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यूं ही नहीं मिल जाएगी CAA के तहत नागरिकता, 2014 से पहले आने का देना होगा सुबूत, कानून में ये प्रावधान

गैर मुस्लिम शरणार्थियों को CAA के तहत नागरिकता पाने के लिए कई मानकों का पालन करना होगा। जानें क्‍या हैं वे शर्तें जिन्‍हें पूरा किए बिना नहीं मिलेगी नागरिकता...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 10:25 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 10:33 PM (IST)
यूं ही नहीं मिल जाएगी CAA के तहत नागरिकता, 2014 से पहले आने का देना होगा सुबूत, कानून में ये प्रावधान
यूं ही नहीं मिल जाएगी CAA के तहत नागरिकता, 2014 से पहले आने का देना होगा सुबूत, कानून में ये प्रावधान

नई दिल्ली, पीटीआइ। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन देते समय अपने धर्म का सुबूत पेश करना होगा। इन देशों से आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी आवेदकों को इस बात का भी सुबूत देना होगा कि वे 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले भारत आए थे।

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एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सीएए के तहत जो भारतीय नागरिकता चाहेगा, उसे अपनी धार्मिक मान्यता का साक्ष्य देना होगा और सीएए के तहत जारी होने वाली नियमावली में उसका उल्लेख किया जाएगा। सीएए के अनुसार, धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं समझा जाएगा। उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार सीएए के तहत असम में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन भरने के इच्छुक लोगों को महज तीन महीने का समय दे सकती है। सीएए के क्रियान्वयन के लिए जारी होने वाली नियमावली में असम के लिए कुछ खास प्रावधान किए जाने की संभावना है।

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने एक पखवाड़ा पहले सीएए के तहत आवेदन के लिए सीमित समय रखने का अनुरोध किया था। उन्होंने असम के लिए कुछ विशिष्ट प्रावधान भी सीएए नियमावली में शामिल करने का अनुरोध किया था। यह कदम असम में सीएए के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के मद्देनजर उठाया गया।

पिछले साल संसद से इस कानून के पारित होने के बाद से असम में प्रदर्शन हो रहा है। राज्य के मूल लोगों में यह डर फैलता जा रहा है कि इस कानून से उनके हितों को राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से नुकसान पहुंचेगा। असम समझौता उन अवैध प्रवासियों की पहचान और प्रत्यर्पण की व्यवस्था करती है, जो 1971 के बाद देश में आ गये और राज्य में रह रहे हैं। उनका धर्म भले कुछ भी हो। असम में सीएए विरोधी कहते हैं कि यह कानून असम संधि के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। 


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