मुंबई हिंसा के बहाने राज ठाकरे का शक्ति प्रदर्शन
करीब दस दिन पहले हुई हिंसा का विरोध करने के बहाने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] के अध्यक्ष राज ठाकरे ने मंगलवार को सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन किया। साथ ही महाराष्ट्रवाद का राग अलापना भी नहीं भूले। पुलिस के मुताबिक करीब 63 लोग इस रैली में शामिल थे। जबकि प्रत्यक्षदर्शी संख्या एक लाख बता रहे हैं।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। करीब दस दिन पहले हुई हिंसा का विरोध करने के बहाने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] के अध्यक्ष राज ठाकरे ने मंगलवार को सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन किया। साथ ही महाराष्ट्रवाद का राग अलापना भी नहीं भूले। पुलिस के मुताबिक करीब 63 लोग इस रैली में शामिल थे। जबकि प्रत्यक्षदर्शी संख्या एक लाख बता रहे हैं।
राज्य सरकार से अनुमति नहीं होने के बावजूद दक्षिण मुंबई की गिरगांव चौपाटी से सीएसटी रेलवे स्टेशन के सामने स्थित आजाद मैदान तक यह रैली पूरे शान से निकाली गई। राज ने स्वयं कुछ दूर तक पैदल चलकर रैली का नेतृत्व किया। फिर आजाद मैदान में अपनी आक्रामक शैली में उन्होंने रजा अकादमी की रैली के दौरान हुई हिंसा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ मुंबई में रह रहे अन्य बाहरी व्यक्तियों को भी जिम्मेदारी बता डाला। विशेष तौर पर उन्होंने अक्सर अपने विरुद्ध खड़े होने वाले समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी पर निशाना साधा। अपने वोटबैंक को सहेजते हुए उन्होंने साफ कहा कि राज ठाकरे को सिर्फ एक ही धर्म समझता है। वह है- महाराष्ट्र धर्म।
चूंकि रजा अकादमी की रैली में पुलिस एवं मीडिया को भी जमकर निशाना बनाया गया था। इसलिए राज ने विशेषकर पुलिसवालों का दिल जीतने के लिए भी कई जुमले उछाले। उन्होंने कहा कि हमने इन लोगों को समर्थन देने के लिए ही रैली का आयोजन किया है। मुंबई हिंसा के दौरान पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक द्वारा एक डीसीपी को गाली देने की घटना का उल्लेख करते हुए राज ने कहा कि इससे पुलिस का मनोबल गिरा है। इसलिए पुलिस आयुक्त एवं गृहमंत्री आरआर पाटिल को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।
पिछले शुक्रवार को लखनऊ में तोड़ी गई गौतम बुद्ध की प्रतिमा पर मायावती, रामदास अठावले एवं प्रकाश आंबेडकर जैसे नेताओं को लताड़ने में भी राज पीछे नहीं रहे। उन्होंने सवाल किया कि पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा की गई ऐसी घटनाओं पर अब दलित नेता चुप क्यों हैं? अपने संक्षिप्त भाषण में उन्होंने कांग्रेस और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण के खिलाफ कुछ भी बोलने से बचते रहे। उन्होंने पुणे धमाके और इन घटनाओं को रोकने में सरकार की असफलता पर एक भी शब्द नहीं बोला। माना जा रहा है कि इस तरह से वह मुख्यमंत्री के साथ अपने समीकरण को बनाने में कामयाब रहे। वहीं, आरआर पाटिल ने राज ठाकरे की इस्तीफे की मांग को खारिज करते हुए रैली को राजनीतिक करार दिया। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे भूल गए कि पिछले साल औरंगाबाद में मनसे विधायक के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों की पिटाई की गई थी।
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