आरबीआइ बनाम केंद्र सरकार: इन मुद्दों पर है विवाद
वित्त मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से मशविरा कर रखा है कि अगर आरबीआइ के शीर्ष लोगों की राय नहीं बदलती है, तो वह आरबीआइ एक्ट की धारा-7 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की आज होने वाली बोर्ड बैठक पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। इस बैठक के बाद केंद्र और आरबीआइ के बीच की स्थिति काफी साफ होने की उम्मीद है। यह बैठक तय करेगी कि आने वाले दिनों में सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच किस तरह से रिश्ते कायम होते हैं। यह तय करेगा कि आरबीआइ गवर्नर एनपीए नियम, केंद्रीय बैंक के फंड के इस्तेमाल या छोटे उद्योगों को ज्यादा कर्ज उपलब्ध कराने के मुद्दे पर सरकार के सुझाव के आगे झुकते हैं या इस्तीफा देने का रास्ता अख्तियार करते हैं। वैसे दोनों तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं कि कुछ मुद्दों पर बीच की राह निकालने पर सहमति बन सकती है।
हालांकि काफी समय से विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच टकराव चल रहा है। सरकार अर्थव्यवस्था के पिछड़ने का हवाला देकर अपनी मांगें मनवाना चाहती है, तो आरबीआई का कहना है कि अगर वह सरकार की मांगों को मान लेता है, तो इससे बैंकिंग प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी।
आरबीआई के पास कैश रिजर्व पर विवाद
सरकार का कहना है कि दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक कुल परिसंपत्तियों का 16-18 फीसद रिजर्व में रखते हैं जबकि आरबीआइ 26 फीसद रखता है। आरबीआइ इसका एक हिस्सा केंद्र को दे सकता है जिसका इस्तेमाल ढांचागत सुविधाओं के विकास में किया जा सकता है। लेकिन आरबीआइ का तर्क है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना अमेरिका, जापान, चीन से नहीं की जा सकती। यहां के बैंकिंग सिस्टम का बुनियादी ढांचा अभी भी बेहद मजबूत नहीं है। ऐसे में आरबीआइ के पास बड़ा रिजर्व फंड होना चाहिए जिसका इस्तेमाल वित्तीय संकट के काल में किया जा सके।
चुनावी साल में कर्ज का टोटा
दैनिक जागरण ने पहले ही यह खबर प्रकाशित की है कि वित्त मंत्रालय इस बैठक को लेकर कितना गंभीर है। चुनावी वर्ष में सरकार बिल्कुल नहीं चाहती कि छोटे व मझोले उद्योगों को कर्ज मिलने में कोई परेशानी हो। दूसरी तरफ अभी बैंकिंग व्यवस्था में फंड की किल्लत होने से छोटे व मझोले उद्योगों के साथ ही हाउसिंग, आटो लोन में भी दिक्कत हो रही है। 11 बैंकों पर आरबीआइ की तरफ से प्रोम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के तहत पाबंदी लगी है जिससे वह कर्ज नही बांट पा रहे हैं। इससे भी देश के बड़े हिस्से में पर्याप्त कर्ज नहीं मिल रहा है।
सरकारी बैंकों का रेग्युलेशन
नीरव मोदी द्वारा किए गए पंजाब नेशनल बैंक घोटाले को पकड़ने में नाकाम रहने के लिए सरकार ने आरबीआई की कड़ी आलोचना की थी। इस पर गवर्नर ने आरोप लगाया कि सरकारी बैंकों के रेग्युलेशन के लिए सरकार उसे शक्तियां नहीं दे रही। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यह कहते हुए पलटवार किया कि आरबीआई के पास इसके लिए पर्याप्त शक्तियां थीं और सरकारी बैंकों के सीईओ की नियुक्ति पर उससे परामर्श लिया गया था।
आरबीआइ बोर्ड में नियुक्तियां
आरबीआइ और केंद्र सरकार के बीच नियुक्तियों को लेकर भी विवाद चल रहा है। नचिकेत मोर को उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही बिना सूचना दिए बोर्ड से हटा दिया गया। आरबीआई के सीओओ के लिए दिग्गज बैंकर नचिकेत मोर पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की पहली पसंद थे। नचिकेत मोर सरकार द्वारा मांगे गए अधिक लाभांश का शुरुआत से विरोध करते आ रहे थे। सरकार पर बोर्ड में अपने पसंदीदा लोगों को भरने का आरोप लगाया गया है, इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एस. गुरुमूर्ति और सतीश मराठे भी शामिल हैं।
तेल कंपनियों के लिए विशेष डॉलर विंडो पर रार
तेल कंपनियों की फॉरेन एक्सचेंज मार्केट (फॉरेक्स) जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआई द्वारा विशेष डॉलर विंडो खोलने के लिए मना करने पर केंद्र सरकार को कंपनियों को विदेश से कर्ज लेने की मंजूरी देने को मजबूर होना पड़ा। इसे लेकर भी आरबीआइ और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं।
गौरतलब है कि वित्त मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से मशविरा कर रखा है कि अगर आरबीआइ के शीर्ष लोगों की राय नहीं बदलती है, तो वह आरबीआइ एक्ट की धारा-7 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। इसके तहत वह आरबीआइ को कुछ फैसला करने का निर्देश दे सकता है। इस धारा का इस्तेमाल पहले कभी नही हुआ है। जानकारों का कहना है कि अगर सरकार की तरफ से ऐसा कदम उठाया जाता है तो आरबीआइ गवर्नर पटेल के सामने अपने पद से इस्तीफा देने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा।