सोच राष्ट्रीय पर दिल में बसता था बंगाल
दादा की एक आदत थी कि जब वह वीकेंड पर कोलकाता आते तो अपने आवास और कार्यालय पर लोगों से मिलते थे और कई मुद्दों पर बातचीत करते थे।
प्रद्युत गुहा
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मेरी पहली मुलाकात आज से करीब 40 साल पहले हुई। उन दिनों दादा बांग्ला कांग्रेस से राज्य सभा सदस्य थे और ज्यादातर दिल्ली में ही रहते थे। वो अपनी विद्वता, पारदर्शिता, लेखन और भाषण शैली के लिए चर्चित थे। 1971 में इंदिरा गांधीजी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का निमंत्रण दिया और कहा कि आपके पिताजी कांग्रेस में स्वतंत्रता सेनानी थे। आपको भी कांग्रेस में शामिल होना चाहिए। इंदिराजी की सलाह पर दादा कांग्रेस में शामिल हुए। कुछ दिन बाद वह इंदिराजी की सरकार में मंत्री बने।
दादा की एक आदत थी कि जब वह वीकेंड पर कोलकाता आते तो अपने आवास और कार्यालय पर लोगों से मिलते थे और कई मुद्दों पर बातचीत करते थे। हम लोगों को लगता था कि यह आदमी बहुत ज्ञानी है। यह सिलसिला चलता रहा लेकिन अचानक 1977 में बड़ा घटनाक्रम हुआ। बड़े नेता कांग्रेस पार्टी छोड़कर जाने लगे। इंदिराजी चुनाव हार गयीं। उस वक्त प्रियरंजन दासमुंशी, देवी प्रसाद चटोपाध्याय, सिद्धार्थ शंकर रे और अशोक सेन जैसे बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी।
इस तरह अस्सी का दशक आते-आते प्रणब मुखर्जी बड़ा नाम हो चुका था। वह हमारे एक नंबर नेता हो चुके थे। बंगाल में उन्हें बौद्धिक जमात के नेता, एआइसीसी के प्रतिनिधि, इंदिरा गांधी की कैबिनेट के प्रतिनिधि या कहें हाईकमान का प्रतिनिधि माना जाने लगा था। उसी समय वह बंगाल में चुनाव लड़ने आए लेकिन उन्हें तब जमीन का नेता नहीं कहा जाता था। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव दादा ने बीरभूमि जिले की बोलपुर सीट लड़ा लेकिन वह हार गए। वैसे इंदिराजी ने उन्हें चुनाव लड़ने से मना किया था।
उनकी दृष्टि राष्ट्रीय थी लेकिन दिल में हमेशा बंगाल बसता था। बंगाल आते तो घूमते, भाषण देते, और बड़े नेताओं से मिलते थे। फिर मां को प्रणाम कर दिल्ली चले जाते। वह अपनी मां को बहुत प्यार करते थे और उन्हें गुरु मानते थे।
1984 में इंदिरागांधी की हत्या हो गयी। राजीव गांधी ने बागडोर संभाली। हालांकि चुनाव के बाद राजीव जी ने उन्हें कैबिनेट में नहीं लिया और पीसीसी प्रेसीडेंट बनाकर बंगाल भेज दिया। वह बंगाल में जाकर काम कर रहे थे लेकिन इसी दौरान उनके रिश्तों में खटास आने के बाद दादा ने कांग्रेस छोड़ दी और समाजवादी कांग्रेस बनायी। दादा ने फिर चुनाव लड़ा लेकिन वह बुरी तरह हार गए। वर्ष 1989 में उनकी राजीव गांधी से मुलाकात हुई और उनकी पार्टी में वापसी हो गई। कुछ समय उपरांत राजीव गांधी की मृत्यु हो गई। यह हमारे लिए बुरा वक्त था। नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने लेकिन उन्होंने दादा को अपने मंत्रिमंडल में नहीं रखा। मैने जब यह सुना तो मैं दादा से मिलने गया। मुझे बहुत गुस्सा आया। इस पर दादा ने कहा, 'सब मेरा नसीब है, चाय पीयो। नहीं बनाया क्या कर सकते हैं।' कुछ दिन बाद उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया।
प्रणव मुखर्जी का सबसे बड़ा गुण यह है कि जब वह किसी की मदद करते हैं तो उसकी पब्लिसिटी नहीं करते। यह चीज मैने उनके नजदीक काम करते देखी है। 1996 में राव के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव हार गई। अगले सात-आठ साल ऐसे ही चलते रहे। दादा ने 2004 का लोक सभा चुनाव जंगीपुर से लड़ने का निर्णय किया। उन्होंने मुझे कॉल किया और कहा कि जंगीपुर चलना है और तीन महीने तक वहीं रहना होगा। मेरा परिवार दिल्ली में था। दादा ने कहा परिवार की चिंता मत करना। दादा इतने व्यस्त थे कि वह एक दो बार ही जंगीपुर जा सके लेकिन हमने मेहनत कर वह चुनाव जीत लिया। लोक सभा चुनाव में दादा की यह पहली जीत थी। जब मैंने दादा को जीत की बधाई दी तो उन्हें विश्र्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा चलो जीत का सर्टिफिकेट लेते हैं। सर्टिफिकेट मिलने के बाद उन्हें विश्र्वास हुआ कि वो जीत गए हैं। दादा ने कहा, ''लोग कहते हैं कि मैं रूटलैस नेता हूं। आज मैने साबित कर दिया और जंगीपुर ने मेरी मदद की है, मैने अपनी जड़ जंगीपुर में पा ली है।'' यह आनंद उनके दिल से आया। वो खुश हो गए। इसके बाद हम दोनों लोग स्पेशल प्लेन से दिल्ली आए। सब लोग बोल रहे थे कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बन जाएंगे। उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया। हमें थोड़ा दुख हुआ। मैंने गुस्से में जाकर कहा, यह क्या हुआ? आपको पीएम बनना था?
दादा ने धीरे से मुझे बिठाया और एक बात बोली- 'इट्स माइ लक। चाय पियो और काम करो।'
यह हैं प्रणव मुखर्जी। मैंने उनसे जीवन की बहुत बड़ी सीख ली। जीवन में परिश्रम करना, न कोई चाह, न कोई भाव, सिर्फ सेवा करना, लोगों की सेवा और राष्ट्र सेवा। उन्होंने रक्षा मंत्री के बतौर मुझे अपना सहयोगी नियुक्त किया। वास्तव में प्रणव मुखर्जी ऐसे राजनीतिक दीपक हैं जिन्होंने लोगों की जिंदगी में उजाला भरा है।
( राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सहयोगी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता )