छत्तीसगढ़: आदिवासियों के लिए तैयार हुआ ये खास एप, पढ़कर सुनाएगा अखबार
इस एप को माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च के साथ ही आइआइआइटी रायपुर और सीजीनेट स्वर फाउंडेशन ने तैयार किया है।
दीपक अवस्थी, रायपुर। आदिवासियों की शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने और आमजनों से वे बेहतर संवाद कर सकें, इसके लिए छत्तीसगढ़ में तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च टीम, अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइआइटी) और सीजीनेट स्वर फाउंडेशन ने आदिवासियों की प्रमुख जाति ‘गोंड’ को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक खास एप बनाया है। जिसे ‘आदिवासी रेडियो एप’ नाम दिया गया है। इस एप की खासियत यह है कि वह आदिवासियों को हिंदी व अंग्रेजी अखबार और किताबों को उनकी ही बोली ‘गोंडी’ में पढ़कर सुनाएगा। जरूरत पड़ने पर उसे ‘गोंडी’ में लिखकर भी बताएगा। एप मंगलवार को रायपुर में लॉच किया गया।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में एक तिहाई यानी 31.8 प्रतिशत लोग आदिवासी हैं। आदिवासियों में 42 जनजातियां हैं। इनमें प्रमुख जनजाति गोंड है। आठ जिलों-बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा, जांजगीर चांपा और दुर्ग में यह जनजाति बहुतायत में पाई जाती है। गोंडी बोलने वाले आदिवासियों को हिंदी बोलने और पढ़ाई करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए यह एप कामयाब होगा।
ऐसे करता है रेडियो एप काम
आइआइआइटी के प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि आदिवासी रेडियो एप पर कोई भी आदिवासी हिंदी या अंग्रेजी का कोई भी मैटर स्क्रैन करेगा तो गोंडी में टेक्स्ट टू स्पीच तकनीक का इस्तेमाल कर लेख, कहानी को गोंडी भाषा में सुन सकता है और अनुवाद कर सकता है।
ऐसे हुई थी शुरुआत
सामाजिक संस्था सीजीनेट स्वर फाउंडेशन एक साल पूर्व ‘गोंड’ जनजाति को पढ़ाई और अफसरों के सामने बात रखने में हो रही दिक्कतों के हल के लिए आइआइआइटी से संपर्क किया था। तभी से एप बनाना प्रारंभ किया गया। माइक्रोसॉफ्ट ने मदद की। मशीन लर्निग और अन्य कंप्यूटर भाषाओं से एप तैयार किया गया। इसमें हंिदूी और अंग्रेजी के समाचार पत्रों को गोंडी में अनुवाद करने की सुविधा दी गई ताकि बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा जैसे सुदूर इलाकों के गोंड आदिवासी देश-दुनिया की खबरों से परिचित रहें।
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