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इंटरनेट की आजादी से छेड़छाड़ पर लगाम, रुकेगी कंपनियों की मनमानी

नेट पक्षपात इन दिनों काफी प्रचलित हो चला है। भले ही बहुत से इंटरनेट उपभोक्ता इससे अनभिज्ञ हों, पर कभी न कभी इसका शिकार जरूर हुए होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 09:20 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 09:29 AM (IST)
इंटरनेट की आजादी से छेड़छाड़ पर लगाम, रुकेगी कंपनियों की मनमानी
इंटरनेट की आजादी से छेड़छाड़ पर लगाम, रुकेगी कंपनियों की मनमानी

[मोहम्मद शहजाद]। साइबर संसार ज्ञान का अथाह समंदर है। इस दुनिया में हर पल कुछ न कुछ नया घटित होता है। यही वजह है कि इसकी बहुत सी गतिविधियों से या तो हम अनजान रहते हैं या फिर जानते हुए भी दरगुजर कर जाते हैं। ऐसा ही एक पहलू नेट पक्षपात है जो इन दिनों काफी प्रचलित हो चला है। भले ही बहुत से इंटरनेट उपभोक्ता इससे अनभिज्ञ हों, पर कभी न कभी इसका शिकार जरूर हुए होंगे। इसके तहत इंटरनेट सेवा प्रदाता (आइएसपी) कंपनियां कुछ वेब-ट्रैफिक को ब्लॉक करने से लेकर उनकी रफ्तार को कम-ज्यादा कर देती हैं या फिर विभिन्न पैक व सामग्रियों के लिए अलगअलग शुल्क वसूल करती हैं। ऐसी कंपनियों की अब खैर नहीं है, क्योंकि भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने टेलीकॉम रेग्यूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) की सिफारिश के आधार पर नेट न्यूट्रैलिटी अर्थात नेट निरपेक्षता की दिशा में कारगर कदम बढ़ा दिया है।

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दूरसंचार विभाग ने हाल में जारी अपनी नई नीति में नेट तटस्थता को मंजूरी दी है। नई नीति से इंटरनेट सेवा प्रदान करने में किए जा रहे भेदभाव पर काबू पाने की उम्मीदें रौशन हुई हैं। कारण इसमें नेट न्यूट्रैलिटी से संबंधित नियम-कानूनों में अत्यधिक कठोर प्रावधानों को शामिल किया जाना है। इसे दुनिया की अब तक कि सबसे सख्त नीति के तौर पर देखा जा रहा है। अपनी नई दूरसंचार नीति में दूरसंचार विभाग ने ट्राई के जरिये नवंबर 2017 में सुझाई गई लगभग तमाम सिफारिशों को मंजूरी दे दी है। इसके तहत इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को निर्बाध इंटरनेट सेवा प्रदान करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उनके लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है।

इसके साथ ही अब मोबाइल ऑपरेटर, इंटरनेट सेवा प्रदाता या सोशल मीडिया कंपनियां सामग्री उपलब्ध कराने से लेकर इंटरनेट की रफ्तार के मामले में किसी खास या पसंदीदा वेबसाइट को तरजीह नहीं दे पाएंगी। इससे लोगों को किसी विशेष सामग्री की नेट सर्फिंग करते हुए अचानक आने वाली उसमें कम रफ्तार जैसी बाध्यताओं की चिड़चिड़ाहट से निजात मिलेगी। साथ ही उन्हें अब उन तमाम अनचाही वेबसाइट्स और एप्स के अचानक खुलने से भी छुटकारा मिल जाएगा जिन्हें प्रायोजित होने के कारण इंटरनेट प्रदाता कंपनियां तरजीह देती रही हैं। दूरसंचार विभाग ने स्पष्ट किया है कि नेट निरपेक्षता नियमों का उल्लंघन करने का मतलब इंटरनेट प्रदाता और टेलीकॉम प्रदाता कंपनियों को दिए गए लाइसेंस का उल्लंघन माना जाएगा।

दरअसल आइपीसी या टीपीसी कंपनियां कुछ वेब-ट्रैफिक को ब्लॉक करने या फिर उनकी रफ्तार को कम-ज्यादा करने का गोरखधंधा करती हैं। इसके पीछे उनके कारोबारी उद्देश्य होते हैं, क्योंकि इसके बदले इंटरनेट प्रदाता कंपनियां उन वेबसाइटों से भारी रकम वसूलती हैं। इसकी वजह से नेट उपभोक्ताओं को काफी दिक्कतें होती हैं। इसी भेदभाव को खत्म करने के सिद्धांत को ‘नेट-न्यूट्रैलिटी’ अर्थात नेट निरपेक्षता या तटस्थता कहा जाता है। दरअसल इंटरनेट की दुनिया में भेदभाव कोई नया मामला नहीं है।

विशेषज्ञों का तो मानना है कि यह उतना ही पुरान है जितना कि इंटरनेट, लेकिन इसका पहला मामला 2007 में उस समय सामने आया जब अमेरिका आधारित इंटरनेट सेवा प्रदाता कॉमकास्ट पर बिटोरेंट की फाइलों की अपलोडिंग में देरी करने का आरोप लगा। तब अमेरिका की फेडरल कम्युनिकेशन एजेंसी (एफसीसी) ने अगस्त 2008 में कॉमकास्ट को इस पक्षपातपूर्ण रवैये के लिए मना किया। इसके बावजूद ये धंधा जारी रहा। 2014 में एक बार फिर कॉमकास्ट पर नेटफिलिक्स ने अपनी सेवाओं की बफरिंग रफ्तार कम करने का आरोप लगाया। इसके नतीजे में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अपील पर एफसीसी को 2015 में सख्त कानून बनाने पड़े।

भारत में नेट न्यूट्रिलैटी पर बहस ने उस समय जोर पकड़ा जब 2015 में फेसबुक अपनी फ्री- बेसिक्स प्रोग्राम के जरिये कुछ वेबसाइटों तक मुफ्त पहुंच की सुविधा दी। जाहिर है कि इसके बाद अपने व्यापार को बढ़ाने देने के लिए कुछ वेबसाइट की रफ्तार को तेज करना और कुछ को धीमा करने की आशंका जोर पकड़नी थी और ऐसा हुआ भी। फेसबुक के साथ-साथ एयरटेल और गूगल ने भी इस तरह सेवाएं शुरू कर दीं। इसी के मद्देनजर इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों, सामग्री प्रदाता वेबसाइटों, उपभोक्ता समूह के प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों से लगभग एक साल की सघन बातचीत और विचार विमर्श के बाद ट्राई ने गत वर्ष नवंबर माह में अपनी सिफारिशें पेश की थीं।

संयोगवश नवंबर 2017 में जब ट्राई ने नेट तटस्थता के संबंध में अपनी सिफारिशें पेश की थीं, उसके चंद रोज बाद ही अमेरिकी फेडरल कम्युनिकेशन्स कमीशन (एफसीसी) इसके विरोध में वोट करके नेट न्यूट्रैलिटी से संबंधित कानून को निरस्त कर दिया था।

इत्तेफाक से अमेरिका में नेट न्यूट्रैलिटी के नियमों की अवधि गत माह ही समाप्त हुई है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सूचना प्रौद्योगिकी और इसके बाजार के मामले में अति-विकसित देश अमेरिका जब खुले बाजार और प्रतिस्पर्धा की दलील देकर नेट तटस्थता को समाप्त कर चुका है, तब हमारी ताजा पहल कितनी कारगर साबित होगी? दरअसल उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के मामले में हम वैसे ही काफी फिसड्डी साबित हुए हैं। कोल्ड ड्रिंक्स में कीटनाशक, दूध में यूरिया और नूडल्स में सीसा जैसे हानिकारिक पदार्थों के इस्तेमाल की बातें सामने आने के बाद भी दोषी कंपनियां धड़ल्ले से अपना कारोबार कर रही हैं। भारतीय उपभोक्ताओं की खाने-पीने के मामले में जब ये लापरवाही है तो फिर नेट के मामले में कितनी गंभीरता दिखाएंगे, इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है।

फिर अमेरिका की तरह खुली प्रतिस्पर्धा के नाते अगर इन कंपनियों को रेट तय करने की छूट दे दी जाए तो क्या गारंटी है कि इनका आपस में गठजोड़ नहीं बन जाएगा? भारत जैसे देश में ऐसी किसी भी कोशिश को रोका जाना चाहिए जिससे ई-गवर्नेंस, ई-लर्निंग और ई-कॉमर्स की व्यवस्था प्रभावित होती हों। नेट तटस्थता को मंजूरी देते समय दूरसंचार विभाग ने रिमोट सर्जरी और ऑटोनॉमस कार जैसी सेवाओं को इसके दायरे से बाहर रखा है। अर्थात नई दूरसंचार नीति में उपभोक्ताओं के अधिकारों के साथ-साथ जरूरी सुविधाओं का बेहतर समावेश है।
[स्वतंत्र टिप्पणीकार]


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