कृषि सुधार के प्रावधान कई राज्यों को लगने लगे नागवार, नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र से लगाई गुहार
विरोध करने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई की मांग की है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी बाधा को चुटकी बजाकर खत्म जरूर कर दिया है, लेकिन कुछ राज्यों को केंद्र की यह पहल बहुत नागवार लगने लगी है। सुधारों के लागू होने के साथ ही कृषि उत्पादों से वसूले जाने वाले टैक्स और होने वाली मनमानी पर तत्काल प्रभाव से रोक लग गई है। विपक्षी दलों को आशंका है कि कहीं मंडी के दायरे को सीमित करने के बहाने सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से पल्ला न झाड़ ले। कई राज्यों ने कृषि क्षेत्र के सुधार से राज्यों को होने वाली आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र से गुहार लगाई है।
मंडी कानून में सुधार करने से कृषि उत्पादों से वसूले जाने वाले टैक्स पर लगी रोक से कुछ राज्य परेशान
कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती मंडी कानून में सुधार न होना था, जिसे केंद्र सरकार ने एक झटके में कर दिया। लेकिन इससे उन राज्यों के पेट में दर्द शुरु हो गया है, जिन्हें मंडी टैक्स के नाम पर सालाना कई सौ करोड़ रुपये की आमदनी होती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत राशन प्रणाली के लिए होने वाली अनाज की सरकारी खरीद से ऐसे राज्यों को 500 से 1500 करोड़ रुपये तक की मंडी टैक्स से आमदनी होती है। इस मंडी टैक्स का भुगतान खाद्य सब्सिडी से किया जाता है।
गैर-भाजपा शासित राज्यों में विरोध के सुर हुए मुखर
गैर-भाजपा शासित राज्यों में विरोध के सुर हुए मुखर होने लगे हैं। इनमें पंजाब, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और राजस्थान प्रमुख हैं। इन राज्यों की मंडियों से मिलने वाले टैक्स से सालाना अच्छी आमदनी हो जाती है।
मंडियों में कारोबार के साथ राजनीतिक गतिविधियों पर लगेगी लगाम
मंडियों में कारोबार के साथ राजनीतिक गतिविधियां भी खूब होती हैं। संग्रहित राजस्व के उपयोग पर सवाल उठते रहे हैं। इन सारी गतिविधियों पर लगाम लगनी तय है। प्राइवेट मंडियों की स्थापना के रास्ते भी खुल जाएंगे।
सुधारों के लागू हो जाने से किसान अपनी उपज देश में किसी को भी बेच सकता है
केंद्र सरकार ने लंबे समय से लंबित मंडी कानून में सुधार करने के साथ अनुबंध पर खेती करने (कांट्रैक्ट फार्मिग) की छूट और आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से प्रमुख कृषि उत्पादों को बाहर कर दिया है। इन सुधारों के लागू हो जाने से किसान अपनी उपज देश के किसी हिस्से में किसी को भी बिना किसी कानून बाधा के अपनी शर्तो पर बेच सकता है। इतना नहीं कांट्रैक्ट खेती की छूट होने से कोई भी उपभोक्ता किसी भी किसान के खेत पर उसकी सहमति से अपनी पसंद की खेती करा सकता है।
आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए विरोध करने वाले राज्यों ने पीएम मोदी से लगाई गुहार
विरोध करने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई की मांग की है। दरअसल, मंडियों में काम करने वाले आढ़ती भी इसे खतरे की घंटी मान चुके हैं। इसीलिए उन्होंने किसानों को भड़काना शुरू कर दिया है कि इसी बहाने सरकारें उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर होने वाली खरीद से पल्ला झाड़ सकती हैं। कर्नाटक में माकपा से संबद्ध मंडी यूनियनों ने भी विरोध करना शुरु कर दिया है।