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विजय दिवस: कारगिल के इन सूरमाओं के अदम्य साहस को देश का सलाम

कारगिल में योद्धाओं ने अपनी कुशलता से साबित कर दिया था कि भारतीय फौज यूं ही नहीं दुनिया की ताकतवर सेनाओं में से एक है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 25 Jul 2018 03:32 PM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 12:00 PM (IST)
विजय दिवस: कारगिल के इन सूरमाओं के अदम्य साहस को देश का सलाम
विजय दिवस: कारगिल के इन सूरमाओं के अदम्य साहस को देश का सलाम

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। इन वीरों ने 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल में बड़े पैमाने पर घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए अपने जान की बाजी लगा दी थी। कारगिल लड़ाई के 19 साल बीत चुके हैं। देश उन शहीदों को नमन कर रहा है जिन्होंने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। अदम्य साहस के बल पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के छक्के छुड़ा दिए। विजय दिवस के मौके पर हम उन सूरमाओं के बारे में बता रहे हैं जो देश के लिए आन, बान और शान हैं। 

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मेजर पदमपति आचार्य
पदमपति आचार्य लड़ाई के दौरान शहीद हो गए थे। देश के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र से उन्हें सम्मानित किया गया था। आचार्य को एक कठिन अभियान पर भेजा गया था। गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने सहयोगियों से दूर जाने को कहा और अंतिम सांस तक लड़ाई जारी रखी।

कैप्टन विक्रम बत्रा
कारगिल लड़ाई का जब जब जिक्र होगा कैप्टन विक्रम बत्रा को देश कभी भूल नहीं पाएगा। भारतीय माउंटेन वारफेयर के भारतीय इतिहास में उन्होंने सबसे कठिन अभियान को मुकाम तक पहुंचाया था। विक्रम बत्रा की बहादुरी को आप कुछ यूं समझ सकते हैं। एक बचाव अभियान के दौरान बत्रा ने अपने सूबेदारसे कहा कि तुम बाल बच्चेदार हो, पीछे हट जाओ। कैप्टन बत्रा पाकिस्तानी सैनिकों का सामना करते हुए शहीद हो गए थे।

मेजर अजय सिंह जसरोटिया
पाकिस्तानी घुसपैठियों का सामना करते हुए 15 जून 1999 को मेजर अजय सिंह जसरोटिया शहीद हो गए। असाधारण पराक्रम के लिए अजय सिंह को सेना मेडल से सम्मानित किया गया। अजय सिंह ने अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने अपने 6 साथियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जिसमें आज सभी लोग जिंदा हैं।

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह
कारगिल लड़ाई के समय बलवान सिंह लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे। असाधारण साहस के लिए उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

नायक दिगेंद्र कुमार
कारगिल लड़ाई में अदम्य साहस के लिए उन्हें 15 अगस्त 1999 को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। कुमार के बाएं हाथ में गोली लगी हुई थी। लेकिन अपने लाइट मशीन गन से उन्होंने 48 पाकिस्तानी सिपाहियों को मौत की घाट उतार दिया था। पाक घुसपैठियों से लड़ाई के दौरान उनकी शरीर में 18 गोलियां घुस गई थीं।

कैप्टन क्लिफोर्ड नानग्रुम
कारगिल युद्ध के दौरान अन्य शहीदों की तरह कैप्टन नानग्रुम शहीद हो गए थे। मेघालय के रहने वाले वो पहले शख्स थे जिन्हें भारत का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। गंभीर रूप से घायल नानग्रुम अंतिम सांस तक पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते रहे । वो एक बेहतरीन बॉक्सर भी थे।

कैप्टन जेरी प्रेम राज
कारगिल लड़ाई के दौरान कैप्टन जेरी प्रेम राज को कमीशन मिला था। टाइगर हिल पर तैनाती के दौरान वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे। जिस दिन वो घायल हुए थे उसी दिन निधन भी हो गया था। अदम्य साहस के लिए उन्हें वीर चक्र (तीसरा सबसे बड़ा सम्मान) से सम्मानित किया गया था।

कैप्टन अनुज नैय्यर
अदम्य साहस के लिए अनुज नैय्यर को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उनकी अगुवाई में पाकिस्तानी सेना के चार में से तीन बंकरों को ध्वस्त किये गए थे। चौथे बंकर को तबाह करने के दौरान वो घायल हो गए। लेकिन अंतिम सांस तक पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ाई जारी रखी।

कैप्टन एन केनग्रूज
2 राजपुताना राइफल्स के एन केनग्रूज को भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। कारगिल लड़ाई में उन्होंनं नंगे पांव बर्फीली चोटियों पर चढ़ाई की थी और दुश्मनों को तबाह कर दिया था। लेकिन पहाड़ी पर से गिरने से पहले उन्होंने पाकिस्तानी फौज को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया।

राइफल मैन संजय कुमार
कारगिल लड़ाई में अदम्य साहस के लिए उन्हें सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। गंभीर रूप से वो घायल थे, शरीर से खून बह रहा था लेकिन तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था।


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