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आर्टिफिशियल स्‍वीटनर का यूज करने वाले हो जाएं सावधान, फायदे की जगह दे रही ज्‍यादा नुकसान

कृत्रिम मिठास का सेवन करने वाले लोग सचेत हो जाएं। एक अध्ययन का कहना है कि ऐसा कोई दमदार प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह जाहिर हो कि कृत्रिम मिठास से सेहत को कोई बड़ा फायदा होता हो।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 11:58 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 12:14 PM (IST)
आर्टिफिशियल स्‍वीटनर का यूज करने वाले हो जाएं सावधान, फायदे की जगह दे रही ज्‍यादा नुकसान
आर्टिफिशियल स्‍वीटनर का यूज करने वाले हो जाएं सावधान, फायदे की जगह दे रही ज्‍यादा नुकसान

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कृत्रिम मिठास का सेवन करने वाले लोग सचेत हो जाएं। एक अध्ययन का कहना है कि ऐसा कोई दमदार प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह जाहिर हो कि कृत्रिम मिठास से सेहत को कोई बड़ा फायदा होता हो। लेकिन इससे होने वाले संभावित नुकसान से इन्कार नहीं किया जा सकता। जर्मनी की फ्रीबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को लेकर बढ़ती चिंताओं के चलते कई लोगों का स्वस्थ जीवनशैली की ओर झुकाव बढ़ा है। इन लोगों ने शुगर, नमक या फैट से भरपूर खाद्य पदार्थो को खाना छोड़ दिया।

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ऐसे में सामान्य चीनी की जगह नॉन-शुगर स्वीटनर्स से बनने वाले खाद्य पदार्थो और पेय पदार्थो का चलन बढ़ता जा रहा है। हालांकि कई नॉन-शुगर स्वीटनर्स के इस्तेमाल की अनुमति मिली है, लेकिन इस बारे में कम जानकारी है कि इससे क्या फायदा और नुकसान होता है? इस बारे में बेहतर समझ के लिए यूरोपीय शोधकर्ताओं ने कृत्रिम मिठास को लेकर हुए 56 अध्ययनों का विश्लेषण किया और इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।

आमतौर पर चीनी से परहेज रखने वाले लोग कम कैलोरी वाले कृत्रिम स्वीटनर या शुगर फ्री स्वीटनर का सेवन करते हैं, क्योंकि उसमें शर्करा कम होती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन कृत्रिम स्वीटनर सुरक्षित नहीं होते और इनका अंधाधुंध इस्तेमाल करने से आपको कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है। वर्तमान समय में दुनिया भर में 4 हजार से अधिक उत्‍पादों में कृत्रिम स्‍वीटनर का इस्‍ते‍माल किया जाता है।

कृत्रिम स्‍वीटनर में एसपारटेम सामान्‍यत न्‍यूट्रास्‍वीट के रूप में जाना जाता है, जो सेवन किये जा रहे सबसे जहरीले पदार्थों में से एक है। हालांकि निर्माता एसपारटेम को स्वास्‍थ्‍य के लिए खतरा नहीं मानते, लेकिन वैज्ञानिक अध्‍ययन इस बात से सहमत नहीं है। एफडी ने बड़े पैमाने पर इस उत्‍पाद के उपभोग के लिए मंजूरी दी है, भारी सबूतों के बावजूद कि एसपारटेम में न्यूरोटौक्सिक, मेटाबॉल्कि, एलार्जिक और कासीनजन प्रभाव होते हैं।

क्‍या कृत्रिम मिठास का प्रयोग किया जाना चाहिए?

जीवनशैली की ही देन है खतरनाक बीमारी मधुमेह। चूंकि इस बीमारी में शरीर में ब्‍लड ग्‍लूकोज का स्‍तर बढ़ जाता है ऐसे में ऑर्टिफिशियल स्‍वीटनर का प्रयोग करना किस हद तक सही है या फिर इसका प्रयोग करने से बचना चाहिए, इन बातों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों की मानें तो हम प्रकृति से जितने दूर जाते हैं उतनी ही बीमारियां हमारे पास आती हैं, ऐसे में मधुमेह के मरीजों कृत्रिम मिठास के प्रयोग से बचना चाहिए।

इस बीमारी में दूध या चाय को बिना चीनी के पीने की आदत डालनी चाहिए, क्‍योंकि जितना शुगर आप लेंगे उतना बुरा असर इसका शरीर पर पड़ता है। अ‍गर आप आर्टिफिशियल स्‍वीटन प्रयोग करते हैं तो इससे याद्दाश्‍त चली जाती है, दिमाग कमजोर होने लगता है। कभी-कभी इसका सेवन कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन हमेशा इसके प्रयोग से बचें।

एसपारटेम में मौजूद दूषित पदार्थ

क्‍या आप जानते हैं कि मौजूद एसपारटेम प्राकृतिक चीनी से 200 गुना मीठा होता है। और इसमे मौजूद दूषित पदार्थ जैसे एस्पार्टिक एसिड 40 प्रतिशत, फेनिलएलनिन 50 प्रतिशत और मेथनॉल 10 प्रतिशत होता हैं। आइए जानें एसपारटेम में मौजूद यह दूषित पदार्थ आपके शरीर को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं।

एस्पार्टिक अम्ल

एसपारटेम मस्तिष्‍क में एक न्यूरोट्रांसमीटर है, यह एक न्‍यूरॉन से दूसरे को जानकारी देने की सुविधा देता है। बहुत ज्‍यादा एसपारटेम से मस्तिष्‍क की कोशिकाओं में कैल्शियम बहुत ज्‍यादा बढ़ जाता है, और यह अत्‍यधिक मात्रा में मुक्‍त कणों को ट्रिगर करता है। जिससे कोशिकाएं मरने लगती है। एसपारटेम को एक्ससीटोटॉक्सिन के रूप में भी जाना जाता है क्‍योंकि यह तंत्रिका कोशिका की क्षति का कारण बनता है। लंबे समय तक एक्ससीटोटॉक्सिन इसके इस्‍तेमाल से कई प्रकार की बीमारियां जैसे मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस, एएलएस, मेमॉरी लॉस, हार्मोंन संबंधी समस्‍याएं, सुनाई न देना, मिर्गी, अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग, हाइपोग्लाइसीमिया, पागलपन, मस्तिष्क घावों और न्यूरोएंडोक्राइन विकार देखने को मिलते हैं।

फेनिलएलनिन

फेनिलएलनिन सामान्य रूप से मस्तिष्क में पाया जाने वाला एक एमिनो एसिड है। मानव परीक्षण के अनुसार, लंबे समय से एसपारटेम के उपयोग से रक्त में फेनिलएलनिन के स्तर को वृद्धि होने लगती है। और मस्तिष्‍क में फेनिलएलनिन के अत्‍यधिक स्‍तर से सेरोटोनिन का स्‍तर कम होने लगता है। जिससे अवसाद, मानसिक असंतुलन और सीजर्स का शिकार बना सकते हैं।

फॉर्मैल्डहाइड

एस्‍पार्टेट से टूटने वाला यह उत्‍पाद कैसरजन होता है और रेटिना क्षति, जन्‍म दोष और डीएनए अनुकरण में हस्‍तक्षेप का कारण बनता है। इपीए (EPA) प्रतिदिन इसकी 7.8 मिलीग्राम खपत की सलाह देते है। 1 लीटर एसपारटेम मीठे पेय में सात बार इपीए सीमा में शामिल 56 मिलीग्राम मेथनॉल होता है। इस तरह से मेथनॉल विषाक्तता से संबंधित सबसे आम विकृतियां में दृष्टि संबंधी समस्‍याएं और रेटिना को नुकसान और अंधापन जैसी समस्‍याएं देखने को मिलती है। इस तरह से वजन बढने की समस्या से परेशान जो लोग इन दिनों बड़े स्तर पर इन गोलियों का उपयोग कर रहे हैं, उन्‍हें थोड़ा सावधान हो जाना चाहिए।  


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