भुगतान किया जाता है। इसी तरह पश्चिमी देश के एक कम प्रशिक्षित या नए सुरक्षाकर्मी को जहां लगभग 1600 डॉलर का भुगतान किया जाता है, वहीं उसी के समकक्ष भारतीय सुरक्षाकर्मी को प्रति माह मात्र 750 डॉलर की ही तनख्वाह दी जाती है। तनख्वाह में भले भारी अंतर हो, लेकिन अनुभव और दक्षता में एशियाई सुरक्षाकर्मी, पश्चिमी देशों के सुरक्षाकर्मियों पर भारी पड़ते हैं।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.