राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से अनुमान से अधिक धन मिलने के आसार, उठ रहे कई सवाल
समाचार एजेंसी ने अभी तक जो जानकारी जुटाई है उसके अनुसार फाउंडेशन को 2004 से 2006 के बीच 20 लाख डालर और 2006 से 2013 तक 90 लाख डालर का चंदा मिला।
नई दिल्ली, आइएनएस। भाजपा द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को चीन की सरकार द्वारा जितना धन मिलने का आरोप लगाया गया है उसके कहीं अधिक धन मिलने के साक्ष्य सामने आ रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जहां मप्र के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए तीन लाख डालर की आर्थिक मदद मिलने की बात कही वहीं रविशंकर प्रसाद ने 90 लाख रुपए मिलने का आरोप लगाया है। दोनों नेताओं ने रकम का अलग-अलग आंकड़ा दिया है। हालांकि इस समाचार एजेंसी ने अभी तक जो जानकारी जुटाई है उसके अनुसार फाउंडेशन को 2004 से 2006 के बीच 20 लाख डालर और 2006 से 2013 तक 90 लाख डालर का चंदा मिला।
उल्लेखनीय है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर स्थापित इस फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। इसके बोर्ड में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, पी. चिंदबरम और प्रियंका गांधी वाड्रा भी हैं। फाउंडेशन की सालाना रिपोर्ट के अनुसार उसे चीन की सरकार और नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास दोनों ने चंदा दिया। इस संबंध में जब चिदंबरम से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने चीफ एक्जीक्यूटिव से सवाल करने की बात कहकर टाल दिया।
'आर्थिक संबंधों में मदद करेगा एफटीए'
जानकारी के अनुसार राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फार कंटेंपररी स्टडीज एक थिंकटैंक है और समसामयिक मुद्दों पर अध्ययन करता है। फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार 2009 में इस इंस्टीट्यूट के फेलो मुहम्मद शाकिब ने भारत-चीन मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) विषय पर एक अध्ययन किया था। इस अध्ययन में पूर्णचंद्र राव ने सहयोगी की भूमिका निभाई थी। इस अध्ययन का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार की संभावनाओं पर बेहतर समझ विकसित करना था। इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया था कि बेहतर आर्थिक स्थिति के कारण चीन ज्यादा फायदे में रहेगा। अगले साल 2010 में भी इसी तरह की एक अध्ययन रिपोर्ट आई जिसमें भारत-चीन के बीच बेहतर व्यापारिक रिश्तों के लिए एफटीए की वकालत की गई। अगले कुछ वर्षो तक इसी तरह के अध्ययन के बाद रिपोर्ट आती रहीं और उनमें एफटीए के तरफदारी की जाती रही।
कहीं देश हित तो नहीं प्रभावित तो नहीं हो रहा
कांग्रेस के आलोचकों का कहना है कि एक तरफ भारत चीन के बीच व्यापार असंतुलन बढ़ता रहा वहीं फाउंडेशन का थिंक टैंक एफटीए के पक्ष में दलीलें देता रहा। 2003-04 के मुकाबले 2013-14 में व्यापार असंतुलन 33 गुना बढ़ चुका था। अब विभिन्न क्षेत्रों से मांग उठ रही है कि पूरे मामले पर कांग्रेस अपना पक्ष स्पष्ट करें। कांग्रेस को चीन सरकार से कितनी मदद मिली और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से उसका क्या समझौता हुआ उसके बारे में लोग विस्तार से जानना चाहते हैं। लोग यह भी जानना चाहते हैं कि इस समझौते से कहीं देश हित तो नहीं प्रभावित तो नहीं हो रहे हैं।