गांधी ने दिलाया चार वर्ष बाद रेलवे को गणतंत्र परेड में प्रवेश, जानिए पूरी कहानी
रेलवे की उपलब्धियों की दिखाने के लिए इसमें स्वदेशी ट्रेन-18 को भी जगह दी गई है। इससे पहले तीन वर्षों से रेलवे की झांकी समीक्षा में पास नहीं हो पा रही थी।
संजय सिंह, नई दिल्ली। मोहन से महात्मा। यह थीम है रेलवे की झांकी का, जिसके जरिए रेलवे को चार वर्ष बाद गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने का मौका मिलेगा। इसमें महात्मा गांधी की अफ्रीका से भारत तक की जीवन यात्रा को मूर्त रूप दिया गया है। हालांकि रेलवे की उपलब्धियों की दिखाने के लिए इसमें स्वदेशी ट्रेन-18 को भी जगह दी गई है। इससे पहले तीन वर्षों से रेलवे की झांकी समीक्षा में पास नहीं हो पा रही थी।
गांधी जी का रेलवे के साथ गहरा संबंध था। अफ्रीका से लेकर भारत तक उन्होंने सैकड़ों ट्रेन यात्राएं कीं, जिनमें 1893 में मोहनदास के रूप में दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरित्जबर्ग स्टेशन पर अंग्रेजों द्वारा उन्हें सामान समेत ट्रेन से बाहर धकेलने और भारत में हमेशा थर्ड क्लास में चलने की कहानियां जन-जन की जुबान पर हैं। रेलवे की झांकी में इसके साथ-साथ गांधी के भारत आने और फिर ट्रेन के जरिए देश के कोने-कोने की यात्रा करने के ऐतिहासिक क्षणों को चुनिंदा दृश्यों के मार्फत मूर्तिमान किया गया है। वस्तुत: ये झांकी मोहनदास करमचंद के महात्मा गांधी बनने की ऐतिहासिक यात्रा का मूर्त वर्णन है।
झांकी के दो हिस्से हैं। पहले और अगले भाग में ट्रेन का एक डिब्बा दिखाया गया है, जिसकी छत पर कस्तूरबा गांधी चरखे के साथ बैठी हुई हैं। झांकी के दूसरे और पिछले भाग में ट्रेन के दो डिब्बे दर्शाए गए हैं। इनमें गांधी जी को हरिजन फंड के लिए दान एकत्र करते हुए दिखाया गया है। सबसे पीछे गांधी की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है जिसमें उन्हें ऊंचे मंच से विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए दर्शाया गया है। इसी हिस्से में ट्रेन-18 को गांधी के 'स्वदेशी' के नजरिये के साथ रेलवे की प्रगति के प्रतीक के तौर पर झलकाने का प्रयास किया गया है।
रेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने चार वर्ष बाद मिली इस कामयाबी को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। साथ ही कहा कि अब प्रयास इस झांकी को आकर्षक बनाकर पुरस्कार जीतने का होगा।