बिल्किस बानो मामले में 15 साल सजा काट चुका कैदी समय पूर्व रिहाई के लिए पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, अब फंसा यह पेंच
बिल्किस बानो मामले में 15 साल की सजा काट चुका एक कैदी समय पूर्व रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। अब अदालत के सामने एक पेंच फंसा है कि समय पूर्व रिहाई में गुजरात नीति लागू हो या महाराष्ट्र की। पढ़ें यह रिपोर्ट...
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि बिल्कीस बानो केस में 15 वर्ष से उम्र कैद काट रहे दोषी की समय पूर्व रिहाई की अर्जी गुजरात राज्य की प्रिमेच्योर रिलीज नीति से तय होगी कि महाराष्ट्र की नीति से। उम्र कैद काट रहे दोषी राधेश्याम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह कानूनी मुद्दा उठाया है और कोर्ट से गुजरात की 1992 की पुरानी प्रिमेच्योर रिलीज नीति के मुताबिक रिहाई पर विचार किये जाने का आदेश मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बनेगा नजीर
इस मामले में उठाए गए कानूनी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वह महत्वपूर्ण होगा क्योंकि कई बार कोर्ट शिकायतकर्ता या पक्षकार की अप्रभावित निष्पक्ष सुनवाई की मांग पर आपराधिक केस का ट्रायल दूसरे राज्य स्थानांतरित कर देता है। अपराध किसी और राज्य में होता है और ट्रायल दूसरे राज्य की अदालत में चलता है। दो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले ऐसे मामलों में अभियुक्तों की प्रिमेच्योर रिलीज के मामले में किस राज्य की नीति लागू होगी यह तय होना महत्वपूर्ण होगा।
क्या था मामला
गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों में बिल्कीस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। दंगाइयों ने उसके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस का ट्रायल अहमदाबाद से मुंबई स्थानांतरित कर दिया था। केस का ट्रायल मुंबई में चला और वहीं दोषियों को सजा हुई। राधेश्याम को भी दुष्कर्म और हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सजा सुनाई हुई थी। करीब 15 साल की सजा काट चुके राधेश्याम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर विचार किए जाने की मांग की है।
गुजरात सरकार को नोटिस जारी
जस्टिस अजय रस्तोगी और सीटी रविकुमार की पीठ के गत सोमवार को राधेश्याम के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलीलें सुनने के बाद गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर मामले को नौ मई को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है। इससे पहले ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी थी कि उनका मुवक्किल 15 साल से ज्यादा कैद काट चुका है।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है स्पष्ट
सुप्रीम कोर्ट पूर्व फैसलों में कह चुका है कि कैदी की समय पूर्व रिहाई में वही नीति लागू होती है जो उसे सजा सुनाए जाते वक्त लागू थी। इस हिसाब से राधेश्याम को सजा के वक्त गुजरात में 1992 की नीति लागू थी उसी के मुताबिक उसकी रिहाई पर विचार होना चाहिए। उस नीति के मुताबिक 14 वर्ष की वास्तविक कैद काट लेने पर समय पूर्व रिहाई पर विचार होना चाहिए।
क्या है गुजरात सरकार की नई नीति
गुजरात सरकार ने जनवरी 2014 को नई प्रिमेच्योर रिलीज पालिसी लागू की है जो कहती है कि 14 वर्ष वास्तविक कैद काटने के बाद प्रिमेच्योर रिलीज पर विचार किया जा सकता है लेकिन शर्त है कि जिन मामलों की जांच सीबीआइ ने की है उनमें प्रिमेच्योर रिलीज पर विचार नहीं होगा। यानी 14 साल की कैद पूरी करने के बावजूद उन कैदियों की प्रिमेच्योर रिहाई पर विचार नहीं किया जाएगा। बिल्कीस बानो मामले की जांच भी सीबीआइ ने की थी।
दो हाईकोर्टों के अलग अलग फैसले
मल्होत्रा ने कहा कि राधेश्याम ने गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर प्रिमेच्योर रिहाई पर विचार करने की मांग की थी लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने कह दिया कि केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चला था इसलिए उसकी प्रिमेच्योर रिलीज की अर्जी पर महाराष्ट्र सरकार विचार करेगी न कि गुजरात सरकार। एक अन्य दोषी बांबे हाईकोर्ट गया था लेकिन बांबे हाईकोर्ट ने कह दिया कि यहां ट्रायल पूरा हो चुका है और अब मामला गुजरात में है इसलिए वहीं इस पर विचार होगा।