गर्भपात की समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते करने की सिफारिश
वर्तमान कानून केवल 20 हफ्ते तक ही गर्भपात की इजाजत देता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। महिला सशक्तिकरण से जुड़ी संसदीय समिति ने गर्भपात की समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते करने की सिफारिश की है। संसदीय समिति का कहना है कि इसके लिए 46 साल पुराने गर्भपात कानून में संशोधन करने की जरूरत है। फिलहाल 20 हफ्ते की समय सीमा के कारण बड़ी संख्या में महिलाओं को झोलाछाप डाक्टरों से गर्भपात कराना पड़ता है।
हाल में जारी द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारत में कुल 1.56 करोड़ महिलाओं ने गर्भपात कराया था, लेकिन इनमें से 1.15 करोड़ महिलाओं का गर्भपात झोलाछाप डाक्टरों ने किया था। इतनी बड़ी संख्या में झोलाछाप डाक्टरों के हाथों गर्भपात कराने के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत भी हो जाती है। संसदीय पैनल का कहना है कि देश में बदलती जीवन शैली और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात की सुविधा उपलब्ध कराना जरूरी है। इसके लिए कानून में जरूरी संशोधन होना चाहिए।
महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी कई संस्थाओं ने संसदीय समिति के सिफारिश का स्वागत किया है। उनका कहना है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को गर्भ होने का पता काफी देरी से चलता है और तब तक गर्भपात की 20 हफ्ते की समय सीमा पार हो जाती है। ऐसे में महिलाओं के लिए झोलाछाप डाक्टरों से गर्भपात के अलावा कोई उपाय नहीं बचता है।
यही नहीं, गर्भस्थ शिशु में अधिकांश आनुवंशिक रोगों का पता 20 हफ्ते के बाद ही चलता है। ऐसे में माता-पिता को गर्भपात के लिए अदालतों का चक्कर लगाना पड़ता है। अदालती प्रक्रिया लंबी होने के कारण इसमें और भी देरी हो जाती है।
संसदीय समिति के अनुसार आज के समय बहुत सारी महिलाएं बिना शादी के लिव इन रिलेशन में रहती हैं। जबकि कानून केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए गर्भपात करने की इजाजत देता है। अब सभी महिलाओं को गर्भपात का बराबर का अधिकार मिलना चाहिए। यह महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में अहम कदम होगा।