छत्तीसगढ़ के जंगल में मिली अनोखी प्रजाति की दुर्लभ टरमाइट हिल गीको छिपकली
गीको की कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जिनके शरीर में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जिसका प्रयोग एचआइवी कैंसर और मधुमेह जैसे रोगों की दवाइयां बनाने में किया जाता है।
विकास पांडेय, कोरबा। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के जंगल में अनोखी वनस्पतियों और दुर्लभ वन्य प्राणियों से भरे पड़े हैं। यहां छिपकली की एक दुर्लभ प्रजाति हिल गीको मिली है। राज्य में इसका मिलना अपने आप में अनोखा व महत्वपूर्ण है। क्योंकि छिपकली की यह प्रजाति दक्षिण भारत में पाई जाती है। लिहाजा गहन अध्ययन के लिए इसकी तस्वीरें जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआइ) जबलपुर को भेजी गई हैं। जिस छिपकली की मौजूदगी के निशान पहले कभी यहां नहीं मिले, वह जंगल से लगी दादरखुर्द बस्ती के एक घर में मिली।
छत्तीसगढ़ के कोरबा में सरीसृप विशेषज्ञ अविनाश ने टरमाइट हिल गीको छिपकली खोजी
सर्पमित्र व रेप्टाइल केयर एंड रेस्क्यू सोसाइटी (आरसीआरएस) के अध्यक्ष अविनाश यादव ने इस अनोखी प्रजाति की दुर्लभ छिपकली की खोज रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान की, जो इस जैव परिक्षेत्र से ताल्लुक नहीं रखती। सरीसृृपों के संरक्षण व बचाव के लिए दो दशक से कार्यरत छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के सहसचिव अविनाश के अनुसार यह छिपकली दुर्लभ प्रजाति की टरमाइट हिल गीको है। यह छिपकली आकार में काफी छोटी होती है और दीमक, छोटे जीव व कीटों को खाती है।
गीको छिपकली दक्षिण भारत में पाई जाती है
भारत समेत विभिन्न एशियाई देशों में पाई जाने वाली छिपकली की यह प्रजाति दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, पुडुचेरी, कर्नाटक व महाराष्ट्र में निवास करती है।
दिन में छिपे रहने वाला यह जीव रात में निकलता है
महीन शारीरिक विवरण व आनुवांशिक अंतर के आधार पर अब तक इस तरह की तीन प्रजाति देखी गई हैं। इनमें व्हिटेकर, सहगल और दक्षिणी दीमक (टरमाइट) हिल गीको शामिल हैं। अक्सर दीमक के टीलों पर दिखने वाली इस दुर्लभ प्रजाति को लेकर जीव वैज्ञानिक अब भी शोध कर रहे हैं। वन अमले की उपस्थिति में इस दुर्लभ हिल गीको को घने जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया है, ताकि वह अपने प्राकृतिक परिवेश में लौट जाए। दिन में छिपे रहने वाला यह जीव रात में निकलता है।
गीको में पाए जाने वाले तत्वों से बनती है एचआइवी, कैंसर और मधुमेह रोगों की दवाइयां
गीको की कुछ ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके शरीर में ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिसका प्रयोग एचआइवी, कैंसर और मधुमेह जैसे रोगों की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है।