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अटल के लिए पंडित छन्नूलाल मिश्र ने गाया, 'फिर अंधेरा छाया'

वाराणसी में ख्यात शास्त्रीय संगीत गायक पं. छन्नूलाल मिश्र ने अटलजी को गीतों के माध्यम से श्रद्धांजलि दी।

By Edited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:49 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 07:46 PM (IST)
अटल के लिए पंडित छन्नूलाल मिश्र ने गाया, 'फिर अंधेरा छाया'
अटल के लिए पंडित छन्नूलाल मिश्र ने गाया, 'फिर अंधेरा छाया'

वाराणसी (जेएनएन)।            

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'नहीं रहा है कोई यहां पर, न कोई रहने आया है।

चार दिनों की चटक चांदनी, फिर अंधेरा छाया है।

 पांच तत्व का बना ये पुतला, इसी में ज्योति समाई है।

झूठा सच्चा देख पड़े, ये सब भगवत की माया है।

गलत है करता इस पर जगत गुमान, वाह रे बलमू।

की पड़ी रही सुर सारी की रेत मैदान, वाह रे बलमू।

इस गीत के माध्यम से ख्यात शास्त्रीय संगीत गायक पद्मभूषण पं. छन्नू लाल मिश्र ने अटल जी को सांगीतिक श्रद्धांजलि दी। बताया कि अटलजी सिर्फ सधे राजनीतिज्ञ और साहित्यकार ही नहीं बल्कि संगीत की भी गहरी समझ रखते थे। पं छन्नूलाल स्मृतियों पर जोर देते हुए कहते हैं कि एक बार एक सम्मेलन में उन्होंने पं. किशन महाराज और गिरजा देवी के साथ प्रस्तुति दी।

पं. छन्नूलाल मिश्र ने शिव ताडव प्रस्तुत किया। इससे भावविभोर अटलजी ने खूब तारीफ की थी। पं. छन्नूलाल मिश्र ने बताया कि अटलजी मेरे लिए पिता की तरह थे। उन्होंने पिता तुल्य अटल जी को खो दिया है जो उन्हें हर मोड़ पर मार्गदर्शन करते रहे। पूर्व प्रधानमंत्री का संगीत-साहित्य की नगरी बनारस से पुराना नाता रहा है। उनका व्यक्तित्व अपने नाम की ही तरह अटल था।
 

उनकी वाणी अटल थी। उनके जाने से देश में एक युग का अंत हो गया है। उनकी कमी पूरी नहीं हो सकती। उनके जाने से देश को बहुत बड़ी क्षति हुई है। पं.छन्नूलाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अटल जी के विचारों को आगे बढ़ाने वाला बताया।

जुबां पर उनकी कविताएं, आंखों में यादों के आंसू : सोमा घोष -सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्मश्री सोमा घोष का कहना है कि अटलजी ने हमेशा निरपेक्ष विचार रखे जो साधु-संतों में पाए जाते हैं। वे विचारों में भी अटल थे। मेरा सौभाग्य है कि अटलजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मलाड (मुंबई) में आयोजित 'अटलगीत गंगा' की अध्यक्षता करने का मौका मिला था। उसमें मैंने उनकी कविता का गायन किया था।

इसकी पंक्तियां 'मन में हो जब मौज बहारों की, चमकाएं चमक सितारों की। जब खुशियों के शुभ घेरे हों, तन्हाई में भी मेले हों। आनंद की आभा होती है, उस रोज दीवाली होती है।' इस तरह की कविताएं वही लिख सकता है जिसके हृदय में आनंद की लहर हो। आज उनके जाने के बाद एक फिर जुबां पर उनकी कविताएं हैं और आंखों में उनकी यादों के आंसू।


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