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क्या टूट के कगार पर है पाक, हुक्मरानों के खिलाफ उठने लगे विरोध के स्वर

सिंध प्रांत में भी पाकिस्तान से आजादी प्राप्त करने की आवाजें सुनाई देने लगीं। इससे हो सकता है कि पाकिस्तान अपनी स्वयं की करनी के कारण टूट कर बिखर जाए।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Wed, 08 Feb 2017 02:05 AM (IST)Updated: Wed, 08 Feb 2017 12:47 PM (IST)
क्या टूट के कगार पर है पाक, हुक्मरानों के खिलाफ उठने लगे विरोध के स्वर
क्या टूट के कगार पर है पाक, हुक्मरानों के खिलाफ उठने लगे विरोध के स्वर

नई दिल्ली, जेएनएन। पाकिस्तान आतंक का अड्डा है इस बात के न जाने कितने सबूत भारत ने दुनिया के सामने रखे लेकिन पाकिस्तान ने इन सबूतों को कभी तवज्जो नहीं दी। इस देश ने कभी ये नहीं माना कि आतंक उसके देस में पनप रहा है। अब इसका खामियाजा पाकिस्तान को ही भुगतना पड़ रहा है। धीरे-धीरे दुनिया के सभी देश पाकिस्तान से मुंह मोड़ने लगे हैं।

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भारत में मोदी सरकार आने के बाद पाकिस्तान में आतंक के खिलाफ कार्रवाई भी तेज हुई है। यहां तक कि अब आतंकी देश में ही विरोध के स्वर सुनने को मिल रहे हैं।

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पाकिस्तान की ज्यादती के विरोध में ब्लूचिस्तान में उठ रहीं आवाजों में एक और स्वर शामिल हो गया। अब सिंध प्रांत में भी पाकिस्तान से आजादी प्राप्त करने की आवाजें सुनाई देने लगीं। इससे हो सकता है कि पाकिस्तान अपनी स्वयं की करनी के कारण टूट कर बिखर जाए।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध

इसके साथ ही पाक में चीन के सहयोग से बन रहे अरबों डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का शुरू से विरोध किया जाता रहा है। इस बीच पाकिस्तान में भी इसका जबरदस्त विरोध देखते हुए चीन घबरा गया है।जहां तक चीन की बात है वो पाकिस्तान का साथ देता रहा है। लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलिया को लेकर पाक सांसदों ने भी विरोध जताया।

इस गलियारे को ईस्ट इंडिया कंपनी जैसा अनुभव बनने की आशंका जताने के ठीक बाद चीन के राजदूत ने तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान से मुलाकात की। पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ के मुताबिक चीन ने इमरान खान से आश्वासन लिया कि उनकी पार्टी नवाज शरीफ के विरोध प्रदर्शनों में गलियारे को निशाना नहीं बनाएगी।

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चीन को डर था कि शरीफ का विरोध करते हुए इमरान इस गलियारे पर भी पीएम को निशाना बना सकते हैं। यदि ऐसा होता तो जन विरोध के चलते पाकिस्तानी आवाम गलियारे के निर्माण में बड़ी बाधा खड़ी कर देती। यह गलियारा पाक के तालिबानी इलाकों से होकर जाएगा जहां दोनों देशों की सरकारों को हमलों का शक है। इसके दूसरे छोर पर बलूचिस्तान का ग्वादर क्षेत्र है जहां बलूच आंदोलन के तहत इसका विरोध जारी है।

उरी हमले का विरोध

उरी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहद खराब हो चुके हैं। भारत सरकार की ठोस कूटनीतिक पहलों के परिणामस्वरूप जहां पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ रहा है, वहीं पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने देश की आंतरिक राजनीति में भी बड़ा दबाव झेलना पड़ा । खुद पाकिस्तान में विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि शरीफ की सरकार न सिर्फ भ्रष्ट और नकारा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असफल है।

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यही नहीं उड़ी हमले के बाद पूरी दुनिया ने भारत के प्रति समर्थन व्यक्त किया। यहां तक कि पाकिस्तान का दोस्त माना जानेवाला चीन भी उसके साथ खुल कर खड़ा दिखने में हिचकिचा गया। अमेरिका, रूस और कई यूरोपीय देशों ने भी हमले की कड़ी निंदा की।

बिगड़ रहे अंदरूनी हालात, सत्ता परिवर्तन की बढ़ रही संभावना
इस वक्त पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत खराब हो चुके हैं और सरकार बिल्कुल ही अप्रभावी नजर आ रही है। एक तो पाक सेना वहां की नागरिक सरकार की सुन नहीं रही है और दूसरे विपक्षी पार्टियां भी उसे एक कमजोर सरकार मान रही हैं।

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पाकिस्तान में तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के इमरान खान ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तानी अवाम नवाज शरीफ जैसा बुजदिल नहीं है और हम सब अपनी सेना के साथ खड़े हैं। जब भी पाकिस्तान के अंदरूनी हालात खराब होते हैं और वहां की सेना और सरकार के बीच सामंजस्य बिगड़ता है, तब-तब सत्ता-पलट की आशंका बढ़ जाती है।

दूसरी ओर, उरी आतंकी हमले के बाद से भारत और कुछ पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-विरोध में जो भी गतिविधियां हुई हैं, उससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान कुछ अलग-थलग तो पड़ ही गया है।

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