कश्मीर को नहीं बनने देंगे भारत का सीरिया: दिनेश्वर शर्मा
दिनेश्वर शर्मा को सरकार ने असम में शांति बहाली का जिम्मा दिया था। इसी साल जून में उन्होंने उल्फा समेत कई उग्रवादी संगठनों से बातचीत की।
नई दिल्ली, आइएएनएस: कश्मीर में वार्ता के लिए नियुक्त किए गए आइबी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा का कहना है कि वह किसी भी सूरत में इसे भारत का सीरिया नहीं बनने देंगे। उनका मानना है कि घाटी के हालात तनावपूर्ण हैं सुधार को भगीरथ प्रयास करने होंगे।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में युवा अपने रास्ते से भटककर अलगाववादी व आतंकी संगठनों की तरफ जा रहा है। शांति बहाली के लिए वह एक रिक्शे वाले से भी बात करने को तैयार हैं। जिस किसी के पास शांति के लिए सुझाव हैं, वह उनसे आकर मिल सकता है। उन्हें इस बात से बेहद तकलीफ पहुंचती है कि घाटी का युवा गलत रास्ते पर जा रहा है।
ले रहे इस्लाम का सहारा
कश्मीर अल कायदा के प्रमुख जाकिर मूसा, हिजबुल मुजाहिद्दीन के मुखिया रहे मृत बुरहान वानी उस समय एकाएक सुर्खियों में आ गए जब उन्होंने इस्लाम की रक्षा की बात की। शर्मा मानते हैं कि ये हाल रहा तो कश्मीर में समाज पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। 2003 से 2005 तक कश्मीर में इस्लामिस्ट टेरेरिज्म डेस्क के इंचार्ज रह चुके पूर्व आइपीएस को आंध्र प्रदेश, केरल व महाराष्ट्र में आतंकी संगठन आइएस (इस्लामिक स्टेट) के प्रभाव को रोकने का का जिम्मा सौैंपा गया था। तब उन्होंने किसी को गिरफ्तार करने की बजाए बातचीत के जरिये काउंसलिंग की और हालात को काफी हद तक काबू में कर लिया।
आतंकियों से दोस्ताना ताल्लुकात
अपनी सौम्यता के लिए विख्यात शर्मा गिरफ्तार आतंकियों से भी दोस्ताना ताल्लुकात बनाने से पीछे नहीं हटते। 1992-94 के बीच कश्मीर में जब वह आइबी के सहायक निदेशक के तौर पर कार्यरत थे तब उन्होंने हिजबुल मुजाहिद्दीन के तत्कालीन कमांडर मास्टर एहसान डार की गिरफ्तारी में अहम भूमिका अदा की थी। डार उस दौरान गुलाम कश्मीर में मौजूद आतंकी सरगना सैयद सलाहुद्दीन से अलग हो चुका था। शर्मा बताते हैं कि वह श्रीनगर की जेल में जाकर एहसान डार से मिले और उसकी फरमाइश पर बेटी व बेटे को जेल में ले जाकर उससे मिलवाया। वह उन्हें खुद लेकर गए।
हुर्रियत से बातचीत को तैयार
एक सवाल पर उन्होंने कहा कि बातचीत के लिए कश्मीरी युवा तक कैसे पहुंचा जाए, इसके लिए वह रास्ता तलाश कर रहे हैं। हुर्रियत नेताओं से बातचीत के सवाल पर उनका जवाब था कि शांति के लिए वह किसी से भी बात करने को तैयार हैं। उनका मानना है कि 2008 से पहले कश्मीर लगभग शांत था जबकि 2016 में बुरहान वानी की मौत से पहले भी वहां हालात सामान्य थे, लेकिन साजिश के तहत युवाओं को भटका दिया गया। उनका कहना है कि वह घाटी के हालात को करीब से देख चुके हैं। सरकार के पिछले शांति प्रयासों के निष्कर्ष पर उनका कहना है कि वह सारी रिपोर्ट देख रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि कुछ नया करके ही कश्मीर में शांति बहाल हो सकती है।
उल्फा से कश्मीर विवाद अलग
दिनेश्वर शर्मा को सरकार ने असम में शांति बहाली का जिम्मा दिया था। इसी साल जून में उन्होंने उल्फा समेत कई उग्रवादी संगठनों से बातचीत की। जब उनसे पूछा गया कि पूर्वोत्तर व कश्मीर के हालात में क्या अंतर है, तो उनका कहना था कि पूर्वोत्तर में पाकिस्तान सरीखी किसी तीसरी ताकत का दखल नहीं है, जबकि कश्मीर में ऐसा है।
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