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ओबीसी के लिए आरक्षण बार-बार विवाद का विषय नहीं हो सकता, द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में अखिल भारतीय कोटे में राज्य का अन्य पिछड़े वर्गो (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण बार-बार न्यायिक विवाद का विषय नहीं हो सकता। न्यायालय पहले ही यह मुद्दा हल कर चुका है।

By TaniskEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 09:51 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 09:51 PM (IST)
ओबीसी के लिए आरक्षण बार-बार विवाद का विषय नहीं हो सकता, द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील
नीट अभ्यर्थियों की लंबित याचिकाओं पर द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील।

नई दिल्ली, प्रेट्र। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में अखिल भारतीय कोटे में राज्य का अन्य पिछड़े वर्गो (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण बार-बार न्यायिक विवाद का विषय नहीं हो सकता। द्रमुक ने कहा कि न्यायालय पहले ही यह मुद्दा हल कर चुका है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 29 जुलाई, 2020 की अधिसूचना द्वारा अखिल भारतीय कोटे में राज्यों के योगदान वाली सीटों (एससीएस-एआइक्यू) के तहत स्नातक के 15 प्रतिशत में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कर केंद्र ने ओबीसी के लिए 13 साल पुरानी विसंगति को सुधारा है।

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जुलाई 2020 की अधिसूचना को चुनौती देने वाले कुछ नीट अभ्यर्थियों द्वारा लंबित याचिकाओं पर दाखिल लिखित जवाब में द्रमुक ने यह बात की। इसने कहा कि 93वें संविधान संशोधन और केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (नामांकन में आरक्षण) अधिनियम, 2006 लागू कर केंद्र सरकार ने 2008 में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों के केंद्रीय कोटे में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया। हालांकि, राज्यों के कोटे में केंद्र सरकार ने ओबीसी को आरक्षण देने से इन्कार कर दिया।

द्रमुक ने कहा कि इस प्रकार ओबीसी अभ्यर्थियों को पिछले वर्षो में हजारों सीटों से वंचित किया गया है। अक्षेपित नोटिस के माध्यम से सरकार ने 13 साल की अवधि के बाद ओबीसी के लिए विसंगति को ठीक किया है। पार्टी ने आगे कहा कि सामाजिक न्याय समानता का एक पहलू है, जो एक मौलिक अधिकार है। आरक्षण का उद्देश्य असमानता को दूर करना, समान और गैर-बराबर के बीच की खाई को पाटना, पिछड़े लोगों के लिए प्रकट असंतुलन को दूर करना और अतीत में एक सामाजिक वर्ग के साथ किया गया भेदभाव और अन्याय ऐतिहासिक सुधारों को दूर करना है।  

पार्टी ने कहा कि 1993 के राज्य के एक कानून के तहत तमिलनाडु में आरक्षण 69 प्रतिशत है। हालांकि ओबीसी (बीसी और एमबीसी) के लिए आरक्षण कुल 50 प्रतिशत है और आक्षेपित नोटिस के तहत संघ द्वारा पूरे देश में समान रूप से ओबीसी 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। 


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