Move to Jagran APP

भगवान श्री राम की भक्ति की अनोखी, अद्भुत और अकल्पनीय मिसाल पेश करता है रामनामी समाज

रामनामी समाज के अध्यक्ष रामप्यारे बताते हैं कि शरीर पर रामनाम लिखवाने वाले का नाम गोदना के हिसाब से तय होता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 10:48 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 10:48 AM (IST)
भगवान श्री राम की भक्ति की अनोखी, अद्भुत और अकल्पनीय मिसाल पेश करता है रामनामी समाज
भगवान श्री राम की भक्ति की अनोखी, अद्भुत और अकल्पनीय मिसाल पेश करता है रामनामी समाज

कोमल शुक्ला, जांजगीर-चांपा। छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज भगवान श्री राम की भक्ति की अनोखी, अद्भुत और अकल्पनीय मिसाल पेश करता है। कहने को यह समाज मंदिर जाने और मूर्ति पूजा का विरोध करता है, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से उत्साहित है। वे मन मंदिर में विराजमान राम की भक्ति करते हैं। समाज के लोग शरीर पर राम नाम गोदवाते हैं। मेले और अन्य आयोजनों में इस समाज के लोग रामचरितमानस के दोहों और चौपाइयों का पाठ करते हैं।

loksabha election banner

रामनामी पंथ के लोग मूलत: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा, रायगढ़, बलौदाबाजार-भाटापारा, महासमुंद और रायपुर जिले के लगभग 100 गांवों में रहते हैं। हालांकि अब इनकी संख्या करीब 150 से 175 के बीच ही बची है। कभी इनकी आबादी 10 से 12 हजार थी। नई पीढ़ी गोदना से परहेज करती है। वर्ष 1890 के आसपास मालखरौदा क्षेत्र के चारपारा निवासी परशुराम भारद्वाज नामक युवक ने रामनामी पंथ की शुरुआत की थी।

करीब 130 साल पुराने इस पंथ से जुड़े लोग शरीर पर राम-राम लिखवाकर यह संदेश देते हैं कि राम रग-रग और कण-कण में हैं। आपस में अभिवादन भी राम-राम से ही होता है। रामनामी समाज के अध्यक्ष जोरापाली निवासी रामप्यारे का कहना है कि हम रामचरित मानस का भजन करते हैं। सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन भजन मेला होता है। इसमें ये रामचरितमानस का गायन करते हैं।

गोदना के हिसाब से नाम : रामनामी समाज के अध्यक्ष रामप्यारे बताते हैं कि शरीर पर रामनाम लिखवाने वाले का नाम गोदना के हिसाब से तय होता है। अगर किसी के पूरे शरीर पर राम-राम लिखा है तो उसे नखशिख रामनामी कहते हैं। पूरे माथे पर रामनाम अंकित करने वाले को सर्वांग रामनामी और केवल माथे पर दो बार राम-राम लिखाने वाले को शिरोमणी रामनामी कहा जाता है।

पांच प्रमुख पहचान: रामनामी समाज की पांच प्रमुख पहचान हैं। पहला भजन या जैतखंभ। इसे जय स्तंभ भी कहते हैं। एक स्तंभ बड़ा, जबकि चार छोटे होते हैं। इसके अलावा मोर पंख से बना मुकुट, शरीर पर राम-राम का गोदना, रामनाम लिखा हुआ कपड़ा और पांचवा घुंघरू। भजन करते समय रामनामी समाज के लोग सिर पर मोर पंख का मुकुट, शरीर पर राम-राम लिखा वस्त्र और पैरों में घुंघरू पहनते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.