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राज्यसभा नियम भी जज के महाभियोग पर सार्वजनिक चर्चा की मनाही करते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों के सार्वजनिक चर्चा और बयानबाजी पर रोक लगाने की मांग याचिका पर सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह तक टाल दी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 07 May 2018 10:06 PM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 10:08 PM (IST)
राज्यसभा नियम भी जज के महाभियोग पर सार्वजनिक चर्चा की मनाही करते हैं
राज्यसभा नियम भी जज के महाभियोग पर सार्वजनिक चर्चा की मनाही करते हैं

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग पर विपक्षी सांसदों की सार्वजनिक बयानबाजी और चर्चा पर टिप्पणीं करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा रूल भी जज के महाभियोग पर नोटिस स्वीकार होने तक सार्वजनिक चर्चा की मनाही करते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों के सार्वजनिक चर्चा और बयानबाजी पर रोक लगाने की मांग याचिका पर सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह तक टाल दी।

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- सांसदों के खुलेआम महाभियोग पर बयान बाजी करने पर रोक के मामले की सुनवाई जुलाई तक चली

न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने मामले पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने इस मामले में मदद के लिए अटार्नी जनरल से कहा था। सोमवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यसभा सभापति मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने का सांसदों का महाभियोग नोटिस अस्वीकार कर चुके हैं ऐसे मे यह याचिका महत्वहीन हो गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील मिनाक्षी अरोड़ा ने याचिका पर जोर देते हुए इस संबंध में गाइड लाइन तय करने की मांग की। जिस पर वेणुगोपाल ने कहा कि ये मामला विचार के लिए विधि आयोग को भेजा जा सकता है। लेकिन अरोड़ा ने कहा कि उन्होंने याचिका के साथ इस बारे में विधि आयोग की 2005 की रिपोर्ट लगाई है। बहस चल रही थी कि तभी पीठ ने कहा कि उन्होंने भी पढ़ा है कि राज्यसभा के रूल जज के महाभियोग पर नोटिस स्वीकार होने तक सार्वजनिक चर्चा की मनाही करते हैं। हालांकि पीठ ने कहा कि वे इस मामले में कोई गाइड लाइन तय नहीं करेंगे वे सिर्फ इस पहलू पर विचार करेंगे कि ऐसे मामले में सांसद सार्वजनिक चर्चा कर सकते है कि नहीं।

मालूम हो कि कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने राज्यसभा सभापति को मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने का महाभियोग नोटिस देने के बाद प्रेस कान्फ्रेंस की थी और उसमें नोटिस में लगाए गए आरोप सार्वजनिक किये थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मे एक जनहित याचिका दाखिल हुई जिसमें सांसदों के इस तरह सार्वजनिक चर्चा और बयानबाजी पर रोक लगाने की मांग की गई है।

शुरुआत में नोटिस अस्वीकार करने का ये पहला मामला नहीं है

न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नोटिस अस्वीकार करने का यह कोई पहला मामला नहीं है इससे पहले भी शुरुआत में ही जस्टिस जेसी शाह के खिलाफ दिये गए महाभियोग नोटिस को लोकसभा अध्यक्ष ने रद किया था।

राज्यसभा सचिवालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इससे पहले भी कांग्रेस शासन काल की नजीर मौजूद है। 1971 में 199 लोकसभा सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जेसी शाह को पद से हटाने के लिए महाभियोग का नोटिस दिया था। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ढिल्लन ने उस महाभियोग नोटिस को शुरुआत में ही अस्वीकार कर दिया था। बाद में जस्टिस शाह भारत के मुख्य न्यायाधीश भी बने थे। 


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