आपातकाल : बरसात की आधी रात में हो गए थे बेघर
आपातकाल का दौर याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुश्किल भरा वक्त था। आधी रात को बारिश में घर से बेघर कर दिया गया था। बच्चों व बुजुर्ग सास-ससुर के साथ पार्क में रात गुजारनी पड़ी थी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना की पत्नी राज खुराना
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। आपातकाल का दौर याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुश्किल भरा वक्त था। आधी रात को बारिश में घर से बेघर कर दिया गया था। बच्चों व बुजुर्ग सास-ससुर के साथ पार्क में रात गुजारनी पड़ी थी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना की पत्नी राज खुराना आपातकाल के मुश्किल दिनों को याद करते हुए कहती हैं, मेरे परिवार की तरह अन्य परिवारों के लिए भी वह खौफनाक समय था। जुल्म व ज्यादती का दौर था। आपातकाल लगने के साथ ही पुलिस उनके पति को गिरफ्तार करने के लिए सक्रिय हो गई थी। इसकी भनक लगते ही वह भूमिगत हो गए थे।
लंबे समय से अस्वस्थ होने के कारण मदनलाल खुराना से तो इस बारे में बात नहीं हो सकी, लेकिन उनकी पत्नी राज खुराना उस पल को याद कर आज भी भावुक हो जाती हैं। वह कहती हैं, उस मुश्किल पल को कैसे भूल सकती हूं। 25 जून, 1975 को आधी रात को खुराना जी के किसी मित्र ने उन्हें उपराज्यपाल के दफ्तर से फोन कर बताया कि आपातकाल लग गया है इसलिए आप बचकर निकल जाएं। वह तुरंत मुझे दो जोड़ी कपड़े देने की बात कह अन्य साथियों को टेलीफोन कर भूमिगत होने की सलाह देने लगे। कुछ देर बाद वह घर से निकल गए। उस रात बारिश हो रही थी। इसी बीच पुलिस आई और घर खाली करने का फरमान सुनाया। घर में छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर थे। इनके साथ उन्हें घर से बाहर कर दिया गया। बरामदे में भी नहीं बैठने दिया गया। मजबूरन सभी लोग पार्क में जाकर बैठ गए।
पार्क को भी चारों तरफ से पुलिस ने घेर रखा था। घर का एक-एक सामान पुलिस वाले ट्रक में भरकर ले गए। घर सील कर दिया गया। कुछ दिन दूसरों के घर रहना पड़ा। यह घर उनके नाम से ही था। इसलिए कागजात दिखाने के बाद कुछ दिनों में घर का ताला तो खोल दिया गया, लेकिन कुछ सामान नहीं था। पर्दा तक पुलिस वाले अपने साथ ले गए थे। एक सिख पुलिसकर्मी को शायद बच्चों पर दया आ गई होगी इसलिए उसने इनके कुछ खिलौने पड़ोस में डाल दिए थे।
इस स्थिति में खुराना परिवार पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो गया था। जो लोग गिरफ्तार हुए थे उनकी मदद के लिए कुछ आंदोलनकारी काम करते थे। उनकी तथा रिश्तेदारों व पड़ोसियों की मदद से जीवन पटरी पर आने लगी थी, लेकिन पुलिस का हर वक्त पहरा रहता था। इसलिए खुराना घर नहीं आ सकते थे। अध्यापन की उनकी नौकरी भी छूट गई थी। वे गिरफ्तारी से बचते हुए आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन कुछ माह बाद उनकी भी गिरफ्तारी हो गई।
ऐसी विपरित परिस्थिति में वह बच्चों व बीमार सास-ससुर की देखभाल करती रहीं। इसी तरह की दास्तां दिल्ली के अन्य कई परिवारों की भी है। लेकिन उन परिवारों को इस बात का गर्व है कि उन्होंने हर तरह की ज्यादती व दुख बर्दाश्त करते हुए लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया।
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