प्राइवेट अस्पताल कोविड मरीजों से कर रहे मनमानी वसूली, सरकार से की गई स्पष्ट दिशानिर्देशों की मांग
स्वास्थ्य मामलों की संसदीय समिति के प्रमुख रामगोपाल यादव ने कोविड-19 महामारी और इसके प्रबंधन पर राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को रिपोर्ट सौंपकर इलाज के स्पष्ट दिशानिर्देशों की मांग की है। कोविड मामले में सरकार की कार्यप्रणाली पर किसी संसदीय समिति की यह पहली रिपोर्ट है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने, सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए पर्याप्त संख्या में बेड न होने और कोविड इलाज के स्पष्ट दिशानिर्देश न होने से प्राइवेट अस्पताल मरीजों से मनमानी वसूली कर रहे हैं। संसदीय समिति ने कहा है कि इलाज के लिए उचित मूल्य तय करके तमाम मरीजों को मौत से बचाया जा सकता है।
स्वास्थ्य मामलों की संसदीय समिति के प्रमुख रामगोपाल यादव ने कोविड-19 महामारी और इसके प्रबंधन पर राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को रिपोर्ट सौंपकर इलाज के स्पष्ट दिशानिर्देशों की मांग की है। कोविड मामले में सरकार की कार्यप्रणाली पर किसी संसदीय समिति की यह पहली रिपोर्ट है। देश की 130 करोड़ की आबादी की स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च को बहुत कम बताते हुए संसदीय समिति ने कहा है कि जर्जर स्वास्थ्य सुविधाएं कोविड महामारी से निपटने में सबसे बड़ी बाधा हैं। समिति ने जन स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार का खर्च बढ़ाने की सिफारिश की है। अगले दो वर्ष में जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च किए जाने की आवश्यकता जताई है। 2025 तक देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का समुचित ढांचा खड़ा करने के लिए कहा है।
आमजन को करना पड़ रहा है भीषण मुश्किलों का सामना
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 ने स्वास्थ्य सेवाओं पर 2025 तक सरकार का खर्च बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो 2017 में जीडीपी का महज 1.7 प्रतिशत था। संसदीय समिति ने कहा है कि पर्याप्त सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं न होने की वजह से आमजन को भीषण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और बड़ी संख्या में मरीजों की मौत भी होती है। कोरोना संक्रमण के दौरान यह समस्या और प्रबल होती देखी गई है। सरकारी अस्पतालों में इलाज की पर्याप्त सुविधा न होने की वजह से लोगों को खतरनाक हालातों से जूझना पड़ रहा है या निजी अस्पतालों की मनमानी वसूली का शिकार होना पड़ रहा है। सरकार के इलाज संबंधी स्पष्ट दिशानिर्देश न होने की वजह से निजी अस्पतालों पर कोई रोक-टोक नहीं है। इससे गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।