उत्तराधिकार व विरासत के लिए एक समान कानून की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल
हिंदू बौद्ध सिख और जैन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 जबकि ईसाई पारसी और यहूदी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत आते हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करके उत्तराधिकार और विरासत कानूनों की विसंगतियों को दूर करके उन्हें सभी नागरिकों के लिए एक समान बनाने की मांग की गई है।
भाजपा नेता ने जनहित याचिका दाखिल कर कानूनों की विसंगतियां दूर करने की मांग की
भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के लिए न्याय, समानता और गरिमा सुनिश्चित के लिए उत्तराधिकार और विरासत कानूनों का लैंगिक और धार्मिक बंधनों से मुक्त होना बेहद जरूरी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया है।
भाजपा नेता की याचिका: विधि आयोग उत्तराधिकार और विरासत कानूनों पर रिपोर्ट तैयार करे
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दाखिल याचिका में विधि आयोग को यह निर्देश देने की मांग भी की गई है कि वह उत्तराधिकार और विरासत से जुड़े विकसित देशों के कानूनों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का अध्ययन करे और तीन महीनों के भीतर सभी नागरिकों के लिए उत्तराधिकार और विरासत के समान आधारों पर एक रिपोर्ट तैयार करे।
उत्तराधिकार और विरासत से जुड़े लैंगिक भेदभाव वाले कानून संविधान की भावना के प्रतिकूल हैं
याचिका के मुताबिक उत्तराधिकार और विरासत से जुड़े लैंगिक भेदभाव वाले कानून और धार्मिक भेदभाव वाले पर्सनल लॉ संविधान की भावना के प्रतिकूल हैं। इसमें कहा गया है कि हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत आते हैं जबकि ईसाई, पारसी और यहूदी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत आते हैं। इसी तरह मुस्लिम शरीयत कानून के तहत आते हैं।