आतंकी मददगारों के नेटवर्क में सेंध से मिल रही रिकॉर्ड सफलता
जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना और सीआरपीएफ के बीच आपसी तालमेल से भी आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में मदद मिली है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कश्मीर में सुरक्षा बलों को मिल रही अभूतपूर्व सफलता के पीछे आतंकी मददगारों के नेटवर्क में सेंध लगाना है। कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों के ऑपरेशन से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार कभी आतंकियों की मदद करने वाले ओवर ग्राउंड वर्कर अब सुरक्षा बलों को उनकी गतिविधियों के बारे में सटीक जानकारी मुहैया करा रहे हैं। साथ ही जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना और सीआरपीएफ के बीच आपसी तालमेल से भी आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में मदद मिली है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आतंकियों की गतिविधियों के बारे में पहले भी खुफिया सूचना मिला करती थीं। लेकिन, वह बहुत सटीक नहीं होती थीं। बताया जाता था कि एक गांव में आतंकी छिपे हुए हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों को पूरे गांव को घेरकर ऑपरेशन चलाना होता था। इतने बड़े इलाके में ऑपरेशन के दौरान आतंकियों के बचकर भाग निकलने की आशंका ज्यादा होती थी और अधिकांश मामलों में यही होता भी था।
पिछले साल जुलाई में बुरहान वानी की मौत के बाद ये सूचनाएं भी मिलनी बंद हो गई थीं। दूसरी ओर बड़ी संख्या में घाटी के युवा आतंकी संगठनों में शामिल होने लगे। वानी की मौत के बाद घाटी में भड़की हिंसा सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती के साथ-साथ एक अवसर भी लेकर आया। ज्यादा युवाओं के आतंकी संगठनों में शामिल होने से ओवर ग्राउंड वर्कर्स पर दबाव बढ़ गया। पहले किसी ओवर ग्राउंड वर्कर को कभी-कभी एक-दो आतंकियों की सहायता करने की जिम्मेदारी दी जाती थी। लेकिन, अब उसे एक साथ 10-12 आतंकियों की जिम्मेदारी दी जाने लगी है।
ओवर ग्राउंड वर्कर्स की अति व्यस्तता के कारण पुलिस के लिए उनकी पहचान करना आसान हो गया। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उस दौरान आतंकियों के हजारों मददगारों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। इनमें से कुछ ने पुलिस के साथ काम करना स्वीकार कर लिया। शुरू में वे छिटपुट जानकारी देते थे। लेकिन जैसे-जैसे उनका भरोसा बढ़ा, सटीक जानकारी मिलने लगी।
एक बार आतंकी मददगारों के नेटवर्क में सेंध लगाने के बाद सुरक्षा एजेंसियों के बीच काम के बंटवारे और आपसी तालमेल पर काम किया गया। खुफिया जानकारी जुटाने और उसकी पुष्टि करने की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर पुलिस ने संभाली तो ऑपरेशन की जिम्मेदारी सेना को दी गई। सीआरपीएफ को इलाके की बाहरी घेरेबंदी की जिम्मेदारी मिली। सटीक जानकारी और बेहतर तालमेल का नतीजा है कि इस साल अब तक रिकॉर्ड 151 आतंकी मारे जा चुके हैं।