कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसमिशन के फेज में नहीं पहुंचने के दावे को लेकर स्वास्थ्य विभाग पर उठे सवाल
Coronavirus देश में डिजीज कंट्रोल की अग्रणी संस्था नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) भी इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय को आगाह कर चुका है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। कोरोना वायरस से ग्रसित लोगों की पहचान के लिए जांच के मौजूदा तरीके को लेकर स्वास्थ्य विभाग में ही सवाल उठने लगे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के कुछ अधिकारी दबे स्वर में कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसफर के स्टेज तीन में नहीं पहुंचने के दावे पर सवाल उठा रहे हैं। उनके अनुसार देश में कोरोना वायरस 'लिमिटेड कम्युनिटी ट्रांसमिशन' के फेज में पहुंच गया है, जो जांच के मौजूदा तरीके से कारण सामने नहीं आ पा रहा है। बताया जाता है कि देश में डिजीज कंट्रोल की अग्रणी संस्था नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) भी इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय को आगाह कर चुका है। ध्यान रहे कि संक्रामक रोगों को रोकने के लिए साधारणतया यही संस्था जिम्मेदार है। लेकिन कोरोना के मामले में कमान आइसीएमआर के हाथ में है।
रैंडम सैंपल की हो रही जांच
दरअसल आइसीएमआर पूरे देश में 15 मार्च तक लिए गए 826 रैंडम सैंपल में कोरोना के वायरस के नहीं मिलने के आधार पर देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू नहीं होने का दावा कर रहा है। आइसीएमआर के महानिदेशक डाक्टर बलराम भार्गव के अनुसार ये रैंडम सैंपल पूरे देश में आइसीयू में भर्ती एनफ्लुएंजा की तरह सांस से संबंधित गंभीर बीमारी ग्रसित मरीजों के लिए गए हैं। कोरोना वायरस के मरीजों के भी यही लक्षण होते हैं। उनके अनुसार यदि कोरोना वायरस आम लोगों के बीच फैलता तो किसी-न-किसी सैंपल में वह देखने को जरूर मिलता है। इसी के आधार बनाते हुए आइसीएमआर सिर्फ उन्हीं संदिग्ध लोगों के कोरोना जांच पर बल दे रहा है, जिनमें इसके लक्षण सामने आ रहे हैं। बाकि सभी को खुद को 14 तक अलग-थलग रहने को कहा जा रहा है और उन पर नजर रखी जा रही है। इस तरह देश भर में 60 हजार से अधिक कोरोना के संदिग्ध सामुदायिक निगरानी में रखे गए हैं।
आइसीएमआर के दावे की सटीकता संदेह के घेरे में
वहीं, दूसरी ओर आइसीएमआर के दावे पर सवाल उठाने वाले उसके सैंपल जुटाने के तरीके पर ही सवाल उठा रहे हैं। 30 जनवरी को केरल में मिले कोरोना के तीन मरीजों के बाद एक महीने तक देश एक भी नया मरीज सामने नहीं आया। लेकिन दो और तीन मार्च को अचानक इनकी संख्या 28 पहुंच गई जो अब 170 के आसपास जांच पहुंची है। खुद आइसीएमआर कहता है कि कोरोना वायरस के लक्षण सामने आने में दो से 12 दिन तक लग जाते हैं। ऐसे में 15 मार्च तक कोरोना से ग्रसित मरीजों के सरकारी अस्पतालों के आइसीयू तक पहुंचना संभव नहीं है। जाहिर है आइसीएमआर के दावे की पूरी सटीकता संदेह के घेरे में है। ऐसे में कोरोना के संदिग्धों की पहचान के लिए अधिक-से-अधिक लोगों की जांच कर पूरी तरह आश्वस्त होना जरूरी है।
पुणे में कोरोना मरीज मिलने के बाद हजार लोगों की जांच
कोरोना वायरस से 'लिमिटेड कम्युनिटी ट्रांसमिशन' के स्टेज तक पहुंच जाने का दावा करते हुए एक अधिकारी ने कहा कि पुणे, नागपुर, मुंबई और आगरा में यह चुका है और इन जगहों पर कोरोना के ग्रसित मरीजों की पहचान कर उन्हें अलग-थलग करने के लिए बडे़ पैमाने पर लोगों की जांच की जरूरत है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पुणे में एक कोरोना मरीज के मिलने के बाद 1000 लोगों की जांच की गई, जिनमें 13 में कोरोना के वायरस मिले। इसी तरह से दिल्ली से चेन्नई पहुंचे एक ऐसा युवक कोरोना वायरस से ग्रसित मिला है, जो विदेश नहीं गया था। दिल्ली से आने के बाद वह बिल्कुल ठीक था और दो दिन बाद उसमें कोरोना के लक्षण दिखे। यानी वह दिल्ली में ही कोरोना वायरस से ग्रसित हुआ। सवाल यह है कि दिल्ली में वह किसी कोरोना वायरस के मरीज के सीधे संपर्क में आया था तो उसकी पहचान क्यों नहीं हो पाई। ये कोरोना वायरस के सीमित मात्रा में कम्युनिटी ट्रांसमिशन में पहुंचने के संकेत हैं।
वैसे इस संबंध में पूछे जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कोरोना वायरस के किसी तरह के कम्युनिटी ट्रांसमिशन के फेज में पहुंचने से इनकार कर दिया। लव अग्रवाल के अनुसार, कम्युनिटी ट्रांसमिशन का फेज तभी माना जाएगा, जब कोरोना से ग्रसित किसी व्यक्ति के स्रोत का पता नहीं चले, जबकि भारत में इससे ग्रसित होने वाले सभी मरीजों के स्रोत की जानकारी है।