Move to Jagran APP

नौकरी छोड़ उन्नत खेती को बनाया जुनून, आज दे रहीं रोजगार

वल्लरी आज अपने गांव में उन्नत खेती कर दूसरों के लिए उदाहरण बन गई हैं। वह कहती हैं कि अन्नदाता होने में जो सुख व सुकून है, वह किसी कारोबार या नौकरी में नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 09:57 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 09:58 AM (IST)
नौकरी छोड़ उन्नत खेती को बनाया जुनून, आज दे रहीं रोजगार
नौकरी छोड़ उन्नत खेती को बनाया जुनून, आज दे रहीं रोजगार

महासमुंद (छग) [आनंदराम साहू]। आज शिक्षित युवा पीढ़ी रुपये कमाने के लिए विदेशी कंपनियों या फिर सरकारी विभागों में नौकरी पाने के भाग रही है। वहीं छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के छोटे से गांव सिर्री की वल्लरी चंद्राकर ने लीक तोड़कर मिसाल पेश की है। बीई (आइटी) और एमटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद रायपुर के एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी की, लेकिन मन नहीं लगा और इस्तीफा दे दिया। वल्लरी आज अपने गांव में उन्नत खेती कर दूसरों के लिए उदाहरण बन गई हैं। वह कहती हैं कि अन्नदाता होने में जो सुख व सुकून है, वह किसी कारोबार या नौकरी में नहीं है।

loksabha election banner

वल्लरी के पिता जल मौसम विज्ञान विभाग रायपुर में उपअभियंता हैं। पढ़ाई के दौरान वह पिता के साथ गांव आती थीं। इसी क्रम में अपने ननिहाल (भिलाई स्थित ग्राम सिरसा जातीं) तो नाना पंचराम चंद्राकर (अब स्वर्गीय) से उन्हें खेती के बारे में काफी जानकारी मिलती। नाना की प्रेरणा से वल्लरी को खेती के प्रति ऐसी रुचि जगी कि उन्होंने रायपुर के दुर्गा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी और खेती करने गांव आ गईं। वल्लरी का मानना है कि कोई भी नौकरी खेती से श्रेष्ठ नहीं हो सकती। वल्लरी खुद ट्रैक्टर चलाकर खेतों में जाती हैं। इन दिनों उनकी बाड़ी में मिर्ची, करेला, बरबट्टी, लौकी, टमाटर आदि मौसमी सब्जियों की बहार है। ओडिशा, भोपाल, इंदौर, नागपुर, रायपुर से लेकर दिल्ली तक उनके खेतों में पैदा होने वाली सब्जियों की मांग है।

तीन पीढ़ियों में किसी ने खुद नहीं की खेती

वल्लरी ने बताया कि उनके दादा स्व. तेजनाथ चंद्राकर राजनांदगांव में प्राचार्य थे। शासकीय सेवा में होने के कारण उनके घर की तीन पीढ़ियों में से किसी ने कभी स्वयं खेती नहीं की। सब कुछ सहायकों के भरोसे ही होता था। यही वजह है कि उनका परिवार खेती के आनंद से वंचित रहा।

माता-पिता को बिटिया पर गर्व

वल्लरी की मां युवल चंद्राकर बताती हैं कि उनकी दो बेटियां हैं। दोनों ने कभी बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी। वल्लरी सिर्री के 26 एकड़ और घुंचापाली (तुसदा) के 12 एकड़ खेत में सब्जी की खेती करती हैं। दूसरी ओर छोटी बेटी पल्लवी चंद्राकर भिलाई के एक कॉलेज में सहायक प्राध्यापक है। ऐसी बेटियों पर बहुत गर्व होता है।

50 लोगों को नियमित देती हैं रोजगार

वल्लरी बताती हैं कि शुरुआत में प्रति एकड़ करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च करने पड़े। आज साल भर में सभी खर्च निकालकर प्रति एकड़ करीब 50 हजार रुपये की आय होती है। इतना ही नहीं, वह 50 लोगों को नियमित रोजगार भी देती हैं। इतनी ही नहीं वह खेती से संबंधित काम निपटाने के बाद शाम पांच से छह बजे तक गांव की करीब 35 लड़कियों को कंप्यूटर और अंग्रेजी की जानकारी देती हैं। किसानों को उन्नत तकनीक से खेती करने के लिए कार्यशाला आयोजित करती हैं।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.