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मढ़ौरा डीजल फैक्ट्री के औचित्य पर कैग ने उठाए सवाल

देश में डीजल इंजनों के उत्पादन और मांग की स्थिति को देखते हुए कैग ने इस फैक्ट्री को अनावश्यक बताया है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 10:48 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 10:48 PM (IST)
मढ़ौरा डीजल फैक्ट्री के औचित्य पर कैग ने उठाए सवाल
मढ़ौरा डीजल फैक्ट्री के औचित्य पर कैग ने उठाए सवाल

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने मढ़ौरा में डीजल लोको फैक्टरी लगाने के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। देश में डीजल इंजनों के उत्पादन और मांग की स्थिति को देखते हुए कैग ने इस फैक्ट्री को अनावश्यक बताया है।

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हाल ही में संसद में पेश रिपोर्ट में कैग ने कहा है, 'इस फैक्ट्री के जरिए रेलवे अपने बेड़े में 1000 डीजल लोकोमोटिव और शामिल करेगा। जबकि वास्तव में इन इंजनों की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब कभी भी डीजल इंजनों की थोड़ी बहुत आवश्यकता होगी, उसे डीएलडब्लू, वाराणसी के उत्पादन से आसानी से पूरा किया जा सकता है।'

कैग के मुताबिक रेलवे के पास उपलब्ध डीजल इंजनों की संख्या वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। बदलते परिदृश्य में जहां रेलवे अपने व्यस्त रूटों के पूर्ण विद्युतीकरण की योजना बना रहा है। मालगाडि़यों के लिए बनने वाला डेडीकेटेट फ्रेट कारीडोर भी विद्युतीकृत होगा।

ऐसे में इस फैक्ट्री में उत्पादित डीजल इंजनों के लाभकारी उपयोग के लिए शायद ही कोई गुंजाइश होगी। इतना ही नहीं, रेलवे ने स्वयं 2019-20 तक डीएलडब्लू में डीजल इंजनों का उत्पादन कम करने का निर्णय भी ले रखा है।

ऐसे में डीजल इंजनों के उत्पादन के लिए नए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की खातिर 17,126 करोड़ रुपये की भारी देनदारी उठाना रेलवे की समग्र रणनीतिक के अनुरूप नहीं है। इसलिए इस बात की सिफारिश की जाती है कि रेलवे इस मामले पर पुनर्विचार करे और इस बात की जांच करे कि क्या ऐसी परिसंपत्तियों एवं इंफ्रास्ट्रक्चर का सृजन विवेकपूर्ण है जिनकी भविष्य में आवश्यकता नहीं है।

कैग ने लिखा है कि रेलवे के पास इतने इंजन हैं कि एक चौथाई इंजन हमेशा अप्रयुक्त रहते हैं। उदाहरण के लिए 2015-16 में कुल 5869 डीजल इंजनों में केवल 4306 का उपयोग हो रहा था, जबकि 1563 यानी 26 फीसद बेकार खड़े थे। यह दर्शाता है कि रेलवे के पास पहले ही जरूरत से ज्यादा डीजल इंजन हैं। ऐसे में अतिरिक्त उत्पादन की आवश्यकता समझ से परे है।

कैग का कहना है कि रेलवे ने सितंबर, 2006 में मढ़ौरा में फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव किया था। जबकि नवंबर, 2015 में जीई ग्लोबल सोर्सिग इंडिया प्रा. लि. को ठेका सौंपा गया। चूंकि लंबा समय बीत चुका था, इसलिए ठेका देने से पहले रेलवे को डीजल इंजनों की आवश्यकता का नए सिरे से आकलन करना चाहिए था। खासकर इसलिए कि वो 2021 तक पूर्ण विद्युतीकरण की योजना भी बना रहा है। वैसे भी यदि सौ फीसद विद्युतीकरण नहीं भी होता है तो भी केवल अल्प यातायात वाले रूटों पर डीजल इंजनों की आवश्यकता होगी।

मढ़ौरा फैक्ट्री के औचित्य पर कैग ने इस साल 18 जनवरी को रेलवे बोर्ड से सवाल पूछे थे। लेकिन 28 फरवरी तक भी उसे कोई जवाब नहीं मिला था।


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