महाराष्ट्र में क्षेत्रीय बनाम राष्ट्र की रस्साकशी
ऐन चुनाव के समय महाराष्ट्र में क्षेद्दीय बनाम राष्ट्र की बहस शुरू हो गई है। दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा इस बार अकेले सत्ता में आने की जुगत भिड़ा रही हैं, तो शिवसेना, मनसे और राकांपा जैसे क्षेद्दीय दलों को राष्ट्रीय दलों का यह रुख बिल्कुल रास नहीं आ रहा है। प्रधानमंद्दी नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र की
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। ऐन चुनाव के समय महाराष्ट्र में क्षेत्रीय बनाम राष्ट्र की बहस शुरू हो गई है। दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा इस बार अकेले सत्ता में आने की जुगत भिड़ा रही हैं, तो शिवसेना, मनसे और राकांपा जैसे क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय दलों का यह रुख बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।
प्रधानमंद्दी नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र की अपनी हर सभा में भाजपा के लिए अकेले पूर्ण बहुमत की मांग करते दिखाई दे रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की ओर से भी यह कहा जा रहा है कि राज्य की पंचकोणीय भिड़ंत में मुख्य मुकाबला दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच है। प्रधानमंद्दी मोदी मतदाता से अपील कर रहे हैं कि वह महाराष्ट्र और अपने भले के लिए लूली-लंगड़ी सरकार देने के बजाय भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाएं। पृथ्वीराज चव्हाण भी हाल के लोकसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि देश की जनता अब गठबंधन सरकारों से ऊब चुकी है। वह कुछ वर्ष पहले हुए उत्तरप्रदेश एवं पिछले साल हुए चार राज्यों के भी चुनावों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि अब जनता किसी एक दल को ही पूर्ण बहुमत देकर उससे परिणाम की अपेक्षा रखती है।
भाजपा और काग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिए जा रहे तर्क महाराष्ट्र के क्षेत्रीय दलों को बिल्कुल रास नहीं आ रहे हैं। इसलिए शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना राज्यों में राष्ट्रीय दलों के वर्चस्व का खुलकर विरोध कर रहे हैं। इन दोनों दलों के नेता अपनी चुनावी सभाओं में यह कहकर राष्ट्रीय दलों पर प्रहार कर रहे हैं कि दिल्ली में राज करनेवाले राष्ट्रीय दल को राज्यों के प्रति संवेदनशील नहीं होते। इसलिए उन्हें राज्य की सत्ता क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ देनी चाहिए। मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने खुलकर यह बात कही है, तो उनके चचेरे बड़े भाई उद्धव ठाकरे भी भाजपा से यही अपेक्षा करते रहे हैं कि वह स्वयं दिल्ली में शासन करे और महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद शिवसेना के लिए छोड़ दे। कल तक साथ रही शिवसेना - भाजपा सत्ता की प्रतिद्वंद्विता में सारी मर्यादाएं भूलकर एक-दूसरे पर प्रहार कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय दल भाजपा ने क्षेत्रीय दल शिवसेना के साथ मिलकर गठबंधन राजनीति की शुरुआत करीब 25 साल पहले महाराष्ट्र से की थी। बाद में यह प्रयोग दूसरे राज्यों में भी फैले। कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र में राकांपा के साथ गठबंधन कर इस सिलसिले को आगे बढ़ाया। लेकिन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों की दोस्ती में विडंबना यह भी है कि क्षेद्दीय दल छोटे भाई की भूमिका में रहने को तैयार नहीं है। राज्य की राजनीति में वह मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा रखते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को लगने लगा है कि क्षेत्रीय दलों का साथ उनके विस्तार में बाधक बन रहा है। इसीलिए अब ये राष्ट्रीय दल अपने क्षेत्रीय साथियों से पिंड छुड़ाने में लगे हैं।