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Pulwama Terror Attack के बाद पाकिस्तान से वापस लिया गया MFN का दर्जा, जानें क्या होता है यह

आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। रणनीतिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के जरिए पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाया जाएगा।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 12:00 PM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 12:17 PM (IST)
Pulwama Terror Attack के बाद पाकिस्तान से वापस लिया गया MFN का दर्जा, जानें क्या होता है यह
Pulwama Terror Attack के बाद पाकिस्तान से वापस लिया गया MFN का दर्जा, जानें क्या होता है यह

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। Pulwama Terror Attack जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में गुरुवार को अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा में हुए हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए। कई अन्य जवान गंभीर रूप से जख्मी हैं। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्‍मद ने ली है। इस बीच शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यॉरिटी (CCS) की बैठक हुई। इस बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला लिया गया है।

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आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। रणनीतिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के जरिए पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाया जाएगा। इसके अलावा केंद्र सरकार ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने का फैसला किया है। इस फैसले को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है।

Pulwama Terror attack

क्या होता है MFN दर्जा
MFN यानि मोस्ट फेवर्ड नेशन एक खास दर्जा होता है। यह दर्जा व्यापार में सहयोगी राष्ट्रों को दिया जाता है। इसमें MFN राष्ट्र को भरोसा दिलाया जाता है कि उसके साथ भेदभाव रहित व्यापार किया जाएगा। डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार भी ऐसे दो देश एक-दूसरे से किसी भी तरह का भेदभाव नहीं कर सकते। इसमें यह भी कहा गया है कि अगर व्यापार सहयोगी को खास स्टेटस दिया जाता है तो WTO के सभी सदस्य राष्ट्रों को भी वैसा ही दर्जा दिया जाना चाहिए।

पाकिस्तान को कब दिया गया MFN का दर्जा
भारत ने WTO यानि विश्व व्यापार संगठन के बनने के एक साल बाद ही यानि 1996 में पाकिस्तान को MFN का दर्जा दे दिया था। पाकिस्तान ने भारत को MFN का दर्जा नहीं दिया है, ऐसे में लंबे वक्त से देश में पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस लिए जाने की मांग उठती रही है। Pulwama Terror Attack के बाद आखिरकार पाकिस्तान से यह दर्जा वापस ले लिया गया है। हालांकि दोनों देशों के बीच सीधा व्यापार कम ही होता है, ऐसे में भारत द्वारा MFN का दर्जा देने या पाकिस्तान की तरफ से MFN का दर्जा नहीं मिलने से दोनों देशों के बीच व्यापार पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। यह भारत की अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारने की ही नीति है कि पाकिस्तान को MFN का दर्जा दिया था, जबकि पाकिस्तानी आतंकवादी हमारे देश में अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देते रहते हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत को MFN का दर्जा नहीं दिया है। पाकिस्तान का तर्क यह रहा कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक अविश्वास और सीमा विवाद है।

भारत-पाकिस्तान के बीच कितना होता है व्यापार
भारत और पाकिस्तान के बीच 2.61 बिलियन डॉलर यानी करीब 1860 करोड़ रुपये का सीधा व्यापार होता है। दोनों देशों के बीच मुख्य तौर पर जिन चीजों का व्यापार होता है उसमें सीमेंट, चीनी, ऑर्गेनिक कैमिकल्स, कॉटन, मानव निर्मित तत्व, सब्जियां और कई तरह के फल, मिनरल फ्यूल, मिनरल ऑइल, नमक, ड्राइ फ्रूट और स्टील जैसे उत्पाद आते हैं।

MFN का मतलब तरजीह देना होता है क्या?
MFN का मतलब बिल्कुल भी यह नहीं है कि उस देश को ही व्यापार में तरजीह दी जाए। MFN का सीधा मतलब यह है कि जिस देश को यह दर्जा दिया गया है उसके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा। उस देश को अन्य देशों को दिए जा रहे व्यापार के मौकों के बराबर ही मौका दिया जाएगा। जब किसी देश को MFN का दर्जा दिया जाता है तो उम्मीद की जाती है कि वहां द्विपक्षीय व्यापार के आड़े आ रहे रोड़ों को हटाया जाएगा और टैरिफ में कमी होगी। यह भी उम्मीद की जाती है कि दोनों देशों के बीच और चीजों का व्यापार बढ़ेगा और सामान की आवाजाही आसान होगी।

MFN का फायदे?
विकासशील देशों के लिए MFN फायदे का सौदा है। इससे इन देशों को एक बड़ा बाजार मिलता है। जिससे वे अपने सामान को वैश्विक बाजार में आसानी से पहुंचा सकते हैं और इसमें उनकी एक्पोर्ट की लागत भी कम हो जाती है। यहां उनके व्यापार के रास्ते में आने वाले रोड़े भी स्वत: ही दूर हो जाते हैं। इससे बाजार में कॉम्पटीशन बढ़ता है।

MFN के नुकसान?
इसका सबसे बड़ा नुकसान तो यही है कि अगर किसी देश को MFN का दर्जा दिया जाता है तो फिर WTO के सभी सदस्य देशों को भी यही दर्जा देना पड़ता है। इससे एक तरह की प्राइस वार शुरू हो सकती है और यह स्थिति घरेलू उद्योगों के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसे में कई देश विदेशों से आने वाले सस्ते सामान के सामने अपने घरेलू उद्योगों को बचा नहीं पाते हैं।


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