सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल, उर्दू सीख रहे राम और संस्कृत पढ़ रहे रहीम
आइए, रामपुर के अस्तबल रोड स्थित मदरसा और सरस्वती शिशु मंदिर का रुख करते हैं। जहां ये बच्चे पढ़ते हैं। दरअसल, वे बड़े-बड़ों को गंगा-जमुनी तहजीब का फलसफा पढ़ा रहे हैं।
रामपुर (मुस्लेमीन)। आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है।
जख्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूं है।।
जब हकीकत है कि हर जर्रे में तू रहता है।
फिर जमीं पर कहीं मसजिद कहीं मंदिर क्यूं है।।
मंदिर-मसजिद अपनी जगह हैं। इंसान अपनी जगह। और इंसानियत अपनी जगह। इंसानियत को मंदिर-मसजिद के तकाजे से नहीं आंका जा सकता है। गंगा-जमुनी तहजीब का फलसफा यही है। इंसानियत की यह बुनियादी सी समझ रामपुर के इन समझदार बच्चों और इनके परिवारों में नजर आती है। आइए, रामपुर के अस्तबल रोड स्थित मदरसा और सरस्वती शिशु मंदिर का रुख करते हैं। जहां ये बच्चे पढ़ते हैं। दरअसल, वे बड़े-बड़ों को गंगा-जमुनी तहजीब का फलसफा पढ़ा रहे हैं।
इसी की है दरकार
यहां जमीयतुल अंसार मदरसे में राम पढ़ते हैं। और सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में रहीम। मानो गंगा-जमुनी तहजीब की धारा सी बह रही हो। यह प्रसंग हिंदुस्तानी तहजीब और इसके मजबूत ताने-बाने की एक बानगी देता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) द्वारा संचालित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में जहां बड़ी तादाद में मुस्लिम बच्चे संस्कृत के श्लोक पढ़ते हैं, सीखते हैं। वहीं जमीयतुल अंसार मदरसे में अनेक हिंदू बच्चे उर्दू की तालीम हासिल कर रहे हैं। इस मदरसे में दीनी तालिम के साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की भी शिक्षा दी जा रही है।
नहीं कोई बाध्यता
सबसे पहले बात करते हैं रामपुर के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर इंटर कालेज की। सनातन संस्कृति और वैदिक शिक्षा पद्धति पर आधारित इस विद्यालय में सुबह की शुरुआत सरस्वती वंदना, गायत्री मंत्र, एकात्म स्त्रोत और शांतिपाठ से होती है। वंदेमातरम, ओम का उच्चारण और सूर्य नमस्कार जैसे क्ति्रयाकलाप होते हैं। सभी छात्र इन्हें स्वेच्छापूर्वक करते हैं। 350 में से 50 छात्र मुस्लिम हैं। लेकिन आप पहचान नहीं पाएंगे कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान। हेड ब्वॉय फैजान पाशा को चुना गया है। सभी बच्चों ने उसे अपना लीडर चुना है। शिक्षक राकेश कुमार बताते हैं कि आठवीं तक के सभी छात्र संस्कृत पढ़ते हैं। गुरु वंदना के साथ ही वंदेमातरम गाते हैं। जुमे के दिन मुस्लिम छात्रों को नमाज पढ़ने की छूट दी जाती है, ताकि वे समय से मसजिद पहुंच सकें। फैजान पाशा के पिता हंसार हुसैन का कहना है कि शिशु मंदिर में बच्चों को संस्कारित किया जाता है। सामाजिक सरोकार सिखाए जाते हैं। बच्चे भी अपने गुरुजनों, सहपाठियों की प्रशंसा करते हैं, इसीलिए बेटे को यहां पढ़ा रहे हैं।
यही हाल मदरसे का है
ऐसा ही खुशनुमा माहौल जमीयतुल अंसार मदरसे में भी है। यहां मुस्लिम बच्चों के साथ अनेक हिंदू बच्चे भी तालीम हासिल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड से इस मदरसे को आलिया (हाई स्कूल) स्तर तक की मान्यता प्राप्त है। मदरसे के प्रबंधक खालिद अंसारी कहते हैं कि यह मदरसा 1952 में स्थापित हुआ। तब से ही यहां मुसलमान और हिंदू परिवारों के बच्चे पढ़ते आ रहे हैं। मदरसे में चार सौ से ज्यादा छात्र- छात्राएं हैं। यहां पढ़ने वाले एक हिंदू छात्र सोम जोशी के पिता महेंद्र जोशी का कहना है कि मदरसे में अच्छी शिक्षा दी जाती है। उर्दू पढ़ाने से कोई दिक्कत नहीं है। अच्छी शिक्षा व अच्छे माहौल के कारण ही मोहल्ले के कई बच्चे यहां पढ़ते हैं।
यह भी पढ़ें : जी हां ! उड़ान पंखों से नहीं हौसले से होती है, गरीबी नहीं बनी कामयाबी में रुकावट