महंगे आयात से बढ़ सकते हैं गैर यूरिया वाली खादों के दाम, पड़ेगी खेती पर मार
गैर यूरिया खादों के महंगे आयात से घरेलू बाजार में कीमतें बढ़नी तय हैं। चुनावी साल में पोषण युक्त खादों पर सरकार की फिक्स सब्सिडी नीति में संशोधन की तत्काल जरूरत है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गैर यूरिया खादों के महंगे आयात से घरेलू बाजार में कीमतें बढ़नी तय हैं। चुनावी साल में पोषण युक्त खादों पर सरकार की फिक्स सब्सिडी नीति में संशोधन की तत्काल जरूरत है। सरकारी हस्तक्षेप न हुआ तो खेती पर महंगी खाद की मार पड़नी तय है। रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई दिवाली बाद जोर पकड़ेगी। खेती की घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए गैर यूरिया खादों में डीएपी, एमओपी और एनपीके जैसी मिश्रित खादों का शत प्रतिशत आयात करना पड़ता है।
यूरिया छोड़ बाकी खादों के आयात पर सरकार एक निश्चित सब्सिडी की नीति अपनाती है। इसीलिए इन मिश्रित खादों डाई अमोनिया फास्फेट (डीएपी), म्यूरिएट आफ पोटाश (एमओपी) और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैसियम (एनपीके) के मूल्य में लागत के साथ थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव बाजार की मांग व आपूर्ति के हिसाब से आता रहता है। लेकिन चालू सीजन में डॉलर के मुकाबले रुपये का भारी अवमूल्यन हुआ है, जिसका असर खादों के आयात पर भी पड़ रहा है।
गैर यूरिया खादों के वैश्विक मूल्य में भी भारी तेजी आई है, जिसके लिए कच्चा माल और तैयार दोनों तरह के उत्पादों का आयात महंगा हो गया है। गैर यूरिया खाद उत्पादन करने वाली घरेलू कंपनियां इस बात से परेशान हैं कि सरकार ने अभी तक वर्ष 2018-19 के लिए पोषण आधारित खादों (एनबीएस) की अपनी फिक्स सब्सिडी नीति में कोई संशोधन नहीं किया है। इससे कारखाने इन खादों के मूल्य में बढ़ोतरी करने के लिए बाध्य हैं, जिसका असर खेती की लागत पर पड़ेगा।
एक अनुमान के मुताबिक डीएपी के खुदरा मूल्य में 30 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है। इसी तरह एमओपी और एनपीके में अनुपात के हिसाब से कीमतों में 15 से 60 फीसद तक की बढ़ोतरी हो सकती है। चालू रबी सीजन में यह मूल्य किसानों पर भारी पड़ सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये का मूल्य तेजी से घट रहा है, जिसका असर खादों के आयात पर सीधा पड़ रहा है।
डीएपी का प्रमुख कच्चा माल अमोनिया के मूल्य में वर्ष 2018-19 की दूसरी तिमाही से तीसरी तिमाही के दौरान सवा सात सौ रुपये प्रति टन की वृद्धि हुई है। इसी तरह सभी खादों के लागत मूल्य में बढ़त बनी हुई है। सरकार ने हस्तक्षेप कर एनबीएस की फिक्स सब्सिडी में संशोधन नहीं किया तो इसकी मार किसानों पर पड़नी तय है।